नर्सिंग की तरह ही हो सकता है पैरामेडिकल फर्जीवाड़ा, कोर्ट ने कहा CBI पर किया था भरोसा अब नहीं लेंगे चांस

पैरामेडिकल काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत को हाईकोर्ट में अपने बचाव में इस्तेमाल किया। कोर्ट ने निर्देश दिए कि पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता से जुड़े दस्तावेज सीलबंद लिफाफे में हाईकोर्ट को सौंपे जाएं।

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Neel Tiwari
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MP News: सुप्रीम कोर्ट से मान्यता के लिए मिली राहत को पैरामेडिकल काउंसिल ने हाईकोर्ट में चल रहे मामले पर बचने के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की। काउंसिल ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने याचिकाकर्ता के अधिकार को भी सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया है। जब तक सुप्रीम कोर्ट इस पर फैसला नहीं लेता तब तक कार्यवाही को रोकने की भी मांग की गई।
 
सरकार की ओर से कोर्ट में यह भी तर्क दिया गया कि पैरामेडिकल काउंसिल के गोपनीय दस्तावेज याचिकाकर्ता को नहीं दिए जाने चाहिए। हालांकि कोर्ट ने यह कहा कि यह  दस्तावेज देश की सुरक्षा से जुड़े हुए नहीं है। कोर्ट ने यह आदेश दिया कि मान्यता से जुड़े दस्तावेजों को सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपा जाए।

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पैरामेडिकल कॉलेज को SC से मिली है राहत 

जबलपुर हाईकोर्ट में जस्टिस अतुल श्रीधरन की डिविजनल बेंच ने मध्य प्रदेश के सभी पैरामेडिकल कॉलेज में सत्र 2023-24 और 2024-25 के परीक्षाओं और एडमिशन सहित मान्यता पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही पैरामेडिकल काउंसिल और CBI को मान्यता संबंधी सभी फाइलों को पेश करने आदेश दिए थे।

 इसी बीच पैरामेडिकल कॉलेज ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की और उन्हें नए सत्र के लिए एडमिशन सहित कॉलेजों को मान्यता देने की राहत मिल गई। गुरुवार 7 अगस्त को जबलपुर हाईकोर्ट में हुई इस मामले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए पैरामेडिकल काउंसिल ने याचिकाकर्ता लॉ स्टूडेंड एसोसिएशन के याचिका दायर करने के अधिकार को भी चैलेंज किया और कहा कि याचिकाकर्ता को पैरामेडिकल कॉलेज की मान्यता से संबंधित सीबीआई के दस्तावेज नहीं दिए जाने चाहिए। 

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5 पॉइंट्स में समझें पूरी स्टोरी

👉 जबलपुर हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश के सभी पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता पर 2023-24 और 2024-25 के लिए रोक लगा दी थी। इस रोक में परीक्षा और प्रवेश भी शामिल थे। इसके बाद, पैरामेडिकल काउंसिल और सीबीआई से सभी मान्यता संबंधी दस्तावेज मांगे गए थे।

👉 पैरामेडिकल कॉलेजों ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की और नए सत्र के लिए मान्यता की राहत प्राप्त की। हालांकि, पैरामेडिकल काउंसिल ने हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता के अधिकार को चुनौती दी और दस्तावेजों की गोपनीयता का हवाला दिया।

👉 कोर्ट को बताया गया कि कुछ कॉलेजों में नर्सिंग और पैरामेडिकल दोनों एक ही बिल्डिंग में चल रहे हैं। जांच के दौरान बैनर बदलकर इसे छुपाया जाता है, जिससे मान्यता में गड़बड़ी का संकेत मिलता है।

👉 कोर्ट ने पैरामेडिकल काउंसिल से सवाल किया कि यदि दस्तावेजों में देश की सुरक्षा से संबंधित कोई जानकारी नहीं है, तो इन्हें क्यों नहीं सौंपा जा रहा है। कोर्ट ने नर्सिंग घोटाले का उदाहरण देते हुए सीबीआई पर भरोसा न होने की स्थिति को रेखांकित किया।

👉अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी। इस दौरान, QCI को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि एक ही बिल्डिंग में पैरामेडिकल और अन्य कॉलेज नहीं चल रहे हों। साथ ही, सभी मान्यता दस्तावेजों को सील बंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपे जाएंगे।

