पानी में बह गए 150 करोड़, फिर भी 13 साल बाद अधर में सीप कोलार लिंक प्रोजेक्ट

मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार की अनोखी कहानी। अब हम आपको एक बेहद अलग मामला बताने वाले हैं। इसकी शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर की धरती से हुई। जहां 2012 में 137 करोड़ रुपए की लागत से एक बांध को मंजूरी मिली थी।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार की अनोखी कहानी। आपने सरकारी अधिकारियों और निर्माण कंपनियों की मिलीभगत से भ्रष्टाचार के कई किस्से देखे और सुने होंगे। अब हम आपको एक बेहद अलग मामला बताने वाले हैं। इसकी शुरुआत होती है मौजूदा केंद्रीय कृषि मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर की धरती से।

यहां 2012 में 137 करोड़ रुपए की लागत से एक बांध को मंजूरी मिली थी। अब आ गया है 2025। शिवराज भी मध्य प्रदेश से दिल्ली पहुंच चुके हैं और सूबे में डॉ.मोहन यादव की सरकार है, लेकिन ये बांध है कि अब तक बन ही नहीं पाया। यानी 13 साल से ये बांध बन ही रहा है। इसमें अब तक आम जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स के150 करोड़ रुपए से ज्यादा बर्बाद हो चुके हैं।

137 करोड़ की बर्बादी की वसूली नहीं

सीहोर की इछावर तहसील में कोलार लिंक प्रोजेक्ट के तहत सीप नदी पर बनने वाले बांध और नहरों का निर्माण 13 साल बाद भी अधूरा है। विभाग ने 2012 में इस प्रोजेक्ट का ठेका जिन दो कंपनियों को दिया था वे 137 करोड़ रुपए डकारकर भाग चुकी हैं। कार्रवाई के नाम पर इन कंपनियों को ब्लैक लिस्टेड किया गया है लेकिन सरकार को लगी करोड़ों की चपत की भरपाई नहीं हो सकी है।

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कैग रिपोर्ट में उठे सवाल

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग की रिपोर्ट ने इस प्रोजेक्ट में बरती गई लापरवाही पर सवाल उठाए गए हैं। इसके बावजूद अधिकारियों को दंडित नहीं किया गया। निर्माण का ठेका लेने वाली कंपनी कोस्टल प्राइवेट लिमिटेड और माय राइट्स इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को ब्लैक लिस्टेड कर कार्रवाई पूरी कर ली गई है। अधिकारियों ने कंपनी को फायदा पहुंचाने सुरक्षा निधि में केवल 5.49 करोड़ रुपए जमा कराए जबकि नियमानुसार 10.36 करोड़ रुपए जमा कराए जाने थे। 

प्रोजेक्ट पर नजर 

- सीप नदी सिंचाई प्रोजेक्ट की लागत 137 करोड़ अनुमानित थी जो बढ़कर 150 करोड़ तक पहुंच गई है। 
-  सीप नदी पर 265 मीटर लंबा और 22 मीटर ऊंचा पहला बांध 
- दूसरा बांध कालियादेव नाले के पास  200 मीटर लंबा और 6.80 मीटर ऊंचा है।
- दोनों बांधों के बीच दो किलोमीटर की दूरी है और उन्हें आपस में नहरों से जोड़ा है।
- तीसरा बांध घोड़ा पछाड़ नाले के पास करीब ढाई किमी दूरी पर 117 मीटर लंबा और 6.69 मीटर ऊंचा है।​​​​​​​
- इस प्रोजेक्ट के तहत 4. 6 किमी लंबी ओपन कैनाल और 5.69 किमी लंबी अंडरग्राउंड टनल उन्हें जोड़ती हैं। 
- 13 गांवों की जमीन को इस प्रोजेक्ट तहत सिंचाई सुविधा देने का लक्ष्य है। 
- 5.40 करोड़ लीटर से अधिक पानी इस प्रोजेक्ट के तहत भोपाल के कोलार बांध को भी पहुंचाया जाना था।

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कंपनी बदलकर लुटाते रहे खजाना

जलसंसाधन विभाग के रहटी उपसंभागीय कार्यालय की निगरानी में कोलार लिंक प्रोजेक्ट के तहत सीप नदी पर बांध और नहरों का निर्माण शुरू हुआ था। 2012 में कोस्टल प्राइवेट लमिटेड और माय राइट्स इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने जो काम लिया था वह आठ साल बाद यानी 2018 तक अधूरा ही रहा।

8 साल में घटिया और अधूरा निर्माण छोड़ने वाली कंपनियों को ब्लैक लिस्टेड करने के बाद तीसरी कंपनी की गति धीमी रही तो अब छोटी फर्मों को ठेका दिलाकर करा कराया जा रहा है। इस पर अलग से 23 करोड़ से ज्यादा खर्च हुआ है।  

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अफसरों की लापरवाही बनी वजह 

सीप नदी पर आकार लेने वाली सिंचाई परियोजना की बर्बादी की वजह और कोई नहीं बल्कि जल संसाधन विभाग ही बना है। प्रोजेक्ट की स्वीकृति के बाद मुख्यालय से लेकर उपसंभाग स्तर तक किसी अधिकारी ने ध्यान नहीं दिया। बांध और नहरों में घटिया सामग्री लगती रही। जहां ठोस पिचिंग होनी थी वहां मिट्टी-मुरम भरकर काम चलाया गया नतीजा नजर निर्माण पूरा होने से पहले ही ढह गईं।

बांध में अनगिनत जगह से पानी का रिसाव जारी है। इस प्रोजेक्ट के 13 साल तक अटकने के लिए जल संसाधन विभाग के तत्कालीन एक्जीक्यूटिव इंजीनियर रेहटी, एक्जीक्यूटिव इंजीनियर सीहोर, सुपरवाइजिंग इंजीनियर और मुख्यालय स्तर पर चीफ इंजीनियर भी जिम्मेदार हैं। 

वर्तमान में इस प्रोजेक्ट की निगरानी एक्जीक्यूटिव इंजीनियर शुभम अग्रवाल हैं। जबकि उनसे पहले विभाग के चीफ इंजीनियर राकेश अग्रवाल, एक्जीक्यूटिव इंजीनियर अजय वर्मा, एसडीओ कुमकुम पटेल सहित इन 13 वर्षों में प्रोजेक्ट की निगरानी करने वाले दर्जन भर अधिकारी भी उत्तरदायी हैं। 

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जल संसाधन विभाग सीहोर सिंचाई परियोजना कैग की रिपोर्ट नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कोलार प्रोजेक्ट
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