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भोपाल. मध्य प्रदेश बीजेपी में अंदरखाने कुछ तो पक रहा है। प्रदेश के नेताओं की अचानक शीर्ष नेतृत्व से बढ़ी मेल-मुलाकातें तो इसी तरफ इशारा कर रही हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने गुरुवार, 13 फरवरी को दिल्ली प्रवास के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इससे पहले वीडी शर्मा शाह से मिले थे। उनसे पहले डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी।
इन मुलाकातों की तस्वीरें सोशल मीडिया में आने के बाद सभी नेताओं ने इसे अपनी पार्टी के अनुशासन तले सौजन्य और शिष्टाचार भेंट ही करार दिया, लेकिन ये पूरी सियासी इबारत प्रदेश अध्यक्ष के चयन को लेकर लिखी जा रही है।
गौरतलब है कि भारी रस्साकसी के बीच जिला अध्यक्षों के चुनाव हो गए हैं। बीजेपी ने इसमें भी बेहद खास रणनीति अपनाई। सभी जिलों के अध्यक्षों की सूची रात 9 बजे के बाद जारी की गई। वैसे तो कहीं सीधे तौर पर विरोध के सुर नहीं फूटे, लेकिन कुछेक जिलों में जहां विरोध उठा भी, वहां सुबह होने से पहले ही समन्वय कर लिया गया।
पांच दिन में तीन बड़े नेता बंगले पर पहुंचे
अब मामला प्रदेश अध्यक्ष पर आ टिका है। सूबे में एक महीने से सियासी गुणा-भाग लगाए जा रहे हैं। तमाम प्रस्तावित नामों के बीच नरोत्तम मिश्रा इन दिनों एकदम से चर्चाओं में उभरे हैं। पिछले पांच दिन में बीजेपी के तीन बड़े नेता नरोत्तम मिश्रा से उनके बंगले पर जाकर मिल चुके हैं। 9 फरवरी को बीजेपी के वरिष्ठ नेता व मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने नरोत्तम से मुलाकात की थी। फिर 12 फरवरी को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थक मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, मंत्री तुलसी सिलावट और पूर्व मंत्री प्रभुराम चौधरी के साथ नरोत्तम के बंगले पर पहुंचे और बंद कमरे में उनसे बातचीत की। अब 13 फरवरी को बीजेपी मध्यप्रदेश के प्रभारी डॉ.महेंद्र सिंह ने नरोत्तम के बंगले पर पहुंचकर उनसे चर्चा की। इससे पहले बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल जैसे नेताओं से भी नरोत्तम की बात हुई है।
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आखिर क्या हैं इन मुलाकातों के मायने?
अब ये क्या नरोत्तम की प्रेशर पॉलिटिक्स है? वे क्या चाहते हैं? क्या बीजेपी उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी सौंप रही है अथवा बीजेपी उन्हें साधकर किसी तरह का डैमेज कंट्रोल कर रही है...ये तो तय नहीं है, लेकिन जिस तरह से सियासी मेल मुलाकातों का दौर चल रहा है, उससे ये पक्का है कि अंदर ही अंदर कोई सियासी खिचड़ी पक रही है। हालांकि राजनीति के जानकार इसे दूसरे नजरिए से भी देखते हैं। इसके पीछे वे बीजेपी की रणनीति बताते हैं। होता कुछ यूं है कि जिस नेता का नाम चर्चा में लाया जाता है, मीडिया और बाकी नेताओं का फोकस उसकी तरफ हो जाता है और यहां बीजेपी के नंबर 1, नंबर 2 कोई और ही नाम लाकर सियासत को नया आयाम दे देते हैं।
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चुनाव प्रभारी की औपचारिक बैठक होना बाकी
कुल मिलाकर दिल्ली में बीजेपी की जीत के बाद अब वहां मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान होना है। इसी बीच मध्यप्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर भी मुहर लग जाएगी। इसे लेकर सियासी गलियारों में हलचल तेज है। बीते डेढ़ महीने से पार्टी के अंदरूनी खेमों में गहन मंथन चल रहा है, जिसमें प्रदेश से लेकर केंद्रीय स्तर तक कई दौर की चर्चाएं हो चुकी हैं। अब अंतिम निर्णय से पहले केंद्रीय मंत्री व मध्यप्रदेश के लिए नियुक्त चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान की औपचारिक बैठक होनी है, जिसके बाद तस्वीर और साफ हो जाएगी।
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राजनीतिक समीकरणों के केंद्र में नरोत्तम मिश्रा
वैसे अचानक नरोत्तम मिश्रा के केंद्र में आने के पीछे एक वजह यह भी बताई जाती है कि बीजेपी जिस तरह से राज्यों में सोशल इंजीनियरिंग कर रही है, उससे वीडी शर्मा के रिप्लेसमेंट के रूप में नरोत्तम सबसे मुफीद किरदार होंगे। अव्वल तो वे सामान्य वर्ग से आते हैं, दूसरा केंद्र में भी उनकी पूछपरख है। उन्हें हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जहां उनके प्रभार वाली सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। इस सफलता ने पार्टी नेतृत्व की नजर में उनका कद और बढ़ा दिया है। ऐसे में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रदेश संगठन में उन्हें कोई बड़ी भूमिका मिल सकती है।
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