बस्तर के जंगलों में IED का जाल: 20 को युवक और 21 को जवान ने रखे पैर, दोनों की मौत

 The sootr को दिए खास इंटरव्यू में BSF के इंस्पेक्टर रमेश चौधरी ने कहा जब तक दुश्मन सामने ना हो तब तक ही थोड़ी टेंशन होती है। जब उनका फायर आने लगता है तब हमें सिर्फ जवाब ही देना होता है।

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Sandeep Kumar
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शिव शंकर सारथी @ RAIPUR. छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सलियों की IED अब आम आदिवासियों की भी जान ले रहा है। दरअसल बस्तर जिले के मूतवेंडी के जंगलों में 20 अप्रैल को 18 साल के गड़िया नाम का युवक वन उपज इकट्ठा करने गया था। जहां पर नक्सलियों की तरफ से बिछाए गए IED के जाल में वो शख्स फंस गया। IED ब्लास्ट होने से उसकी मौत हो गई। मूतवेंडी का जंगल थाना गंगालूर का क्षेत्र है। इस इलाके में नक्सली समान्तर सरकार चलाते रहे हैं। आपको बताते चले कि गुरील्ला वॉर के जरिए सालों तक फ़ोर्स के ऊपर हावी रहने वाले नक्सलियों ने IED का भी एक बड़ा जाल बिछाया हुआ है। IED की बेहद घातक है,21 अप्रैल को CRPF के जवान देवेंद्र की मौत हुई थी। 

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BSF के इंस्पेक्टर रमेश चौधरी

The sootr को दिए खास इंटरव्यू में BSF के इंस्पेक्टर रमेश चौधरी ने कहा जब तक दुश्मन सामने ना हो तब तक ही थोड़ी टेंशन होती है। जब उनका फायर आने लगता है तब हमें सिर्फ जवाब ही देना होता है।

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एंटी लैंड माइन व्हीकल को नक्सलियों ने उड़ा दिया

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने हथियारों में कई-कई रेनोवेशन किए हैं। निर्माण, मॉडिफाई के कौशल में भी नक्सलियों का कोई मुकाबला नहीं है। जब छत्तीसगढ़ में सबसे पहले एंटी लैंड माइन व्हीकल आया तो,पुलिस मुख्यालय में तत्कालीन DGP ने मीडिया को बताया कि 40 किलो बारूद की क्षमता यह व्हीकल झेल सकता है। दोगुना-तिगुना बारूद सड़क के नीचे लगाकर नक्सलियों ने एंटी लैंड माइन व्हीकल को उड़ा दिया था। खेतों में काम आने यूरिया और अन्य रसायनों का इस्तेमाल करके भी नक्सली अपने मंसूबो को अंजाम देते रहे हैं।

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क्या होता है IED ?

IED यानी ( इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस ) भी एक खतरनाक तकनीक है। IED भी एक तरह का बम ही होता है, लेकिन यह मिलिट्री के बमों से कुछ अलग होता है। नक्सलियों से लेकर आतंकवादियों तक IED का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर नुकसान के लिए करता है। IED ब्लास्ट होते ही मौके पर अक्सर आग लग जाती है, क्योंकि इसमें घातक और आग लगाने वाले केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। खासकर आतंकी सड़क के किनारे IED को लगाते हैं, ताकि इसके पांव पड़ते या गाड़ी का पहिया चढ़ते ब्लास्ट हो जाता है। आपको बताते चलें कि  बंदूक से निकली गोली यदि, कमर के नीचे लगी हो,तो जान बच जाने की संभावना हो सकती है, लेकिन IED के ऊपर पैर आया तो,जान बचने की संभावना नहीं के बराबर होती है। 20 और 21 अप्रैल 2024 को ied ने दो जानें ले ली है। इससे पहले भी कई मरतबा जान जा चुकी है।

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