छत्तीसगढ़, एमपी, राजस्थान में मां बन रहीं किशोरियां, ग्रेजुएट्स को चाहिए सिंगल चाइल्ड, गांव में महिलाएं तीन से चार बच्चों की मां

केंद्र सरकार की सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम यानी एसआरएस की हाल ही में आई रिपोर्ट ने महिलाओं के बारे में कई अहम खुलासे किए हैं। रिपोर्ट के अनुसार बच्चियां अभी भी किशोर अवस्था में मां बन रही हैं। जो चिंता का कारण है।

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Arun Tiwari
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SRS REPORT FOR WOMEN

Photograph: (the sootr)

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केंद्र सरकार की सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम यानी एसआरएस की हाल ही में आई रिपोर्ट ने महिलाओं के बारे में कई अहम खुलासे किए हैं।  यह रिपोर्ट 2023 की है। सबसे चिंता में डालने वाली बात ये है कि बच्चियां अभी भी किशोर अवस्था में मां बन रही हैं। एक तरफ तो ऑपरेशन सिंदूर की कमान महिलाओं ने संभालकर अपनी क्षमता का लोहा मनवाया तो दूसरी तरफ स्कूल में पढ़ाई करने की उम्र में हमारी बेटियां मातृत्व का बोझ उठा रही हैं।

छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में 15 से 19 साल की किशोरी बच्चियां मां बन रही हैं। देश की औसत बर्थ रेट से ज्यादा इन तीनों राज्यों की बर्थ रेट है। इस रिपोर्ट में एक और बात सामने आई है कि शहरों की पढ़ी लिखी महिलाएं एक या दो बच्चे चाहती हैं तो गांव की बिना पढ़ी लिखी महिलाओं के तीन या उससे ज्यादा बच्चे हैं। आइए आपको बताते हैं किस तरह शिक्षा का व्यापक असर महिलाओं के पारिवारिक जीवन पर पड़ रहा है। 

चिंता में डालती है एसआरएस की रिपोर्ट : 

केंद्र सरकार की एसआरएस की रिपोर्ट चिंता में डालती है। यह रिपोर्ट सरकार और समाज दोनों के लिए चिंता और चिंतन का विषय हो सकती है। जिस उम्र में बच्चियां स्कूल जाकर पढ़ाई लिखाई करती हैं उस उम्र में वे मां बन रही हैं। यानी 15 से 19 वर्ष की उम्र में उनकी शादी हो रही है और वे मां भी बन रही हैं।

हालांकि पिछले 10 सालों में इसमें कमी आई है लेकिन आज भी यह हालत संतोषजनक नहीं कही जा सकती। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के सरकारी अभियान जरुर चल रहे हैं लेकिन उनका कितना असर निचले तबके पर हो रहा है यह समझा जा सकता है। यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि शिक्षित महिलाएं अपने पारिवारिक फैसले ले रही हैं और वे अपना छोटा परिवार ही चाहती हैं।

ग्रेजुएट महिलाएं सिंगल चाइल्ड या ज्यादा से ज्यादा दो बच्चे चाहती हैं लेकिन गांव की बिना पढ़ी लिखी महिलाएं आज भी तीन से चार बच्चों की मां बन रही हैं। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों की हालत भी कुछ इसी तरह की है। 

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राष्ट्रीय औसत से ज्यादा फर्टीलिटी रेट : 

मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान का फर्टीलिटी रेट और बर्थ रेट दोनों राष्ट्रीय औसत से ज्यादा हैं। भारत में बर्थ रेट 18 से ज्यादा है तो इन तीनों राज्यों में ये जन्मदर 22 से ज्यादा है। यानी इन तीनों राज्यों की जन्म दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। देश की बर्थ रेट 18.4 है।

छत्तीसगढ़ की बर्थ रेट 22.3 है जिसमें गांवों की 24.1 और शहरों की जन्मदर 16.6 है। वहीं मध्यप्रदेश की जन्मदर 22.5 है जिसमें गांवों की 24.4 और शहरों की 17.5 है। राजस्थान की सीबीआर यानी क्रूड बर्थ रेट 22.9 है जिसमें गांव की 23.9 और शहर की 20.1 है। इन तीनों राज्यों की इस रिपोर्ट से यह दिखाई देता है कि गांवों में अभी भी बर्थ रेट शहरों की अपेक्षा कहीं ज्यादा है। 

देश में किशोरियों-महिलाओं की स्थिति को ऐसे समझें  

किशोरियों में बढ़ता मातृत्व: छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में 15-19 साल की किशोरियां अभी भी मां बन रही हैं, जो एक गंभीर चिंता का विषय है।

