फोर्ड कार डीलर राजपाल आटो लिंक को बचाने की EOW की कोशिश खारिज, कोर्ट ने लौटाई खात्मा रिपोर्ट

जिला कोर्ट में ईओडब्ल्यू ने इस केस में राजपाल आटोलिंक की चार सौ बीसी साबित होने के बाद भी एक पेंच फंसाकर खात्मा रिपोर्ट पेश कर मारी। जिसे जिला कोर्ट विशेष न्यायाधीश ने कई कानूनी फैसले बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया और कई सवाल EOW से पूछे हैं। 

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Sanjay Gupta
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MP News : आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) द्वारा इंदौर के फोर्ड कार डीलर राजपाल आटोलिंक को नौ करोड़ की धोखाधड़ी में बचाने की कोशिश खारिज हो गई है। जिला कोर्ट में ईओडब्ल्यू ने इस केस में राजपाल आटोलिंक की चार सौ बीसी साबित होने के बाद भी एक पेंच फंसाकर खात्मा रिपोर्ट पेश कर मारी। जिसे जिला कोर्ट विशेष न्यायाधीश ने कई कानूनी फैसले बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया और कई सवाल ईओडब्ल्यू से पूछे हैं। 

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यह है मामला

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फोर्ड कार डीलर मेसर्स राजपाल आटोलिंक प्रालि, राजीव गांधी चौक के साथ ही महेंद्र राजपाल पिता जीवतराम राजपाल, नीता राजपाल पति महेंद्र राजपाल, सुमित राजपाल पिता महेंद्र राजपाल, जितेंद्र भावसार, गैलेक्सी व्हीकल रतलाम, अब्बास मोइजअली घासवाला, आरेफा पति अब्बास व अन्य पर आऱोप लगे कि इन्होंने एसबीआई से वाहन संबंधी नौ करोड़ पांच लाख का लोन लिया लेकिन मिलकर यह राशि गबन कर ली। वाहन बिक्री के बाद जो राशि वापस ऋण खाते में जमा करनी थी वह नहीं की। इस पर 7 नवंबर 2020 को ईओडब्ल्यू में जांच के बाद एफआईआर दर्ज हुई। यह लोन खेल साल 2018 से 2020 के बीच किया गया। 

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केस की जांच इन्होंने की, फिर ऐसे लगा खात्मा केस

इस केस की जांच तत्कालीन डीएसपी आनंद यादव और अजय जैन द्वारा की गई। जांच में साक्ष्य, कथन से यह साबित हुआ कि यह राशि गबन की गई है। यह साबित हो गया। लेकिन अब ईओडब्ल्यू ने विशेष न्यायाधीश के पास अप्रैल 2025 में यह केस खात्मा के लिए लगा दिया और इसके लिए एनसीएलटी अहमदाबाद की कार्रवाई और इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के केस का उदाहरण दिया। ईओडब्ल्यू ने कहा कि एनसीएलटी में यह केस चल रहा है और लिक्विडेटर नियुक्त हो गया है, इसलिए समानांतर दो प्रक्रिया नहीं चल सकती है, इसलिए इसे खत्म किया जाता है। 

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जिला कोर्ट ने अपने आदेश में यह कहा-

इस पर जिला कोर्ट विशेष न्यायाधीश जय कुमार जैन ने अपने आदेश में साफ कहा है कि जांच में गबन साबित हो चुका है। लिक्वीडेटर 23 अप्रैल 2021 को बना, इसके पहले एफआईआर हो चुकी थी और जांच में गबन साबित हुआ। वैसे भी यह मनी लाण्ड्रिंग का केस नहीं जिसमें संपत्ति कुर्क करना है, एनसीएसलटी मामले में कुर्की, मनी लाण्ड्रिंग का मामला है इसमें चार सौ बीसी जैसे जांच पर रोक का कोई आदेश नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के भी मनीष कुमार, अजय कुमार, राधेश्याम गोयका केस में साफ है कि लिक्वीडेटर नियुक्त होने से पहले किए गए अपराध की जांच नहीं रोकी जा सकती है और ना ही खात्मा लगाया जा सकता है। 

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60 दिन में दो अभियोग पत्र

कोर्ट ने ईओडब्ल्यू को यह भी आदेश दिए कि 60 दिन में अंतिम प्रतिवेदन दें। कोर्ट ने यह भी पूछा कि जब लिक्वीडेटर के नियुक्त होने से पहले ही इसमें जांच में गबन साबित हो गया था तो फिर इसमें अभियोग पत्र दाखिल क्यों नहीं किया गया। इसका भी जवाब ईओडब्यू को देना है।

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