मध्य प्रदेश के रतलाम जिले में फर्जी आयुष्मान कार्ड बनाने का बड़ा रैकेट पकड़ा गया है, जिसके तहत अपात्र लोगों के नाम पर कार्ड बनाए जा रहे हैं। इस खेल में कॉमन सर्विस सेंटर संचालक 2500 से 4000 रुपए तक में आयुष्मान कार्ड बनाकर दे रहे हैं, वह भी महज 5 से 7 दिनों में। इस मामले में प्रदेश भर में लाखों फर्जी आयुष्मान कार्ड बनवाने की आशंका जताई जा रही है।
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ऐसे हुआ खुलासा
जब Ayushman Card को आरोग्यम अस्पताल में चेक कराया गया, तो हेल्प डेस्क पर मौजूद अंजलि ने ऑनलाइन चेक करके कार्ड को अप्रूवल दे दिया। इस प्रक्रिया में नियमानुसार आयुष्मान भारत निरामयम योजना के तहत केवल जनगणना की लिस्ट, संबल योजना, राशन कार्ड धारक, आशा और उषा कार्यकर्ता तथा भवन श्रमिक ही पात्र हैं, लेकिन इस प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए अपात्रों को भी कार्ड दिए जा रहे हैं।
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आयुष्मान कार्ड की बढ़ती संख्या
प्रदेश में 5 फरवरी तक रतलाम के 9.12 लाख और पूरे मध्य प्रदेश में 4.23 करोड़ आयुष्मान कार्ड बन चुके हैं। इनमें से 3.56 लाख कार्ड पिछले 30 दिनों में बनाए गए हैं। यह आंकड़ा बताते हुए, यह स्पष्ट होता है कि लाखों की संख्या में फर्जी कार्ड बन रहे हैं। ऐसे कार्ड को लेकर प्रदेश में लोगों के बीच असमंजस और चिंता बढ़ गई है।
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फर्जी कार्ड बनाने के लिए केंद्रों पर लग रहे हैं पैसे
कियोस्क सेंटर के संचालक फर्जी तरीके से Ayushman Card बनाने की प्रक्रिया को गारंटी के साथ कर रहे हैं। लक्कड़पीठा स्थित राधे ऑनलाइन पर बैठे राहुल सांकला ने मीडिया से कहा कि वह कार्ड बना देंगे, भले ही नाम पात्रता लिस्ट में न हो। इसके लिए उन्हें समग्र आईडी, आधार कार्ड और फोटो की आवश्यकता होगी, और इसके बदले में 4000 रुपए चार्ज किए जा रहे हैं।
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भोपाल में चल रही गड़बड़ी
भोपाल में आयुष्मान विभाग में बैठे एक ग्वालियर के व्यक्ति के माध्यम से फर्जी कार्ड बनाने की जानकारी सामने आई है। कियोस्क संचालक ने बताया कि वे इस व्यक्ति को समग्र आईडी भेजते हैं, और वह व्यक्ति इसे पात्र कर देता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से गड़बड़ है, क्योंकि वह व्यक्ति नंबर बदलता रहता है और उसकी पहचान भी स्पष्ट नहीं है।
नियमों का उल्लंघन और बढ़ता भ्रष्टाचार
आयुष्मान योजना का उद्देश्य गरीब और जरूरतमंद लोगों को मुफ्त इलाज मुहैया कराना है, लेकिन इस योजना का गलत इस्तेमाल हो रहा है। कियोस्क संचालकों द्वारा अपात्र लोगों को भी कार्ड दे दिए जा रहे हैं, जो पूरी योजना के उद्देश्य को ही नकारते हैं। इस प्रक्रिया से लाखों लोगों के लिए योजना का लाभ असंभव हो सकता है, और भ्रष्टाचार बढ़ने का खतरा है।