छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने आदतन अपराधी की ओर से दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका महासमुंद के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित उस आदेश के खिलाफ थी, जिसमें याचिकाकर्ता को छत्तीसगढ़ के कई जिलों की सीमा में प्रवेश करने से रोक दिया गया था। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को भी सही ठहराया और स्पष्ट टिप्पणी की कि "ऐसे अपराधी का स्वतंत्र रूप से घूमना आम जनता की सुरक्षा के लिए खतरा है।"
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ये है पूरा मामला
महासमुंद जिला मजिस्ट्रेट ने छत्तीसगढ़ राज्य सुरक्षा अधिनियम, 1990 की धारा 3 और धारा 5(ए)(बी) के तहत आदेश जारी कर आदतन अपराधी को 24 घंटे के भीतर महासमुंद, रायपुर, धमतरी, गरियाबंद, रायगढ़ और बलौदाबाजार जिलों की सीमा से बाहर जाने को कहा था। यह निष्कासन आदेश एक साल तक प्रभावशील रहने का निर्देश दिया गया था।
याचिकाकर्ता की ओर से क्या कहा गया
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में इस आदेश को चुनौती देते हुए दावा किया कि यह संविधान में प्रदत्त मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है। लेकिन अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ उपलब्ध आपराधिक रिकॉर्ड को ध्यान में रखते हुए उसे राहत देने से इनकार कर दिया।
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आपराधिक पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता का नाम कई वर्षों से पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है। उसके खिलाफ 1995 से लेकर 2023 तक कई गंभीर आपराधिक मामले दर्ज रहे हैं। ये मामले मारपीट, धमकी, अवैध वसूली, और शांति भंग से जुड़े रहे हैं। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा कि “ऐसे व्यक्ति की स्वतंत्र आवाजाही से आम नागरिकों में भय बना रहता है, जिससे कानून व्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। उसका समाज में रहना शांति व्यवस्था के लिए खतरा बन सकता है।”
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कोर्ट का तर्क
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अरविंद कुमार वर्मा शामिल थे, ने सुनवाई करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं। सके समाज में रहने से क्षेत्र में दहशत का माहौल बना रहता है। जिला मजिस्ट्रेट द्वारा उठाया गया कदम नागरिक सुरक्षा और समाज की शांति के लिए आवश्यक था।
हाईकोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि निचली अदालत और जिला मजिस्ट्रेट का आदेश पूरी तरह उचित और जनहित में है। आदतन अपराधियों के खिलाफ इस तरह की कानूनी कार्रवाई समाज की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक होगी।
निष्कासन आदेश एक नजीर
यह मामला छत्तीसगढ़ में अपराध और कानून व्यवस्था को लेकर प्रशासन की संवेदनशीलता और सक्रियता को दर्शाता है। हाईकोर्ट का यह निर्णय भविष्य में ऐसे अपराधियों के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई को मजबूत आधार प्रदान करेगा।
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