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Photograph: (the sootr)
BHOPAL. मध्यप्रदेश के लाखों सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों में एक बार फिर पदोन्नति की आस जागी है। बीते माह अजाक्स और सपाक्स संगठन के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में हुई बैठक में एक दशक से बने गतिरोध पर मंथन हुआ है। अपनी शर्तों पर दोनों संगठनों को तटस्थ देख अब सरकार दूसरा रास्ता खोजने में जुट गई है। वहीं दोनों संगठनों के कुछ प्रतिनिधि भी लाखों कर्मचारियों के हितों को देखते हुए नरमी दिखा रहे हैं। यदि सरकार बीच का रास्ता तलाशने में कामयाब होती है तो कर्मचारी- अधिकारियों के बड़े वर्ग को इसका लाभ मिलेगा। इसी उम्मीद से मंत्रालय से लेकर विभागों में निचले स्तर तक सुगबुगाहट तेज हो गई है। हांलाकि कर्मचारी वर्ग पदोन्नति के लिए इस इंतजार का जिम्मेदार सरकार को ही ठहरा रहे हैं।
पहले आपको मध्यप्रदेश में पदोन्नति की राह में अटके रोड़े के बारे में बताते हैं। दरअसल मप्र में साल 2002 में तत्कालीन सरकार ने पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था की शुरुआत की थी। पदोन्नति में आरक्षण एक दशक से भी ज्यादा समय से जारी है। आरक्षित वर्ग के कर्मचारी-अधिकारियों को लगातार पदोन्नति का लाभ से नाराज सपाक्स संगठन की ओर से सरकार के सामने सवाल खड़ा किया गया। इसके बाद यह मामला कोर्ट तक पहुंच गया। लंबे समय तक सुनवाई चलने के बाद साल 2016 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण का नियम रद्द कर दिया। जिसके खिलाफ तत्कालीन शिवराज सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी। तब से पदोन्नति बंद हैं।
सिफारिशों पर अमल से बचती रही सरकार
साल 2018 में कमलनाथ सरकार ने पदोन्नति पर लगी रोक को खत्म करने बीच का रास्ता निकाला था। इसके लिए टाइम बाउंड प्रमोशन का फार्मूला तैयार किया गया। यानी निश्चित सेवाकाल पूरा करने के बाद कर्मचारियों को उच्च पदनाम मिलना तय था। हांलाकि फार्मूला लागू होने से पहले ही साल 2019 में सरकार गिर गई। शिवराज सरकार बनने के बाद 9 सितम्बर 2020 को इसी मसले पर उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया गया। सालभर ऐसे ही बीत गया लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। 13 सितम्बर 2021 को सरकार ने पदोन्नति का रास्ता साफ करने मंत्री समूह को जिम्मेदारी सौंपी हांलाकि मंत्री समूह की सिफारिशों को अमल में नहीं लाया गया। यानी सरकार पदोन्नति को लेकर गंभीरता तो दिखाती रही लेकिन अपनी ही कमेटियों की सिफारिश लागू करने से बचती रही।इस बीच पदोन्नति का इंतजार खत्म नहीं हुआ और एक दशक में करीब एक लाख अधिकारी- कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए।
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अजाक्स-सपाक्स में सुलह से मिलेगी पदोन्नति
बीते सालों में प्रदेश में पदोन्नति पर रोक के कारण लाखों कर्मचारी इसके लाभ से वंचित हैं। पदोन्नति का रास्ता तलाश रही सरकार भी फौरी कोशिश करती रही है लेकिन ठोस पहले नहीं हुई। इस वजह से भी ये मामला एक दशक से अटका हुआ है। एसीएस संजय दुबे ने अजाक्स और सपाक्स प्रतिनिधियों के बीच इस मसले को लेकर मध्यस्थता की थी। सरकार ने दोनों संगठनों के सामने 36:64 का फार्मूला भी रखा था। हांलाकि इस पर फिलहाल सहमति नहीं बनी है। फार्मूले के तहत अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के कर्मचारियों को कुल पदों में से 36 प्रतिशत पर और शेष 64 फीसदी पदों पद अनारक्षित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारियों को पदोन्नति देने का प्रावधान किया गया है। हांलाकि पहले लाभ ले चुके एससी/एसटी वर्ग के अधिकारी-कर्मचारियों को इसका लाभ नहीं मिलना था।अजाक्स की ओर से आपत्ति दर्ज कराने के बाद फिलहाल यह फार्मूला फेल हो गया है।
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पदोन्नति का रोड़ा हटाने सरकार लाई तीन विकल्प
पदोन्नति की राह खोलने के लिए सरकार तीन विकल्पों पर सहमति बनाने में जुटी है। इनमें पहला विकल्प पदोन्नति का आधार कर्मचारियों की सीनियरिटी, दूसरा पदोन्नति में आरक्षण का लाभ ले चुके आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को यथावत रखना और अंतिम विकल्प प्रमोशन प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन प्रकरणों के अंतिम निर्णय के अधीन रखना है। हांलाकि पहले विकल्प में ये साफ नहीं किया गया है कि कर्मचारियों की सीनियरिटी की गणना किस अवधि से की जाएगी। सपाक्स टाइम बाउंड अथवा सीनियरिटी के आधार पर पदोन्नति के विकल्प पर सहमत है, लेकिन पूर्व में आरक्षण का लाभ ले चुके कर्मचारियों को इससे बाहर रखने की शर्त पर अड़ा है। वहीं अजाक्स सीनियरिटी या टाइमबाउंड पदोन्नति में आरक्षण रोस्टर लागू रखने की मांग कर रहा है।
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पदोन्नति के लिए अपनी शर्तों पर अड़े संगठन
सपाक्स पदाधिकारी डॉ.पीपी सिंह तोमर का कहना है पदोन्नति में आरक्षण को हाईकोर्ट खारिज कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट भी व्यवस्था दे चुका है लेकिन सरकार इस मसले को सुलझाना नहीं चाहती। सरकार को ठोस पहल करने की जरूरत है। रोक से हर वर्ग के लाखों कर्मचारी पदोन्नति से वंचित हैं। सपाक्स टाइम बाउंड या सीनियरिटी के आधार पर पदोन्नति के पक्ष में है। इस पर सहमति बनाकर पदोन्नति का रास्ता खोला जा सकता है। वहीं अजाक्स के प्रदेश महासचिव गौतम पाटिल के अनुसार विभागों में आरक्षित वर्ग के पदों पर भर्ती में पक्षपात होता है। संगठन पदोन्नति का आधार टाइम बाउंड या वरिष्ठता रखने को राजी है लेकिन इसमें आरक्षण रोस्टर का पालन जरूरी है। ऐसा न होने से एससी/ एसटी वर्ग के कर्मचारियों का हित प्रभावित होगा।
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विधि-विधायी कार्य विभाग ने किया पदोन्नत
मध्यप्रदेश में एक दशक से रुकी पदोन्नति के मामले में हाईकोर्ट के निर्देशों के अधीन 125 कर्मचारियों को पदोन्नत किया है। हांलाकि ये पदोन्नति कोर्ट के अंतिम निर्णय के अधीन है। विधि विधायी कार्य विभाग के अलावा अन्य किसी विभाग ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई है। इसके पीछे वरिष्ठता के आधार की गणना को वजह बताया जा रहा है। दूसरे विभागों के अनुसार सरकार नए विकल्पों के साथ इस मसले पर समाधान तलाश रही है। इस वजह से फिलहाल जनवरी 2024 को वरिष्ठता की गणना का आधार बनाकर पदोन्नति नहीं दी गई है। जिससे की बाद की उलझनों से बचा जा सके।