काजू के 10 हजार पेड़ काटकर फेंकेंगे ये किसान, क्यों आया इतना गुस्सा?

पूरे देश में किसानों के मुद्दे पर बवाल छिड़ा हुआ है। इस बीच नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले से एक बड़ी खबर सामने आई है। यहां के किसान इतने खफा हैं कि उन्होंने काजू के 10 हजार पेड़ काटने का फैसला कर लिया है। जानें क्या है मामला...

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Ravi Kant Dixit
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भोपाल।  पूरे देश में किसानों के मुद्दे पर बवाल छिड़ा हुआ है। दिल्ली से लेकर दमोह तक हर तरफ अन्नदाता परेशान हैं। इस बीच नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले से एक बड़ी खबर सामने आई है। यहां के किसान सरकार की बेरुखी से इतने खफा हैं कि उन्होंने काजू के 10 हजार पेड़ काटने का फैसला कर लिया है।

किसानों ने सरकार की उपेक्षा और फसल के लिए बाजार उपलब्ध न कराए जाने के विरोध में 1 जनवरी 2025 को काजू के 10 हजार से ज्यादा पेड़ों को काटने का फैसला किया है। गुस्साए किसानों का कहना है कि महीनों तक सरकार और प्रशासन से मदद मांगी, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला, जिससे हमारी उम्मीदें टूट गई हैं।

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शुरुआत और आज की हकीकत

दरअसल, बालाघाट के बैहर क्षेत्र में काजू की खेती की शुरुआत वर्ष 2015 में शिखर हरित भूमि सेवा संस्थान नाम के एनजीओ ने की थी। एनजीओ के संचालक संतोष टेम्बरे बताते हैं, हमने बंजर जमीन को हरा-भरा बगीचा बना दिया। किसानों को काजू की खेती के लिए प्रेरित किया। शुरुआत में काजू बोर्ड ने हमारी कोशिशों की सराहना की। पहले समर्थन भी दिया, लेकिन आज स्थिति यह है कि किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए बाजार तक नहीं मिल रहा है। 

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पहले पौधे मिलते थे, अब कोई ध्यान नहीं 

The Times Of India में प्रकाशित खबर के अनुसार, शुरुआती दिनों में बागवानी विभाग से किसानों को सब्सिडी और काजू के पौधे मिलते थे, लेकिन कुछ वर्षों से यह भी बंद हो गया है। टेम्बरे का कहना है कि हमारे यहां का काजू गोवा के काजू के बराबर गुणवत्ता का है, लेकिन आज हमारी कोई मदद नहीं कर रहा है। किसानों ने मेहनत से काजू की खेती को सफल बनाया, लेकिन अब वे अपनी फसल को बेचने के लिए बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं। न तो क्षेत्र में कोई प्रोसेसिंग यूनिट है और न ही फसल बेचने के लिए बाजार उपलब्ध है।

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बच्चों की तरह पौधों को बड़ा किया 

किसान ओमेंद्र बिसेन भी सरकार की बेरुखी से नाराज नजर आते हैं। ओमेंद्र ने बताया कि मैंने 1.5 एकड़ जमीन पर 125 काजू के पौधे लगाए थे। इन पौधों को मैंने अपने बच्चे की तरह पाला। हमें वादा किया गया था कि बैहर में प्रोसेसिंग यूनिट बनेगी, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। पिछले साल हमारी उपज बिक नहीं पाई। हमारे पास अब इन पेड़ों को काटने और दूसरी फसल लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

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सांसद ने भी नहीं सुनी फरियाद 

किसानों ने स्थानीय सांसद भारती पराधी से गुहार लगाई थी। इसके बाद उन्होंने सितंबर 2024 में काजू बागानों का दौरा किया और मदद का भरोसा दिलाया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। वहीं, पिछले दिनों सांसद ने किसानों से कहा था कि वे एक प्रतिनिधिमंडल को नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) के साथ बैठक के लिए भोपाल भेजें। इसके बाद 500 किलोमीटर का सफर तय करके चार किसानों का दल भोपाल पहुंचा, पर यहां अफसरों ने मुलाकात करने से ही इनकार कर दिया।

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