Raipur Mahamaya temple 1400 Thousand Year Old History : छत्तीसगढ़ में देवी मंदिरों के किस्से और चमत्कार तो बहुत सुनने को मिले हैं, लेकिन रायपुर के महामाया मंदिर की अपनी एक अनोखी विशेषता है। महामाया मंदिर लगभग 1400 साल पुराना है। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, हैहय राजाओं ने छत्तीसगढ़ में छत्तीस किले बनवाए और प्रत्येक किले की शुरुआत में माँ महामाया के मंदिर बनवाए और यह मंदिर उनमें से एक किला है।
वर्तमान में, किले का कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन महामाया और समलेश्वरी को समर्पित मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण हैहय के राजा मोरध्वज ने तांत्रिक विधि से करवाया था, जो इसे अघोरियों और तांत्रिकों के लिए तीर्थस्थल बनाता है । वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार नागपुर के मराठों द्वारा किया गया था।
ये है मंदिर का इतिहास
एक बार राजा मोरध्वज अपनी रानी कुमुद्धति देवी के साथ अपने राज्य के भ्रमण पर निकले। जब वे लौट रहे थे तो प्रातःकाल हो चुका था। राजा मोरध्वज करुण नदी के उस पार थे, नदी पार करते समय उनके मन में विचार आया कि प्रातःकाल नित्यक्रिया से निवृत्त होकर आगे की यात्रा की जाए। यह सोचकर उन्होंने नदी तट (वर्तमान महादेवघाट) पर अपना पड़ाव डाला।
दासियाँ रानी को घूंघट ओढ़ाकर स्नान कराने के लिए नदी की ओर ले जाने लगीं। जैसे ही नदी निकट पहुंची तो रानी और उनकी दासियों ने देखा कि जल में एक बहुत बड़ी चट्टान पड़ी है और तीन विशालकाय सर्प तीन ओर से फन फैलाए बैठे हैं। यह दृश्य देखकर वे सभी डर गईं और चीखने लगीं तथा पड़ाव पर लौट आईं। राजा को सारा समाचार भेजा गया। समाचार मिलते ही राजा तत्काल उस स्थान पर आए। उन्होंने भी जब यह दृश्य देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। तत्काल अपने राज ज्योतिषी और राजपुरोहित को बुलाया।
उन्होंने भी देखा और ध्यान करके राजा से कहा कि राजन, यह पत्थर नहीं बल्कि देवी की मूर्ति है और उल्टी लेटी हुई है। उनके द्वारा दी गई सलाह पर राजा मोरध्वज ने स्नान करके विधिपूर्वक पूजन किया और धीरे-धीरे चट्टान की ओर बढ़ने लगे। वहां से एक-एक करके तीन विशालकाय सांप खिसकने लगे। उनके जाने के बाद राजा ने उस चट्टान को छुआ और प्रणाम करके उसे सीधा करवा दिया। यह देखकर सभी आश्चर्यचकित रह गए कि वह चट्टान पर नहीं बल्कि सिंह पर खड़ी थी और महिषासुरमर्दिनी अष्टभुजी देवी भगवती की मूर्ति है। यह देखकर सभी ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया।
हैहय राजा की कुलदेवी हैं मां महामाया
उस समय मूर्ति में से आवाज आई, "हे राजन! मैं आपकी कुलदेवी हूं। आप मेरी पूजा करें और मेरा सम्मान करें, मैं स्वयं महामाया हूं।" राजा ने अपने पंडितों, आचार्यों और ज्योतिषियों से परामर्श किया और सलाह ली। सभी ने सलाह दी कि भगवती मां महामाया की प्राण प्रतिष्ठा की जाए, तभी पता चला कि वर्तमान पुरानी बस्ती क्षेत्र में किसी अन्य देवी-देवता के लिए नया मंदिर बना दिया गया है।
वही मंदिर में निर्माण कार्य पूर्ण होने के बाद देवी के आदेशानुसार आदिशक्ति मां महामाया की प्राण प्रतिष्ठा पूर्णतः वैदिक एवं तांत्रिक विधि से खारुन नदी से लाकर की गई। आपको बता दें कि मंदिर में स्थापित देवी की मूर्ति बाहर से तो दिखाई देती है। लेकिन मंदिर में प्रवेश करते ही मूर्ति सीधी दिखने लगती है।
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