बिना मान्यता वाले स्कूलों पर कार्रवाई क्यों नहीं? हाईकोर्ट ने शिक्षा सचिव से मांगा जवाब

छत्तीसगढ़ में शिक्षा अधिकार अधिनियम (Right to Education - RTE) में गरीब बच्चों को प्रवेश न देने पर हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट बिना मान्यता के स्कूलों के संचालन पर भी सवाल किया है।

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Harrison Masih
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छत्तीसगढ़ में शिक्षा अधिकार अधिनियम (Right to Education - RTE) में गरीब बच्चों को प्रवेश न देने पर हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट बिना मान्यता के स्कूलों के संचालन पर भी सवाल किया है कि ऐसे स्कूलों पर अब तक कोई कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं की गई।

इस मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार और शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा "बच्चों को 5–5 लाख मुआवजा मिलना चाहिए। मर्सडीज में घूमने वाले लोग गली-गली में स्कूल खोल रहे हैं और गरीब बच्चों को शिक्षा से वंचित किया जा रहा है।"

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क्या है मामला?

यह याचिका उन गरीब छात्रों को RTE के तहत दाखिला नहीं देने से जुड़ी है, जिन्हें कानूनन नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्राप्त है। शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया कि प्रदेश में कई स्कूल बिना मान्यता के चल रहे हैं और फिर भी प्रशासन की ओर से उन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। इन स्कूलों ने न सिर्फ RTE के तहत दाखिले से इनकार किया, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता और प्रशासनिक नियमों को भी ठेंगा दिखाया।

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कोर्ट की तीखी टिप्पणी

हाईकोर्ट ने अपने कड़े रुख में कहा "मर्सडीज में घूमने वाले गली-गली में स्कूल खोल रहे हैं। बिना मान्यता वाले स्कूल चलाना गंभीर अपराध है, बच्चों का भविष्य दांव पर है।" ऐसे स्कूलों पर तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए। बच्चों को 5 लाख रूपए तक मुआवजा मिलना चाहिए।"

शिक्षा सचिव से मांगा जवाब

कोर्ट ने इस पूरे मामले में शिक्षा सचिव को शपथपत्र के माध्यम से 13 अगस्त तक जवाब देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल नोटिस जारी कर देना पर्याप्त नहीं है, बल्कि जवाबदेही तय की जानी चाहिए।

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RTE में गड़बड़ी Right to Education Act

क्या है RTE अधिनियम?

1. RTE कानून
RTE यानी "शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009" भारत सरकार द्वारा लागू किया गया एक कानून है, जिसके तहत 6 से 14 वर्ष तक के हर बच्चे को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देना राज्य की जिम्मेदारी है।

2. हर बच्चे को समान मौका
इस कानून का उद्देश्य है कि गरीब और पिछड़े वर्ग के बच्चे भी अच्छी स्कूलों में पढ़ सकें और उन्हें किसी भी तरह की आर्थिक बाधा के कारण शिक्षा से वंचित न होना पड़े।

3. निजी स्कूलों में 25% आरक्षण
RTE के तहत हर निजी स्कूल को अपनी 25% सीटें गरीब, वंचित और कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित रखनी होती हैं। इन बच्चों की फीस सरकार देती है।

4. बिना मान्यता स्कूल चलाना गैरकानूनी
RTE कानून के अनुसार, बिना सरकारी मान्यता के कोई भी स्कूल नहीं चलाया जा सकता। अगर कोई स्कूल मान्यता के बिना बच्चों को पढ़ा रहा है, तो वह कानून का उल्लंघन कर रहा है।

5. अधिकार न देने पर कार्रवाई संभव
अगर किसी गरीब बच्चे को RTE के तहत प्रवेश नहीं दिया जाता या उसे शिक्षा से वंचित किया जाता है, तो विभाग, स्कूल और संबंधित अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। कोर्ट भी ऐसे मामलों में कड़ा रुख अपनाता है।

हाईकोर्ट का शिक्षा सचिव को नोटिस

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क्यों है यह मामला गंभीर?

गरीब बच्चों को शिक्षा से वंचित करना संवैधानिक अधिकारों का हनन है। बिना मान्यता के स्कूलों का संचालन बच्चों के शैक्षणिक भविष्य को खतरे में डालता है। RTE जैसे कानून का पालन न होना सरकार की निगरानी तंत्र की विफलता दर्शाता है।

यह पूरे राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है। अगली सुनवाई में अगर संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो कोर्ट द्वारा कठोर आदेश और कार्रवाई की संभावना जताई जा रही है।

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