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Photograph: (thesootr)
पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को शहडोल न्यायालय ने बड़ी राहत दी है। अदालत ने उनके खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी है। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि शास्त्री ने प्रयागराज महाकुंभ के दौरान यह कहा था कि जो महाकुंभ में नहीं आएगा, वह पछताएगा और देशद्रोही कहलाएगा।
याचिका पर कोर्ट ने क्या कहा?
इस बयान को लेकर संदीप तिवारी ने याचिका दायर की थी, जिसमें आरोप था कि यह बयान असंवैधानिक और भड़काऊ है, और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं और आईटी एक्ट की धारा 66A, 67 के तहत कार्रवाई की मांग की थी। याचिका में यह भी दावा किया गया था कि शास्त्री ने धार्मिक भावनाओं को भड़काया और समाज में अशांति पैदा करने की कोशिश की।
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कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट की सुनवाई के दौरान पंडित शास्त्री की तरफ से उनके अधिवक्ता समीर अग्रवाल ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि यह बयान धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवचन के तहत दिया गया था, और इसमें किसी भी व्यक्ति या वर्ग का अपमान नहीं किया गया। शास्त्री के बयान को किसी प्रकार की उकसावे वाली भाषा के रूप में नहीं लिया जा सकता था।
अदालत ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद पाया कि परिवाद में कोई ठोस प्रमाण नहीं है, और इस कारण से शास्त्री के खिलाफ किसी भी प्रकार के कानूनी कदम उठाने की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने संज्ञान लेने से इनकार कर दिया और याचिका को खारिज कर दिया।
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न्याय का संदेश
शहडोल कोर्ट का फैसला आने के बाद पंडित धीरेंद्र शास्त्री के अधिवक्ता समीर अग्रवाल ने कहा कि यह अदालत का निर्णय न्याय की जीत है। उन्होंने कहा, "यह दिखाता है कि किसी की छवि को अफवाहों और गलत व्याख्याओं के आधार पर धूमिल नहीं किया जा सकता। यह मामला धार्मिक प्रवचन की मर्यादा से जुड़ा था और कोई भी आपत्तिजनक उद्देश्य नहीं था।"
अधिवक्ता ने यह भी कहा कि अदालत ने यह स्पष्ट किया कि किसी के खिलाफ बिना ठोस प्रमाण के कोई मामला नहीं चलाया जा सकता। इस फैसले से एक महत्वपूर्ण संदेश गया है कि न्यायालय को केवल वास्तविक तथ्यों के आधार पर निर्णय लेना चाहिए, न कि समाज में चल रही अफवाहों के आधार पर।
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फैसले का असर
यह फैसला पंडित धीरेंद्र शास्त्री के लिए बड़ी राहत लेकर आया है। उनके खिलाफ विवादों और आरोपों का सामना करना पड़ा था, लेकिन अदालत ने यह साबित कर दिया कि बिना ठोस प्रमाण के किसी पर आरोप लगाना गलत है। इस फैसले से यह भी सिद्ध हुआ कि किसी व्यक्ति या धर्मगुरु के बयान को संदर्भ और उद्देश्य के बिना गलत तरीके से पेश करना समाज में भ्रम पैदा कर सकता है।
यह फैसला न केवल पंडित धीरेंद्र शास्त्री के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश है कि धार्मिक प्रवचन और आध्यात्मिक बातों को राजनीतिक या व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं तोड़ा-मरोड़ा जा सकता।