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मध्य प्रदेश के दमोह में अवैध रूप से संचालित किए जा रहे एक हॉस्टल से बाल कल्याण समिति द्वारा 12 बच्चों को रिकवर किया गया था। साथ ही उन्हें बाल संजीवनी आश्रम में रखा गया था। जिसके बाद उनके माता-पिता द्वारा हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उनका संरक्षण प्राप्त किए जाने की बात कही गई है। हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में भी सुनवाई के दौरान बच्चों को कोर्ट में पेश किए जाने का निर्देश दिया गया था। जिस पर रिकवर किए गए बच्चों की उपस्थिति के बाद बाल कल्याण समिति और बच्चों के माता-पिता के सुझाव के आधार पर बच्चों का संरक्षण माता-पिता को देते हुए याचिका का निपटारा किया गया ।
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माता-पिता ने दायर की बच्चों की कस्टडी के लिए याचिका
मध्य प्रदेश के दमोह जिले में क्रिश्चियन कॉलोनी स्थित एक मकान में अवैध रूप से संचालित हो रहे हॉस्टल का भंडाफोड़ हुआ है। आरोपी प्रवीण शुक्ला के खिलाफ लोगों की शिकायत के बाद कोतवाली पुलिस ने कार्रवाई करते हुए इस हॉस्टल से 12 बच्चों को रिकवर किया। जिसके बाद उन्हें बाल संरक्षण समिति (CWC) के हवाले कर दिया गया, जहां से आगे की कार्रवाई के तहत सभी बच्चों को सागर के बाल संजीवनी आश्रम में भेजा गया। इस घटना के बाद बच्चों के माता-पिता ने अपने बच्चों की कस्टडी पाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने बच्चों को कोर्ट में पेश करने के निर्देश दिए हैं ताकि उनकी स्थिति की सही जानकारी प्राप्त की जा सके और माता-पिता के दावों की जांच की जा सके।
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नवजागृति स्कूल में ही होगी इस शैक्षणिक वर्ष की पढ़ाई
जबलपुर हाईकोर्ट में माता-पिता ने याचिका दायर कर अपने बच्चों की कस्टडी लेने की अनुमति मांगी थी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि बच्चों को सुरक्षित रूप से कोर्ट में पेश किया गया है और उनके माता-पिता भी मौजूद हैं। बच्चों ने कोर्ट को अवगत कराया कि वह दमोह के नवजागृति स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं और वे 8वीं से 12वीं तक की कक्षा में पढ़ाई कर रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि जिस आवासीय परिसर में अब तक बच्चे रह रहे थे, वहां उन्हें किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं थी। माता-पिता ने कोर्ट में यह स्पष्ट किया कि बच्चों के रहने के लिए वह निजी तौर पर एक आवासीय परिसर किराए पर लेंगे ताकि बच्चों की पढ़ाई में कोई बाधा न आए। कोर्ट ने यह आदेश किया कि बच्चों को कम से कम इस शैक्षणिक वर्ष तक अपनी पढ़ाई पूरी करने दी जानी चाहिए वरना यह साल उनके भविष्य को खराब कर सकता है, क्योंकि कुछ बच्चे दसवीं कक्षा के छात्र हैं वहीं कुछ बच्चे 12वीं कक्षा में पढ़ रहे हैं।
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शासन की ओर से रखा गया पक्ष
शासन की ओर से नियुक्त महाधिवक्ता ने उस परिसर को लेकर चिंता व्यक्त की है, जहां बच्चों को रखा गया था। बताया गया कि यह परिसर छात्रावास के रूप में संचालित किया जा रहा था। इसके संचालक के खिलाफ कुछ शिकायतें भी प्राप्त हुई थीं, जिसके बाद बच्चों को बाल कल्याण समिति द्वारा बाल संजीवनी आश्रम, सागर में भेज दिया गया। उन्होंने ये बताया है कि बच्चों के माता-पिता से संपर्क नहीं हो पाया था। जिस वजह से बच्चों को संजीवनी आश्रम में रखा गया था, लेकिन यदि बच्चों के माता-पिता बच्चों को ले जाने चाहते है तो उसमें बाल संरक्षण समिति को किसी भी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं है। हाई कोर्ट में उपस्थित होकर बाल कल्याण समिति, सागर की अध्यक्ष किरण शर्मा सहित समिति के सदस्यों ने सुझाव दिया कि यदि माता-पिता चाहें, तो इस शैक्षणिक वर्ष की पढ़ाई पूरी होने तक उनके बच्चों को वैकल्पिक रूप से शासकीय छात्रावास, उत्कृष्ट विद्यालय दमोह में रखने का विकल्प दिया जा सकता है।
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माता-पिता की कस्टडी के लिए जारी किए आदेश
याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संदीप सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच में हुई। जिसमें उन्होंने बाल संरक्षण समिति द्वारा वैकल्पिक सुझाव दिए जाने की सराहना करते हुए बच्चों की कस्टडी उनके माता-पिता को दिए जाने की बात कही है। साथ ही बच्चों को इस शैक्षणिक सत्र में नवजागृति स्कूल दमोह में अपनी शिक्षा पूरी करने का भी निर्देश दिया है। इसके साथ ही उन्होंने बाल कल्याण समिति सागर को नियमित रूप से बच्चों के साथ बातचीत करने और यह सुनिश्चित करने भी आदेश दिया है कि उन्हें उचित शिक्षा मिल रही है या नहीं। वहीं इस शैक्षणिक सत्र में उनकी शिक्षा नियमित रूप से जारी हो रही है या नहीं उसके लिए साप्ताहिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश दिए हैं। यह शैक्षणिक वर्ष खत्म होने के बाद माता पिता बाल कल्याण समिति के द्वारा आगे के निगरानी की आवश्यकता के बिना उसी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने या किसी अन्य स्थान में बच्चों की शिक्षा के लिए बाध्य नहीं होंगे। इस आधार याचिका का निपटारा किया गया। साथ ही अदालत ने मामले की अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए अगली सुनवाई 18 फरवरी 2025 को तय की है।
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