भोपाल |
राज्य लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र में लैब सहायक व अन्य अहम 12 पदों पर मनमाने तरीके से नियुक्तियां किया जाने का मामला सामने आया है। इन नियुक्तियों को मस्टररोल से पहले संविदा में बदला गया और अब इन्हें नियमित करने की तैयारी है।आश्चर्य की बात यह कि जिम्मेदार जांच करने की जगह नियुक्तियां पुरानी बताकर टालने का जतन कर रहे हैं।
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अहम पदों पर मनमाने तरीके से नियुक्ति
राज्य लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र आयुर्वेद औषधियों पर शोध व दवाएं तैयार करता है। केंद्र में विंध्या हर्बल्स ब्रांड नाम से करीब 3 सौ प्रकार की दवाएं बनती हैं,लेकिन इनके लिए योग्य व्यक्तियों को नियुक्त किया जाना चाहिए,लेकिन इसके उलट मैन्यूफेक्चरिंग केमिस्ट व दवा गुणवत्ता नियंत्रक व प्रयोगशाला सहायक व प्रभारी जैसे पद राजनीतिक सिफारिश पर मस्टररोल से भर दिए गए। बाद में इन्हें गुपचुप तरीके से संविदा पद में परिवर्तित कर दिया गया और अब नियमितीकरण की प्रक्रिया पर जोर है। संबंधित जनों को मस्टररोल पर रखने में भी विज्ञापन व मेरिट प्रक्रिया को नहीं अपनाया गया।
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इन 12 पदों पर नियुक्तियों को लेकर शिकायत
राज्य लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र सहकारिता की अवधारणा पर काम करता है। इसका गठन भी सहकारिता कानून के तहत किया गया। हालांकि यह वन विभाग की एक इकाई राज्य लघु वनोपज संघ के अधीन है। मप्र कर्मचारी कांग्रेस व जन समस्या समाधान समिति ने सहकारिता विभाग से संबंधित नियुक्तियों को लेकर शिकायत की है।
संगठनद्वय की ओर से डॉ. विजय सिंह मैन्यु फैक्चरिंग कैमिस्ट , डॉ.संजय शर्मा क्वालिटी कंट्रोल कैमिस्ट,विजयता श्रीवास्तव लैब सहायक (रसायन),राकेश नागेश्वर प्रशिक्षण समन्वयक,संजीव दुबे हर्बेरियम व म्यूजियम प्रभारी,दिवाकर सिंह डाटा एंट्री ऑपरेटर,किरण हरोड़े डाटा एंट्री ऑपरेटर, केदार सिंह पवार सहायक ग्रेड -03 व वाहन चालक राजकुमार चंद्रवंशी,रामचरण अहिरवार तथा संदेश वाहक लालबहादुर श्रीवास्तव की नियुक्तियों पर सवाल उठाए हैंं। शिकायत में कहा गया सिफारिश आधार पर हुईं इन नियुक्तियों में पारदर्शी प्रक्रिया को नहीं अपनाया गया।
बता दें कि दवा उत्पादन का काम अयोग्य हाथों में होने से केंद्र की अनेक दवाएं प्रयोगशालाओं में लगातार फेल हो रही हैं। इससे संघ को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
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सहकारिता विभाग का पत्र ठंडे बस्ते में
इस मामले में सहकारिता विभाग ने भी गत 2 अप्रैल को प्रबंध संचालक राज्य लघु वनोपज संघ को पत्र लिखकर जांच करने के लिए कहा। सहकारिता अपर आयुक्त ने जांच प्रतिवेदन की भी मांग की ताकि नियमानुसार कार्यवाही की जा सके।
हैरत की बात यह कि इस मामले में जांच करना तो दूर,संघ प्रबंध संचालक विभाष कुमार ठाकुर ने ऐसा कोई पत्र मिलने पर अनभिज्ञता जताई। बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि यह नियुक्तियां 15 साल पुरानी हैं लेकिन ये संविदा संवर्ग में कब बदलीं, इसका उनके पास कोई जवाब नहीं।
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अवैध को वैध नहीं करने के हैं निर्देश
उच्च न्यायालय का एक आदेश है कि सरकारी पदों पर अनियमित को नियमित किया जा सकता है,लेकिन अवैध को वैध नहीं किया जा सकता। इसी फैसले को आधार बनाकर राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग ने भी साल 2012 में एक परिपत्र जारी कर सभी विभागों को अवैध नियुक्तियों को रद्द किए जाने के निर्देश दिए हैं,लेकिन राज्य लघु वनोपज संघ ने जीएडी के इस निर्देश को भी नजरअंदाज किया जाता रहा।