सरकारी दवाइयां मरीजों को न देकर नाले में फेंका, 3 कर्मचारी सस्पेंड

छत्तीसगढ़ के बैकुंठपुर जिले में स्वास्थ्य विभाग की एक ऐसी करतूत सामने आई है, जिसने हर किसी को हैरान कर दिया। जिला अस्पताल बैकुंठपुर में स्वास्थ्य कमर्मियों ने मरीजों को दवाइयां न देकर नाले में फेंक दिया और अस्पताल के स्टोर में स्टॉक शून्य लिख दिया।

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Krishna Kumar Sikander
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Government medicines were not given to patients but thrown in the drain 3 employees suspended the sootr
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छत्तीसगढ़ के बैकुंठपुर जिले में स्वास्थ्य विभाग की एक ऐसी करतूत सामने आई है, जिसने हर किसी को हैरान कर दिया। जिला अस्पताल बैकुंठपुर में स्वास्थ्य कमर्मियों ने मरीजों को दवाइयां न देकर नाले में फेंक दिया और अस्पताल के स्टोर में स्टॉक शून्य लिख दिया। नाले में फेंकी गई दवाइयां बिना एक्सपायरी वाली थी। जनता की भलाई के लिए दी गई इन दवाइयों को यूं बर्बाद होते देख लोग भड़क उठे और स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे। इस गंभीर मामले को देखते हुए प्रशासन ने तुरंत एक्शन लिया और तीन स्वास्थ्यकर्मियों को सस्पेंड कर दिया।

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यह है पूरा मामला

इस मामले की जानकारी कोरिया कलेक्टर चंदन त्रिपाठी को मिली तो उन्होंने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. प्रशांत सिंह की अध्यक्षता में एक जांच टीम गठित की। यह टीम बैकुंठपुर के नुरुल हुडा मैरिज गार्डन के पीछे फेंकी गई दवाइयों की तहकीकात के लिए पहुंची। जांच में चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि ये दवाइयां जिला अस्पताल बैकुंठपुर के स्टोर और ओपीडी फार्मेसी से सप्लाई की गई थीं। इनके बैच नंबर, निर्माण और समाप्ति तिथि अस्पताल के रिकॉर्ड से मेल खा रहे थे। हैरानी की बात यह कि अस्पताल के स्टोर में इन दवाइयों का स्टॉक शून्य था, और वितरण का कोई रिकॉर्ड भी नहीं मिला। 

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पुलिस जांच के आदेश, होगी सख्त कार्रवाई

मामले की गंभीरता को देखते हुए कलेक्टर ने पुलिस अधीक्षक कोरिया को पत्र लिखकर एफआईआर दर्ज करने और विस्तृत जांच के निर्देश दिए। नाले के पास मिली अन्य दवाइयों के स्रोत और इसमें शामिल लोगों की पहचान के लिए पुलिस ने अपनी तफ्तीश शुरू कर दी है। प्रशासन ने साफ कर दिया है कि इस लापरवाही में जो भी दोषी पाया जाएगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा।

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इन पर गिरी गाज

प्रारंभिक जांच में दोषी पाए गए जिला अस्पताल के तीन कर्मचारियों प्रभारी स्टोर कीपर शोभा गुप्ता, फार्मासिस्ट जितेंद्र जायसवाल और छत्रपाल सिंह को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। इनके खिलाफ छत्तीसगढ़ सिविल सेवा नियम 1966 के तहत कार्रवाई की गई है। 

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जनता में गुस्सा, उठी सख्त व्यवस्था की मांग

इस घटना ने स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों का गुस्सा भड़का दिया है। लोगों का कहना है कि सरकारी दवाइयां गरीब और जरूरतमंद लोगों की जिंदगी बचाने के लिए होती हैं, न कि सड़कों पर फेंकने के लिए। सामाजिक संगठनों ने प्रशासन से मांग की है कि ऐसी लापरवाही रोकने के लिए कड़े नियम बनाए जाएं और जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई हो। 

यह मामला न केवल स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि आखिर जनता के लिए बनी सुविधाएं इस तरह क्यों बर्बाद हो रही हैं? क्या इस जांच से इस गंभीर लापरवाही के पीछे का सच सामने आएगा? यह देखना बाकी है।

 

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