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छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों सुकमा, बस्तर और कांकेर के नक्सल हिंसा से पीड़ित लोगों ने इंडिया गठबंधन के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी की उम्मीदवारी के खिलाफ सांसदों को खुला पत्र लिखकर तीखा विरोध जताया है।
इस पत्र में पीड़ितों ने नक्सलवाद के कारण अपनी जिंदगी में झेली गई पीड़ा और त्रासदी का जिक्र किया है। साथ ही, उन्होंने 2011 में सलवा जुडूम आंदोलन को बंद करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले, जिसमें जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी शामिल थे, को नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाला करार दिया है।
पीड़ितों ने सांसदों से अपील की है कि वे रेड्डी को उपराष्ट्रपति पद के लिए समर्थन न दें। यह पत्र सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों में तेजी से वायरल हो रहा है, जिसने उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक बहस को और गर्म कर दिया है।
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पत्र में लिखा, सियाराम रामटेके की आपबीती
उत्तर बस्तर कांकेर के चारगांव के पूर्व उपसरपंच सियाराम रामटेके (56) ने अपने पत्र में नक्सल हिंसा की भयावहता को बयां किया है। उन्होंने लिखा, “इस क्षेत्र में किसान होने की कीमत जान देकर या जीवनभर के लिए अपंग होकर चुकानी पड़ती है।”
सियाराम ने बताया कि सलवा जुडूम, जो नक्सलवाद के खिलाफ आदिवासियों और पुलिस का संयुक्त आंदोलन था, 2011 तक प्रभावी रूप से नक्सलियों को कमजोर कर रहा था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले, जिसमें जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी और जस्टिस एसएस निज्जर शामिल थे, ने सलवा जुडूम को गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित कर दिया।
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इस फैसले के बाद सलवा जुडूम से जुड़े लोग अपने गांवों को लौट गए, जिसका फायदा उठाकर नक्सलियों ने हिंसा को और बढ़ा दिया। सियाराम ने अपनी व्यक्तिगत त्रासदी का जिक्र करते हुए लिखा, “खेत में काम करते समय नक्सलियों ने मुझ पर हमला किया। मेरे हाथ और पेट में गोलियां मारीं और मुझे मरा हुआ समझकर छोड़ गए। मैं आज भी शारीरिक रूप से अक्षम जिंदगी जी रहा हूं।”
उन्होंने दावा किया कि अगर सलवा जुडूम पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आता, तो नक्सलवाद का खात्मा बहुत पहले हो चुका होता। सियाराम ने सांसदों से भावुक अपील की, “बस्तर की जनता को मरने के लिए छोड़ देने वाले ऐसे व्यक्ति को उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद के लिए समर्थन न दें।”
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अशोक गंडामी का दर्दनाक अनुभव
एक अन्य पत्र में, अशोक गंडामी ने अपनी भतीजी की कहानी साझा की, जो नक्सल हिंसा की शिकार हुई। उन्होंने बताया कि उनकी भतीजी ने एक आईईडी विस्फोट में अपना एक पैर खो दिया और सलवा जुडूम फैसले के बाद उनके पिता की नक्सलियों द्वारा हत्या कर दी गई, जिससे वह अनाथ हो गई।
गंडामी ने आरोप लगाया कि यह सब जस्टिस रेड्डी के फैसले का परिणाम था, जो उस समय आया जब नक्सलवाद हार की कगार पर था। उन्होंने सलवा जुडूम को आदिवासियों के लिए “सुरक्षा कवच” बताया, जो नक्सलियों के खिलाफ उनकी रक्षा करता था। गंडामी ने सांसदों से रेड्डी की उम्मीदवारी पर पुनर्विचार करने की मांग की और सवाल उठाया, “क्या कांग्रेस और विपक्ष बस्तर में शांति के खिलाफ हैं?”
