200 से ज्यादा मेडिकल छात्र के 1 करोड़ रुपये अटके, बैंक की लापरवाही से परेशान

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में, मेडिकल और डेंटल कॉलेजों की एमबीबीएस-बीडीएस काउंसलिंग में भाग लेने वाले 200 से अधिक छात्रों के करीब 1 करोड़ रुपये एक निजी बैंक ने रोक दिए हैं। बैंक तकनीकी खामियों का हवाला देकर छात्रों की सुरक्षा निधि (वापस नहीं कर रहा है।

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Krishna Kumar Sikander
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More than 200 medical students have Rs 1 crore stuck the sootr
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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मेडिकल और डेंटल कॉलेजों की एमबीबीएस-बीडीएस काउंसलिंग (सत्र 2023-24) में शामिल हुए 200 से अधिक छात्रों के करीब 1 करोड़ रुपये एक निजी बैंक ने अटका दिए हैं। तकनीकी खामियों का हवाला देकर बैंक इन छात्रों को उनकी सुरक्षा निधि (सिक्योरिटी डिपॉजिट) वापस करने में नाकाम रहा है। इस लापरवाही से परेशान छात्र बार-बार बैंक के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई राहत नहीं मिल रही। 

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क्या है पूरा मामला?

सत्र 2023-24 की काउंसलिंग में कुल 5184 छात्र शामिल हुए थे, जिनके 21 करोड़ 86 लाख 75 हजार रुपये निजी बैंक में जमा थे। नियमों के अनुसार, जिन छात्रों को काउंसलिंग में सीट आवंटित नहीं होती, उनकी सुरक्षा निधि वापस की जानी चाहिए। लेकिन पिछले साल जून तक केवल आधे छात्रों को ही रिफंड मिल सका। शेष 200 से ज्यादा छात्रों के 10 हजार से लेकर 1 लाख रुपये तक की राशि अभी भी अटकी हुई है। 

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बैंक की लापरवाही और डीएमई की कार्रवाई

छात्रों की शिकायतों के बाद चिकित्सा शिक्षा निदेशालय (डीएमई) ने मामले को गंभीरता से लिया। पिछले साल डीएमई ने बैंक मैनेजर को तलब कर देरी का कारण पूछा। मैनेजर ने जिम्मेदारी काउंसलिंग एजेंसी (एनआईसी) पर डाल दी, यह कहते हुए कि उन्हें छात्रों का ब्योरा देरी से मिला।

इसके अलावा, बैंक ने तकनीकी कारणों जैसे डेटा ऑटो-डिलीट होना, क्रेडिट कार्ड से भुगतान और खाता की अधूरी जानकारी के बहाने बनाए। इसके बाद डीएमई ने छात्रों की परेशानी को देखते हुए गूगल फॉर्म लिंक जारी कर दिया। जिसमें छात्रों से उनकी पूरी जानकारी देने को कहा गया।

कई छात्रों ने इस लिंक के जरिए अपनी डिटेल्स दीं और बैंक की शिकायत की, लेकिन इसके बावजूद रिफंड की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी। डीएमई ने जनवरी में ही बैंक को छात्रों का पूरा ब्योरा सौंप दिया था, फिर भी बैंक की सुस्ती बरकरार है।

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निजी बैंक पर सवाल

सबसे बड़ा सवाल यह है कि डीएमई ने सरकारी बैंकों को छोड़कर एक निजी बैंक में खाता क्यों खोला? रायपुर में डीकेएस अस्पताल के आसपास कई सरकारी बैंक उपलब्ध हैं, फिर भी निजी बैंक को प्राथमिकता दी गई। जानकारों का कहना है कि बैंक ने छात्रों के पैसे पर लाखों रुपये का ब्याज कमा लिया है। अगर छात्र इस मामले को कोर्ट में ले जाते हैं, तो बैंक को ब्याज समेत राशि लौटानी पड़ सकती है। 

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छात्रों की परेशानी और नियम

काउंसलिंग में शामिल होने के लिए छात्रों को सुरक्षा निधि के रूप में राशि जमा करानी होती है। अगर उन्हें सीट आवंटित नहीं होती, तो यह राशि तुरंत वापस की जानी चाहिए। लेकिन बैंक की लचर कार्यप्रणाली के कारण छात्रों को महीनों इंतजार करना पड़ रहा है। छात्रों का कहना है कि बार-बार बैंक के चक्कर काटने के बावजूद उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिल रहे हैं। 

डीएमई का नया कदम

छात्रों की परेशानी को देखते हुए डीएमई ने एक बार फिर गूगल फॉर्म के जरिए जानकारी मांगी है, ताकि रिफंड प्रक्रिया को तेज किया जा सके। लेकिन सवाल यह है कि जब पहले ही सारी जानकारी बैंक को दी जा चुकी है, तो बार-बार छात्रों से डिटेल्स क्यों मांगी जा रही हैं? 

FAQ

मेडिकल काउंसलिंग में शामिल 200 से ज्यादा छात्रों को रिफंड क्यों नहीं मिल पाया?
बैंक ने तकनीकी खामियों का हवाला देते हुए छात्रों की सुरक्षा निधि (सिक्योरिटी डिपॉजिट) वापस नहीं की। बैंक ने डेटा ऑटो-डिलीट होना, खाता विवरण अधूरा होना और काउंसलिंग एजेंसी से जानकारी देर से मिलना जैसे बहाने बनाए, जिससे 1 करोड़ रुपये की राशि अटक गई।
डीएमई (चिकित्सा शिक्षा निदेशालय) ने बैंक की लापरवाही पर क्या कदम उठाए?
डीएमई ने पहले बैंक मैनेजर को तलब कर देरी का कारण पूछा और बाद में छात्रों से जानकारी लेने के लिए गूगल फॉर्म जारी किया। जनवरी में ही डीएमई ने बैंक को छात्रों की पूरी जानकारी सौंप दी थी, फिर भी बैंक ने रिफंड प्रक्रिया में कोई गति नहीं दिखाई।
इस मामले में निजी बैंक को लेकर क्या सवाल उठ रहे हैं और छात्रों की क्या मांग है?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकारी बैंकों की मौजूदगी के बावजूद डीएमई ने निजी बैंक को क्यों चुना। आरोप है कि बैंक ने छात्रों के पैसे पर ब्याज कमाया है। छात्र मांग कर रहे हैं कि उन्हें जल्द से जल्द उनकी राशि ब्याज सहित लौटाई जाए और इस मामले की उच्च स्तर पर जांच हो।

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