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Journalist Mukesh Chandrakar murder case:छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में पत्रकार मुकेश चंद्राकर हत्याकांड से जुड़े मामले में प्रशासन ने बड़ा कदम उठाया है। सोमवार, 8 सितंबर को हत्याकांड के मुख्य आरोपी सुरेश चंद्राकर के अवैध निर्माण को ध्वस्त कर दिया। यह कार्रवाई राजस्व विभाग और नगर पालिका की टीम ने की।
हत्या स्थल पर चली बुलडोजर की कार्रवाई
जानकारी के मुताबिक, सुरेश चंद्राकर के चट्टान पारा स्थित बाड़े में ही मुकेश चंद्राकर की बेरहमी से हत्या की गई थी। आरोपियों ने हत्या के बाद शव को छिपाने के लिए बाड़े के सेप्टिक टैंक में फेंक दिया और ढक्कन पर कंक्रीट डालकर सबूत मिटाने की कोशिश की।
क्राइम सीन के तहत इस जगह को पहले सील किया गया था। सोमवार को प्रशासन ने यहां बुलडोजर चलाकर अवैध निर्माण ध्वस्त कर दिया।
मुकेश चंद्राकर की निर्भीक पत्रकारिता बनी हत्या की वजह
गौरतलब है कि मुकेश चंद्राकर ने बीजापुर जिले की गंगालूर-मिरतुर सड़क निर्माण परियोजना में हो रहे भ्रष्टाचार और घटिया निर्माण की पोल खोली थी। यह खुलासा ही उनकी हत्या का कारण बना।
1 जनवरी की रात से लापता रहे मुकेश का शव 3 जनवरी को सुरेश चंद्राकर के मजदूरों के लिए बनाए गए बाड़े के सेप्टिक टैंक से बरामद हुआ। इस मामले में सुरेश चंद्राकर, उसके भाइयों रितेश और दिनेश चंद्राकर तथा सुपरवाइज़र महेंद्र रामटेके को गिरफ्तार किया गया। मुख्य आरोपी सुरेश को पुलिस ने हैदराबाद से पकड़ा।
73 करोड़ की सड़क परियोजना सवालों के घेरे में
जांच के दौरान नेलसनार-कोड़ोली-मिरतुर-गंगालूर सड़क परियोजना से जुड़ी अनियमितताएं सामने आईं। यह परियोजना 2010 में 73.08 करोड़ रूपए की लागत से मंजूर हुई थी।
SIT की जांच में खुलासा हुआ कि विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से परियोजना में भारी भ्रष्टाचार हुआ। मुकेश ने अपने वीडियो पोर्टल और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिए इस भ्रष्टाचार की परतें खोलकर सबके सामने रखीं।
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पत्रकार मुकेश चंद्राकर केस क्या है?
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नक्सल क्षेत्र में निडर पत्रकारिता का प्रतीक थे मुकेश
मुकेश चंद्राकर सिर्फ एक पत्रकार नहीं, बल्कि नक्सल प्रभावित इलाकों की आवाज़ थे। उन्होंने नक्सल हमलों से लेकर भ्रष्टाचार तक कई गंभीर मुद्दों को उजागर किया। अप्रैल 2021 में टकलगुड़ा नक्सली हमले के दौरान जब कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह मन्हास माओवादियों की कैद में थे, तब मुकेश ने उनकी रिहाई सुनिश्चित करने में भी अहम भूमिका निभाई थी।
उनकी निडर रिपोर्टिंग ठेकेदारों और भ्रष्ट अधिकारियों के लिए चुनौती बन गई थी, जिसकी भारी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।
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लोकतंत्र और पत्रकारिता के लिए गहरी क्षति
मुकेश चंद्राकर की निर्मम हत्या न सिर्फ एक पत्रकार की, बल्कि सत्य और लोकतंत्र की आवाज़ की हत्या है। यह घटना नक्सल प्रभावित इलाकों में पत्रकारिता की चुनौतियों और खतरों को उजागर करती है। प्रशासनिक कार्रवाई से यह संकेत मिला है कि पत्रकारिता को दबाने की कोशिश करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे।