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BHOPAL.मध्यप्रदेश पुलिस इन दिनों चौतरफा सवालों से घिरी है। सिवनी हवाला कांड में पुलिस के काम पर हाईकोर्ट पहले ही सख्त टिप्पणी कर चुका है। मंदसौर के मल्हारगढ़ थाने में एक युवक को जबरन आरोपी बनाने की घटना ने विभाग की साख पर बट्टा लगा दिया है।
ठीक ऐसे समय में एआईजी राजेश मिश्रा के मामले में मध्यप्रदेश पुलिस जांच का ढोंग कर रही है। पुलिस का रवैया वही है, टालमटोल, लीपापोती और अफसर को बचाने का खुला खेल।
राजस्थान के जयपुर की फैशन डिजाइनर ने लोकायुक्त के पूर्व एसपी और वर्तमान में एआईजी राजेश मिश्रा पर 30 लाख 59 हजार की धोखाधड़ी, विश्वासघात, शोषण और पद का दुरुपयोग करने के गंभीर आरोप लगाए हैं।
सबूतों के ढेर हैं। डॉक्यूमेंट्स हैं। चैट्स के रिकॉर्ड्स हैं। होटल रसीदें और लेन-देन के बिल होने के बावजूद 20 दिन से मध्यप्रदेश पुलिस आईपीएस राजेश मिश्रा पर कार्रवाई करने के बजाय जांच-जांच खेल रही है।
ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर पुलिस मिश्रा को क्यों बचा रही है? क्या एक आईपीएस अधिकारी के सामने पूरी मशीनरी नतमस्तक है? क्या यहां भी पुलिस लीपापोती करेगी?
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1. 31 अक्टूबर 2025 से शुरू हुई कहानी…
फैशन डिजाइनर ने सारे सबूतों के साथ 31 अक्टूबर को शिकायत दर्ज कराई थी।
2. 12 नवम्बर: जांच आईपीएस तरुण नायक को सौंपी गई।
3. 21 नवम्बर: फैशन डिजाइनर को जयपुर से भोपाल बुलाकर बयान लिए गए।
लेकिन यहीं से पुलिस का जांच का नाटक शुरू हो गया। 20 दिन से फाइल थमी हुई है। सबूत जमे हुए हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर सन्नाटा पसरा है।
हर कदम पर यह सवाल गूंज रहा है कि क्या एआईजी मिश्रा को बचाने की तैयारी पहले से चल रही थी?
यहां फैशन डिजाइनर का कहना है कि मैं जिसे अपना सबकुछ मान बैठी थी, उसने ही मेरा भरोसा तोड़ दिया। उसकी हर बात पर भरोसा करके मैं अपनी जिंदगी बर्बाद कर बैठी।
उधर एआईजी राजेश मिश्रा मीडिया से कहते हैं कि जांच होने दीजिए, किसी तरह का व्यवसायिक संबंध नहीं था। लेकिन फैशन डिजाइनर के सबूत कुछ और कहानी कहते हैं। द सूत्र के पास पूरे दस्तावेज हैं।
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डीजीपी को भेजी शिकायत
फैशन डिजाइनर ने डीजीपी कैलाश मकवाना को भेजी लिखित शिकायत में पूरे मामले को षड्यंत्र बताया है। आरोप इतने गंभीर हैं कि सामान्य परिस्थितियों में उसी दिन एफआईआर दर्ज हो जानी चाहिए थी।
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दूसरा, इस मामले में तो अहम पहलू यह भी है कि जब देश और प्रदेश में महिला सशक्तिकरण की बातें होती हैं तो फिर जांच में ऐसी लापरवाही क्यों बरती जा रही है?
फैशन डिजाइनर की शिकायत के प्रमुख बिंदु
पद का इस्तेमाल और विश्वासघात
शिकायतकर्ता के अनुसार, एआईजी मिश्रा ने अपने पद के प्रभाव का इस्तेमाल किया और भावनाओं से खेलकर शारीरिक, मानसिक और आर्थिक नुकसान पहुंचाया।पत्नी के फैशन बिजनेस का झांसा
एक मजबूत कहानी रची गई। बुटीक बढ़ाएंगे, ब्रांड लॉन्च करेंगे, मिलकर काम करेंगे। विश्वास जीतने के बाद यही बिजनेस कथित धोखाधड़ी का आधार बन गया।शादी का प्रलोभन और निजी संबंध
फैशन डिजाइनर ने लिखा है कि मिश्रा उन्हें मंदिर लेकर गए। धार्मिक रस्में कराईं और विश्वास दिलाया कि यह रिश्ता सामाजिक रूप से भी वैध होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।सबूतों का अंबार
होटल बिल, ज्वेलरी खरीद की रसीदें, क्रेडिट कार्ड भुगतान, सीसीटीवी फुटेज, व्हाट्सऐप चैट, तस्वीरें सब कुछ है। इन सबके बावजूद पुलिस का रवैया संदिग्ध है।
26 लाख के हीरे के गहने, 4 लाख की शॉपिंग
पीड़िता का आरोप कि मिश्रा दंपति ने 26 लाख के हीरे के गहने उससे खरीदे, पैसे उससे दिलवाए और बाद में संपर्क तोड़ दिया। जयपुर के वेलेंटाइन ज्वेलरी हाउस में मिश्रा, उनकी पत्नी और दोनों बेटियां मौजूद थीं।
पेमेंट फैशन डिजाइनर से नकद करवाया गया। वादा किया गया कि रकम लौटा दी जाएगी, लेकिन हुआ क्या? 6 अक्टूबर को होटल से निकलते ही नंबर ब्लॉक कर दिए गए।
इसके अलावा होटल, रेस्टोरेंट, शॉपिंग, बर्थडे पार्टी सबका भुगतान पीड़िता ने किया। कुल खर्च 30.59 लाख तक पहुंच गया।
क्या एक आम आरोपी के खिलाफ इतनी सामग्री होती तो पुलिस 20 दिन चुप रहती? यह वही सवाल है जो अब हर ओर उठ रहा है।
नलखेड़ा में पति-पत्नी बनकर हवन
फैशन डिजाइनर के आरोप यहीं नहीं थमे। उन्होंने बताया कि कई बार उन्हें होटलों में अपनी पत्नी बताकर ठहराया गया और निजी संबंध बनाए गए। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि नलखेड़ा स्थित बगलामुखी मंदिर में पति-पत्नी बनकर हवन किया गया। जब पुजारी ने जोड़े से हवन पूछा, तो उन्होंने ही कहा हां, जोड़े के रूप में ही करेंगे।
फैशन डिजाइनर ने गंभीर बिंदु उठाया
2016 में मिश्रा पर एससी-एसटी एक्ट का केस दर्ज हुआ था, जिसकी जानकारी उन्होंने एमपी पुलिस को नहीं दी। इस केस में वे बॉम्बे हाईकोर्ट तक गए, सिलवासा पुलिस ने कई बार बुलाया, लेकिन विभाग को इसकी भनक तक नहीं लगने दी।
क्या यह विभागीय नियमों का सीधा उल्लंघन नहीं? ऐसी स्थिति में भी कार्रवाई क्यों रोकी गई?
यह वही सवाल प्रश्न है, जो पूरे पुलिस महकमे को अंदर तक हिला देना चाहिए। लेकिन हालात उलटे दिख रहे हैं। अधिकारी को बचाने की गतिविधि ज्यादा दिख रही है, जांच कम।
द सूत्र ने पूरे मामले में पुलिस का पक्ष जानने के लिए स्पेशल डीजी पवन श्रीवास्तव से फोन पर बात करने का प्रयास किया।
लेकिन उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया।
अब फैशन डिजाइनर कोर्ट पहुंचीं
20 दिन की ढुलमुल जांच से परेशान होकर पीड़िता ने अब कानूनी रास्ता अपनाया है। उन्होंने वकील के जरिए DGP को लीगल नोटिस देकर कहा है कि शिकायत, चैट्स, सबूत देने के बावजूद एफआईआर दर्ज नहीं हुई। कुछ वरिष्ठ अधिकारियों पर आरोपी अधिकारी को बचाने का आरोप लगाया गया है।
जांच के नाम पर समझौते का दबाव डालने की कोशिश की जा रही है। अब नोटिस में चेतावनी दी गई है कि 15 दिन में ठोस कार्रवाई नहीं हुई तो वे कोर्ट का रुख करेंगी।
यानी जांच अब पुलिस की पकड़ से निकलकर अदालत की चौखट पर पहुंच जाएगी। आपको बता दें कि सिवनी हवाला कांड, मंदसौर में झूठे फंसाए गए युवक के मामले में अदालत पहले ही पुलिस को फटकार चुकी है।
अब तीसरी बार पुलिस पर गंभीर सवाल खड़े हैं। क्या कोर्ट को हर बार पुलिस को जगाना पड़ेगा? क्या मिश्रा के मामले में भी वही ढिलाई दोहराई जा रही है?
एक ही सवाल... कार्रवाई कब?
यह केस पुलिस की विश्वसनीयता पर सीधा हमला है। सारे दस्तावेज, सबूत, बयान, लेन-देन के बिल, चैट रिकॉर्ड, सब पुलिस के पास हैं। फिर भी कार्रवाई शून्य है।
अब एक ही सवाल गूंज रहा है कि क्या पुलिस विभाग एक एआईजी के सामने इतना कमजोर है? क्या लीपापोती का खेल जारी रहेगा? क्या फिर कोर्ट ही पुलिस को जगाएगा? जवाब पुलिस के पास है, लेकिन भरोसा जनता का टूट रहा है।
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