शिक्षा का प्रभाव: शिक्षित महिलाएं एक या दो बच्चों का परिवार चाहती हैं, जबकि अशिक्षित महिलाएं तीन या उससे अधिक बच्चों की मां बन रही हैं।

फर्टीलिटी रेट में अंतर: इन राज्यों का फर्टीलिटी रेट राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है, और गांवों में यह शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक है।

एसआरएस रिपोर्ट में खुलासा: केंद्र सरकार की एसआरएस रिपोर्ट के मुताबिक, 15-19 वर्ष की किशोरियों में प्रजनन दर 250-300 तक पहुँच रही है, जिससे यह स्थिति चिंताजनक बनती है।

सरकारी उपायों की आवश्यकता: सरकार को शिक्षा के स्तर में सुधार और परिवार नियोजन के बारे में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है ताकि किशोरियों के मातृत्व दर को नियंत्रित किया जा सके।

टीएफआर यानी टोटल फर्टीलिटी रेट( fertility rate) भी ज्यादा :     

देश का टीएफआर : 1.9 

राज्यटीएफआर (ग्रामीण)टीएफआर (शहरी)कुल टीएफआर
छत्तीसगढ़2.51.62.2
मध्यप्रदेश2.61.82.4
राजस्थान2.42.12.3

ऐसे समझिए किशोरियों के मां बनने के आंकड़े : 

ये रिपोर्ट कहती है कि राष्ट्रीय स्तर और अधिकांश बड़े राज्यों में आयु-विशिष्ट वैवाहिक प्रजनन दर 15-19 वर्ष आयु समूह में उच्चतम स्तर पर यानी 250-300 से उपर है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान समेत कुछ और राज्यों में ASMFR यानी उम्र के आधार पर प्रजनन दर का उच्चतम स्तर 20-24 वर्ष आयु समूह में भी पाया गया है। 30 वर्ष या उससे अधिक आयु की महिलाओं के लिए सभी बड़े राज्यों में वैवाहिक प्रजनन में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। 

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ये बात आपको आंकड़ों से समझाते हैं। 

  1. छत्तीसगढ़ में 15-19 वर्ष की किशोरियों का फर्टीलिटी रेट 303.6 है। 20-24 वर्ष में 441.2, 25-29 वर्ष 235.1 और इसके बाद फर्टीलिटी रेट एकदम से कम हो जाती है। 
  2. मध्यप्रदेश में 15-19 वर्ष की किशोरियों का फर्टीलिटी रेट 324.3 है। 20-24 वर्ष में 343.6, 25-29 वर्ष 228.6 और इसके बाद फर्टीलिटी रेट एकदम से कम हो जाती है। 
  3. राजस्थान में 15-19 वर्ष की किशोरियों का फर्टीलिटी रेट 267.7 है। 20-24 वर्ष में 385.5, 25-29 वर्ष 241.0 और इसके बाद फर्टीलिटी रेट एकदम से कम हो जाती है। 

महिलाओं के पारिवारिक जीवन में शिक्षा का असर : 

महिलाओं के जीवन में पढ़ाई लिखाई का बड़ा प्रभाव देखने में आया है। शिक्षित महिलाएं छोटा परिवार चाहती हैं। वे एक बच्चे या दो बच्चों की मां बनना चाहती हैं और वे अपनी यह इच्छा पूरी भी कर लेती हैं। उन पर सामाजिक दबाव ज्यादा काम नहीं करता।

यह रिपोर्ट बताती है कि ग्रेजुएट महिलाएं अपना छोटा परिवार चाहती हैं। ग्रेजुएट या उससे ज्यादा पढ़ी लिखी महिलाओं का एफआर छत्तीसगढ़ में 1.9, मध्यप्रदेश में 2.0 और राजस्थान में 1.6 यानी एक या दो बच्चे। वहीं गांव की अशिक्षित महिलाएं आज भी तीन या चार या उससे ज्यादा बच्चों की मां हैं।

अशिक्षित महिलाओं का एफआर छत्तीसगढ़ में 3.9, मध्यप्रदेश में 3.7 राजस्थान में 3.6 है। यानी इन महिलाओं के तीन से चार बच्चे हैं। कुल मिलाकर सरकार को ये समझना होगा कि प्रदेश के विकास का आधार शिक्षा है। महिलाएं शिक्षित होंगी तो बर्थ कंट्रोल होगा और उनके बच्चों को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं मिल पाएंगी।

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