रायपुर में पाकिस्तानी सटोरियों का बढ़ता दबदबा

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर सहित पूरे राज्य में अवैध सट्टेबाजी का कारोबार तेजी से पनप रहा है। खास तौर पर पाकिस्तानी मूल के सटोरियों ने स्थानीय लोगों की मेहनत की कमाई को निशाना बनाकर उन्हें आर्थिक रूप से कंगाल करने का खेल शुरू कर दिया है।

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Krishna Kumar Sikander
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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर सहित पूरे राज्य में अवैध सट्टेबाजी का कारोबार तेजी से पनप रहा है। खास तौर पर पाकिस्तानी मूल के सटोरियों ने स्थानीय लोगों की मेहनत की कमाई को निशाना बनाकर उन्हें आर्थिक रूप से कंगाल करने का खेल शुरू कर दिया है। ये सटोरिए कथित तौर पर रायपुर के मोवा, दलदल सिवनी और सड्डू जैसे इलाकों को अपना सुरक्षित ठिकाना बनाकर सट्टे का धंधा चला रहे हैं। स्थानीय पुलिस छोटे-मोटे सटोरियों को पकड़कर अपनी जिम्मेदारी पूरी मान लेती है, लेकिन बड़े मछलियां हमेशा पकड़ से बाहर रहती हैं। 

हाल ही में एक आईपीएस अधिकारी के साथ कुछ सटोरियों की तस्वीरें वायरल होने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, जिससे इन सटोरियों के हौसले और बुलंद हो गए हैं। रायपुर, दुर्ग, तिल्दा, भाटापारा और चकरभाठा जैसे क्षेत्रों में ये अवैध सटोरिए बेधड़क सट्टे की बुकिंग कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, ये लोग मुंबई के कुख्यात मटका किंग खत्री को भी पीछे छोड़ चुके हैं। स्थानीय नेताओं और कुछ पुलिसकर्मियों की कथित शह पर ये सटोरिए बेखौफ होकर अपना नेटवर्क फैला रहे हैं।

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तिल्दा बना छत्तीसगढ़ का सट्टा हब

तिल्दा को अब छत्तीसगढ़ का सट्टा गढ़ कहा जा रहा है, जहां सट्टेबाजी का कारोबार खुलेआम फल-फूल रहा है। 2016 में यहां सिर्फ 4-5 बड़े सट्टेबाज सक्रिय थे, लेकिन अब यह संख्या बढ़कर 16 हो गई है, जो देश-विदेश के सट्टा बाजारों से सीधे जुड़े हैं। क्रिकेट से लेकर नागपुर और मुंबई के मटका तक, तिल्दा के सटोरिए हर तरह के सट्टे में सक्रिय हैं। यह कारोबार इतना संगठित हो चुका है कि पुलिस के लिए भी इसे नियंत्रित करना चुनौती बन गया है।

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छत्तीसगढ़ का बदनाम चेहरा सट‍्टा

सट्टेबाजी के साथ-साथ ये अवैध सटोरिए नकली सामानों के कारोबार में भी माहिर हैं। नकली खोआ, पनीर, दूध, चावल, जूते-चप्पल और कपड़ों का धंधा भी इन्हीं के इशारे पर चल रहा है। छत्तीसगढ़ को नकली सामानों का गढ़ बनाकर ये लोग राज्य की छवि को धूमिल कर रहे हैं। देश में सबसे ज्यादा नकली सामान पकड़े जाने का रिकॉर्ड भी छत्तीसगढ़ के नाम है।

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राजनीतिक संरक्षण और सट्टे का खेल

हैरानी की बात यह है कि कुछ स्थानीय नेता और कथित तौर पर कांग्रेस के पार्षद इस कारोबार में संलिप्त हैं। गणपति बुक और गजानंद बुक जैसे ऑनलाइन सट्टा ऐप्स के जरिए ये लोग अरबों रुपये का लेन-देन कर रहे हैं। खरोरा और तिल्दा क्षेत्र में ये ऐप्स खुलेआम चल रहे हैं। एक नामी सटोरिया, नंदू, जो कभी मूंग बड़ा बेचकर गुजारा करता था, अब कांग्रेस नेताओं के संरक्षण में हजार करोड़ का मालिक बन चुका है। बताया जाता है कि नंदू और उसके जैसे अन्य सटोरिए गणपति, गजानंद और महादेव बुक जैसे ऐप्स के जरिए सट्टा कारोबार में 500-1000 करोड़ रुपये का लेन-देन कर चुके हैं।

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पुलिस और सरकार के सामने चुनौती

2016 से लेकर अब तक राजनीतिक संरक्षण और भ्रष्टाचार के दम पर ये सटोरिए छत्तीसगढ़ में अपनी जड़ें मजबूत कर चुके हैं। कुछ सटोरियों ने तो अपने परिवार के सदस्यों को स्थानीय राजनीति में भी घुसपैठ करा दी है। नंदू जैसे लोग, जो कभी मजदूरी करते थे, अब सट्टे के दम पर अकूत संपत्ति के मालिक बन चुके हैं। पुलिस और प्रशासन के लिए यह कारोबार न सिर्फ कानून-व्यवस्था की चुनौती है, बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार और भारत सरकार के लिए भी गंभीर खतरा बन चुका है।

लुटी जा रही मेहनत की कमाई

छत्तीसगढ़ में सट्टेबाजी और नकली सामानों का यह गोरखधंधा न केवल स्थानीय लोगों की मेहनत की कमाई को लूट रहा है, बल्कि राज्य की छवि को भी बदनाम कर रहा है। यदि पुलिस और प्रशासन इस पर सख्ती से कार्रवाई नहीं करते, तो तिल्दा और रायपुर जैसे क्षेत्र सट्टेबाजी के राष्ट्रीय केंद्र बन सकते हैं, जैसा कि राजस्थान का फलौदी आज है। जरूरत है इस अवैध कारोबार पर लगाम कसने और इसके पीछे छिपे राजनीतिक संरक्षण को उजागर करने की।

 

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