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भोपाल गैस त्रासदी को पूरे 41 साल बीत चुके हैं। उस भयानक रात का जहर आज भी बाकी है। आज भी वो जहर शहर और लोगों का पीछा नहीं छोड़ रहा है। उस त्रासदी में कई लोगों की मौत भी हुई थी। कई लोग आज भी उस जहरीली राख के कारण कई बीमारियों से जूझ रहे हैं। अब एक नई और बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है।
यह मुश्किल 899 टन जहरीली राख की है। यह राख एक चलती हुई टाइम बम जैसी है। इसका मतलब है खतरा कभी भी फूट सकता है। अगर सही निपटान नहीं हुआ तो खतरा बढ़ जाएगा। आने वाली पीढ़ियों को इसका बुरा असर झेलना पड़ेगा। यह कचरा अब एक बड़ा पर्यावरण संकट बन चुका है। सरकार को जल्द से जल्द इसका हल निकालना होगा।
899 टन जहरीली राख आखिर क्या है
यह राख यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली है। यह फैक्ट्री के जहरीले कचरे को जलाने से बनी है। इस कचरे को खत्म करना बहुत जरूरी था। जून 2025 में पीथमपुर के ट्रीटमेंट प्लांट में यह काम हुआ था। कुल 337 मीट्रिक टन कचरा जलाया गया था।
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मगर उसकी राख सोचे हुए से तीन गुना निकल आई। यह राख 899 टन वजन की बन गई। यह भस्मीकरण प्रक्रिया (Incineration process) 55 दिनों तक चली थी। आज कई महीने बीत चुके हैं पर राख का हल नहीं है। राख अभी भी लीक प्रूफ कंटेनरों में रखी है। इससे जहर बाहर नहीं आ सकता है। यह कंटेनर एक शेड के अंदर सुरक्षित पड़े हैं, लेकिन अंतिम समाधान अभी नहीं मिल पाया है। राख का यूं पड़ा रहना सबके लिए चिंता की बात है।
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हाई कोर्ट की रोक से बढ़ी मुश्किलें
इस काम में हाई कोर्ट की रोक लग गई है। कोर्ट के फैसले से मुश्किलें और बढ़ गई हैं। अक्टूबर महीने में कोर्ट ने एक योजना को खारिज कर दिया है। यह योजना सरकार ने बनाई थी। योजना में राख को इंसानी बस्ती के पास रखना था। यह दूरी सिर्फ 500 मीटर की थी। इस पर कोर्ट ने सख्त ऐतराज जताया।
कोर्ट ने साफ शब्दों में निपटान से मना कर दिया। कोर्ट ने कहा नया और सुरक्षित स्थल खोजा जाए। नया स्थल आबादी और जल स्रोतों से दूर होना चाहिए। इसका मतलब है लोगों की सुरक्षा सबसे ऊपर है। इस आदेश के बाद पूरी प्रक्रिया रुक गई है। अब सारा काम अधर में लटक गया है। सरकार को अब नई रणनीति बनानी होगी।
निपटान योजना पर भारी कन्फ्यूजन
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी उलझन में है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि आगे क्या करें। एक बड़े अधिकारी ने यह बात मानी कि अक्टूबर में अचानक तेज बारिश हुई। इससे बारिश से लैंडफिल बनाने में देर हो गई थी। लैंडफिल एक सुरक्षित गड्ढा होता है। फिर कोर्ट का आदेश आ गया और काम रुक गया।
अब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नया स्थल ढूंढना होगा। यह एक सुरक्षित और सही जगह होनी चाहिए। नया स्थल ढूंढना एक लंबी और थकाने वाली प्रक्रिया है। इसमें बहुत ज्यादा समय लग सकता है। पहले योजना थी कि नवंबर तक लैंडफिल तैयार होगा और दिसंबर तक राख को दफन कर दिया जाएगा। अब यह काम होना असंभव लग रहा है। तारीखें आगे बढ़ती ही जा रही हैं।
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स्थानीय लोगों का बड़ा डर
पीथमपुर के स्थानीय लोगों में डर बढ़ रहा है। वे इस निपटान का जोरदार विरोध कर रहे हैं। उन्हें अपने भविष्य की चिंता है। यह राख आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरा है। पीथमपुर बचाओ समिति के हेमंत हिरोले कहते हैं यह राख परमाणु बम से कम नहीं। इसका मतलब है बहुत बड़ा नुकसान होगा।
यह जगह राख दफनाने के लिए बिल्कुल सुरक्षित नहीं है। यहां निपटान बिल्कुल नहीं होना चाहिए। हाई कोर्ट ने भी यहां निपटान से साफ मना किया है। सरकार को अब दूसरी जगह तलाशनी होगी। लोगों का डर होना बिल्कुल सही और वाजिब है। जहरीली राख मिट्टी,पानी और हवा में मिल सकती है। इससे पर्यावरण खराब हो जाएगा। यह लंबे समय तक बड़ा खतरा पैदा करती रहेगी। इस खतरे को रोकना बहुत जरूरी है।
क्या हम इतिहास से सबक सीखेंगे
भोपाल गैस त्रासदी दुनिया की सबसे बड़ी घटना थी। यह एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना थी। 41 साल बाद भी उसका जहर खत्म नहीं हुआ है। अब यह 899 टन जहरीली राख नया संकट है। यह राख भविष्य पर नया काला साया डाल रही है। यह सिर्फ कचरे का निपटान भर नहीं है।
यह MP सरकार के लिए बड़ा इम्तिहान है। अब सरकार को जिम्मेदारी दिखाने का वक्त आ गया है। हमें तय करना है कि क्या हम सीखेंगे या फिर वही गलती फिर दोहराई जाएगी। भोपाल गैस त्रासदी के जख्म अभी हर किसी के हरे हैं।
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