अरुण तिवारी, RAIPUR. सामान्य तौर पर आदिवासियों ( Tribal people ) को पिछड़ा माना जाता है, लेकिन राजनीतिक रूप से यह वर्ग बहुत आगे है। इनकी राजनीतिक समझ भी आम लोगों की तरह ही परिपक्व है। हम यह क्यों कह रहे हैं इसके पीछे ठोस वजह है। छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है और यहां के आदिवासियों ने यह साबित किया है कि वे किसी से पीछे नहीं हैं। पिछले दो लोकसभा चुनावों में इस वर्ग के लोगों ने नेताओं को टाटा कर नोटा ( NOTA ) को पसंद किया है। यहां की 11 लोकसभा सीटों में से आधी सीटों पर नोटा तीसरे नंबर पर रहा है। यानी बीजेपी और कांग्रेस को छोड़ दें तो बाकी उम्मीदवारों के उपर नोटा ने अपनी जगह बनाई है।
2014 में इन सीटों पर तीसरे नंबर पर रहा नोटा...
बस्तर : 38772 वोट
कांकेर : 31917 वोट
राजनांदगांव : 32384 वोट
सरगुजा : 31104 वोट
रायगढ़ : 28480 वोट
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2019 में इन सीटों पर तीसरे नंबर पर रहा नोटा...
बस्तर : 41667 वोट
कांकेर : 26713 वोट
महासमुंद : 21241 वोट
राजनांदगांव : 19436 वोट
सरगुजा : 29265 वोट
नोटा का नक्सली कनेक्शन
नोटा का नक्सली कनेक्शन भी माना जाता है। जानकार कहते हैं कि नक्सली इलाकों में नोटा में ज्यादा वोट पड़ने का कारण नक्सली प्रभाव भी कुछ हद तक माना जा सकता है। जानकार कहते हैं कि 2013 में पहली बार नोटा का विकल्प आया था। यानी यदि आपको कोई पसंद नहीं है तो नोटा को वोट देकर अपनी राय बता सकते हैं। उस वक्त नक्सलियों ने फरमान जारी किया था कि किसी को वोट न करें। यही कारण था कि उस समय नोटा को तीन फीसदी वोट मिले। नक्सलियों के कोर एरिया में नोटा का प्रयोग ज्यादा देखा गया है। बस्तर में तो पिछले लोकसभा चुनाव में चालीस हजार से ज्यादा वोट नोटा को मिले। इस बार बीजेपी कांग्रेस के सामने नोटा की भी चुनौती है। यदि हार जीत का अंतर कम रहा तो नोटा बड़ा प्रभाव डाल सकता है।