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सलवा जुडूम और सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सलवा जुडूम छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ एक विवादास्पद लेकिन प्रभावी आंदोलन था, जिसमें आदिवासी युवाओं को विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) के रूप में नियुक्त किया गया था। यह आंदोलन पुलिस और स्थानीय समुदायों के सहयोग से नक्सलियों के खिलाफ एक मजबूत रणनीति के रूप में काम कर रहा था।
2011 में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच, जिसमें जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी और जस्टिस एसएस निज्जर शामिल थे, ने सलवा जुडूम को असंवैधानिक करार देते हुए इसे भंग करने का आदेश दिया। कोर्ट ने माना कि आदिवासी युवाओं को हथियार देकर नक्सलियों के खिलाफ लड़ाना गैरकानूनी है और यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। इस फैसले के बाद सलवा जुडूम से जुड़े लोग असुरक्षित हो गए, और नक्सलियों ने उनकी हत्या और हमलों को तेज कर दिया।
राजनीतिक विवाद और बीजेपी का हमला
नक्सल पीड़ितों के इस पत्र ने उपराष्ट्रपति चुनाव को एक बड़े राजनीतिक विवाद में बदल दिया है। बीजेपी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रेड्डी की उम्मीदवारी पर तीखा हमला बोला है। शाह ने 22 अगस्त 2025 को केरल में एक कार्यक्रम में कहा, “सुदर्शन रेड्डी ने सलवा जुडूम पर फैसला देकर नक्सलवाद को मदद पहुंचाई। अगर यह फैसला नहीं आता, तो 2020 तक नक्सल आतंकवाद खत्म हो गया होता।”
बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने भी रेड्डी के फैसले को “माओवाद के प्रति झुकाव” करार दिया और उनकी उपराष्ट्रपति पद के लिए उपयुक्तता पर सवाल उठाए। बीजेपी ने उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार बनाया है। इस बीच, रेड्डी ने शाह के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि यह फैसला उनका व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट का था।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर शाह ने पूरा फैसला पढ़ा होता, तो वे ऐसी टिप्पणी नहीं करते। सुप्रीम कोर्ट के 18 पूर्व जजों, जिसमें जस्टिस कुरियन जोसेफ और मदन बी लोकुर शामिल हैं, ने रेड्डी का समर्थन करते हुए कहा कि सलवा जुडूम फैसला नक्सलवाद का समर्थन नहीं करता, बल्कि यह संवैधानिक सिद्धांतों पर आधारित था।
नक्सल पीड़ितों की भावनाएं और सवाल
नक्सल पीड़ितों के पत्र ने बस्तर और सुकमा जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की पीड़ा को फिर से उजागर किया है। सियाराम रामटेके और अशोक गंडामी जैसे पीड़ितों ने अपने पत्रों में न केवल अपनी व्यक्तिगत त्रासदी साझा की, बल्कि यह भी सवाल उठाया कि क्या कांग्रेस और इंडिया गठबंधन बस्तर में शांति स्थापित करने के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि सलवा जुडूम ने आदिवासियों को नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा दी थी, लेकिन इसके भंग होने के बाद स्कूलों, सड़कों, और बिजलीघरों को नष्ट करने वाले नक्सलियों को फिर से ताकत मिली।
उपराष्ट्रपति चुनाव पर असर
9 सितंबर 2025 को होने वाला उपराष्ट्रपति चुनाव अब एक वैचारिक जंग का रूप ले चुका है। इंडिया गठबंधन ने रेड्डी को “संविधान के रक्षक” और “प्रगतिशील जज” के रूप में पेश किया है, जबकि बीजेपी ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और आदिवासी समुदायों के हितों के खिलाफ बताया है। नक्सल पीड़ितों के पत्र ने इस बहस को और गहरा कर दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह पत्र सांसदों के मतदान पर कितना असर डालता है और क्या रेड्डी की उम्मीदवारी को लेकर विपक्ष के भीतर भी कोई पुनर्विचार होता है।
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