बैनर बदलकर संचालित होते हैं दो कॉलेज 

लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन की ओर से अधिवक्ता विशाल बघेल और अधिवक्ता आलोक बागरेचा ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने पहले भी कोर्ट के समक्ष फोटोग्राफ प्रस्तुत किए हैं। जिसमें एक ही बिल्डिंग में नर्सिंग और पैरामेडिकल दोनों कॉलेज संचालित होते हैं और जब जांच टीम आती है तो जरूरत के हिसाब से कॉलेज के बाहर का बैनर बदल दिया जाता है। 

कोर्ट ने माना कि प्रथमदृष्टया ही यह समझ में आ रहा है कि मान्यताओं में गड़बड़ियां तो हैं। इसलिए कोर्ट ने सीबीआई और पैरामेडिकल काउंसिल को निर्देश दिया है कि यह दस्तावेज याचिकाकर्ता को ना देते हुए सील बंद लिफाफे में हाईकोर्ट को सौंपे जाएं। पैरामेडिकल काउंसिल की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि कुछ दस्तावेज सॉफ्ट कॉपी में तैयार हैं जो कोर्ट को आज ही जमा कर दिए जाएंगे और अन्य दस्तावेज भी जल्द कोर्ट को सौंप दिए जाएंगे।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी माना की इन दस्तावेजों में कोई देश की रक्षा से जुड़ी हुई जानकारी नहीं है तो आखिर इन्हें देने में आनाकानी क्यों की जा रही है, क्योंकि हो सकता है इन दस्तावेजों के जरिए ही नर्सिंग घोटाले की तरह ही पैरामेडिकल मान्यता की गलतियां भी सामने आ जाए।

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मेडिकल यूनिवर्सिटी ने कर ली मान्यता देने की तैयारी 

लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन की ओर से अधिवक्ता आलोक बागरेचा ने  कोर्ट का ध्यान उस डॉक्यूमेंट की ओर आकर्षित किया जिसके जरिए पैरामेडिकल कॉलेज को जल्द मान्यता देने की तैयारी कर ली गई है। MPMSU ने बैठक करते हुए 4 अगस्त 2025 को यह निर्देश जारी किए हैं कि QCI (क्वालिटी कौंसिल ऑफ़ इंडिया) के द्वारा पैरामेडिकल कॉलेज की एलिजिबिलिटी चेक करेगी और उसके बाद मान्यता की प्रक्रिया पूरी की जाए। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से निवेदन किया कि QCI को निर्देशित किया जाए की फिजिकल जांच में यह तय किया जाएगा कि एक ही बिल्डिंग में दो कॉलेज ना चल रहे हो।

कोर्ट ने कहा किस पर करें भरोसा

पैरामेडिकल काउंसिल की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट के सामने आपत्ति जताई गई। इसमें कॉलेज को दी जा रही मान्यता के संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों की कलेक्टर कमेटी के साथ ही MPMSU और अब QCI भी शामिल है। इसके बाद भी कोर्ट के हस्तक्षेप से यह सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या कोर्ट को किसी पर भरोसा नहीं है? 

जस्टिस अतुल श्रीधरन की डिविजनल बेंच ने अपने आदेश में यह लिखा की इसी मामले से जुड़े हुए नर्सिंग घोटाले में यह सामने आया था कि कॉलेजों की जांच में सीबीआई के अधिकारी ही प्रथमदृष्टया भ्रष्टाचार में लिप्त थे। उनके खिलाफ सीबीआई नहीं आपराधिक मामला दर्ज किया था। 

जहां मामला जनता के स्वास्थ्य से जुड़ा हो और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए, वहां यह नजर आ रहा है कि पैसे के सामने नैतिकता भी झुक रही है। यहां नजर आ रहा है कि जिनको रक्षा का जिम्मा सौंपा गया है वही भक्षक बने हुए हैं। कोर्ट ने आदेश में लिखा कि CBI जैसी देश की प्रतिष्ठित जांच एजेंसी के अधिकारियों पर भी जब भ्रष्टाचार के आरोप लग जाएं तो फिर कोर्ट किस पर भरोसा करे ?

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12 अगस्त को होगी मामले की अगली सुनवाई 

जबलपुर हाईकोर्ट में जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अनुराधा शुक्ला की डिविजनल बेंच ने आदेश जारी किया है। इसमें  QCI को जांच के समय या सुनिश्चित करना होगा कि पैरामेडिकल कॉलेज के पैरामीटर पर ही उस एक ही बिल्डिंग में दूसरा कोई अन्य कॉलेज संचालित ना हो रहा हो। इसके साथ ही कॉलेजों की मान्यता से संबंधित सभी दस्तावेज सील बंद लिफाफे में कोर्ट को पेश करने होंगे। अब इस मामले की अगली सुनवाई 12 अगस्त को तय की गई है।

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