नर्मदा तट के जंगल को कब्जा मुक्त कराएगी वन विभाग की टास्क फोर्स

डीएफओ ने लिखा है कि नर्मदा नदी को संरक्षित करने `अविरल निर्मल नर्मदा` अभियान चलाया जा रहा है। इसके लिए स्पेशल टास्क फोर्स के गठन की आवश्यकता भी जताई है।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL.आलीराजपुर जिले में नर्मदा तट के पांच किलोमीटर दायरे में जंगल को अतिक्रमणमुक्त करने की मुहिम ने स्थानीय आदिवासी समुदाय को नाराज कर दिया है। डीएफओ ने वन क्षेत्र से कब्जे हटाने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स के गठन की अनुशंसा जिला प्रशासन से की है।

इस पत्र और प्रशासन की तैयारियों के बीच आदिवासी बाहुल्य जिले में विरोध के सुर उठने लगे हैं। वहीं पेसा समिति से सहमति के बिना 5वी अनुसूची में शामिल अंचल में कार्रवाई को असंवैधानिक बता रहे हैं। 

इसलिए शुरू हुआ है विरोध

प्रदेश के मालवा अंचल का जिला आदिवासी समुदाय की बहुलता वाला क्षेत्र है। जिले के उमरेठ से जलसिंधी क्षेत्र से नर्मदा नदी बहती है। नदी के दूसरे किनारे से ही महाराष्ट्र राज्य की सीमा जुड़ती है। डीएफओ अमित वसंत निगम ने 24 अक्टूबर को कलेक्टर कार्यालय को पत्र भेजा था। इसमें नर्मदा नदी के तट के किनारों पर पांच किलोमीटर दायरे में आने वाले जंगल से कब्जे हटाने का उल्लेख है। 

टास्क फोर्स हटाएगी कब्जा

डीएफओ ने लिखा है कि नर्मदा नदी को संरक्षित करने `अविरल निर्मल नर्मदा` अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत किनारों से मिट्टी का कटाव रोकने व भूजल संरक्षण के लिए पौधरोपण किया जाना है। नदी से सटे जंगल में 13 दिसम्बर 2005 के बाद हुए कब्जों को मुहिम चलाकर बेदखल करना जरूरी है। उन्होंने इसके लिए स्पेशल टास्क फोर्स के गठन की आवश्यकता भी जताई है। 

पुलिस- प्रशासन कर रहा तैयारी

इस पत्र लिखने के साथ आलीराजपुर वन मंडल में वन भूमि से अतिक्रमण हटाने की तैयारी शुरू हो गई है। वन परिक्षेत्र मथवाड और उमराली , उपवन मंडल अधिकारी के साथ ही एसडीएम सोण्डवा और थाना बखतगढ़ एवं सोण्डवा को निर्देशित किया गया है। प्रशासन की इस तैयारी से जिले की वनांचलों में छोटे- छोटे टोलों और फलियों में रहने वाले आदिवासी परिवारों में घबराहट है।

आदिवासी संगठन भी नाराज

जिले में नर्मदा नदी से सटी वनभूमि पर कब्जे हटाने की तैयारी के विरोध में आदिवासी संगठन भी मुखर होने लगे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता भी वन विभाग और अधिकारियों की कार्रवाई की तैयारी को असंवैधानिक बता रहे हैं। आदिवासियों के अधिकारों के लिए सक्रिय कार्यकर्ता आनंद राय का कहना है यह जिला संविधान में शेड्यूल-5 में शामिल है। जिसमें सीधे तौर पर प्रशासन या विभाग नियमों को सीधे तौर पर लागू नहीं कर सकता। प्रशासन की तैयारी इसका उल्लंघन कर रही है। 

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ये हैं 5वी अनुसूची में शामिल क्षेत्र

संविधान में शेड्यूल-5 के तहत मध्य प्रदेश के आलीराजपुर, अनूपपुर, बड़वानी, बालाघाट, बैतूल, बुरहानपुर, छिंदवाड़ा, धार, डिंडौरी, होशंगाबाद, झाबुआ, खंडवा, खरगोन, मंडला, रतलाम, सिवनी, शहडोल, श्योपुर, सीधी, उमरिया जिलों के 89 आदिवासी विकासखंड शामिल हैं। इन विकासखंड में केंद्र या राज्य के नियमों को पेसा एक्ट क्रियान्वयन समितियों के माध्यम से ही लागू किया जा सकता है। 

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पेसा कानून से मिली प्रावधान को मजबूती

शेड्यूल-5 या संविधान की पांचवी अनुसूची में दर्ज आदिवासी क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था और नगरीय निकायों के अधिकारों पर भी संवैधानिक नियंत्रण लगाया गया है। इसका साफ मतलब है कि जो क्षेत्र इस अनुसूची में शामिल हैं वहां ये संस्थाएं या दूसरे विभागों के प्रावधान प्रभावशाली नहीं होंगे। संस्थाओं और सरकारी महकमों को अनुसूचित क्षेत्र और जनजातियों का प्रशासनिक नियंत्रण पेसा एक्ट यानी "पंचायत विस्तार अनुसूचित क्षेत्रों के लिए अधिनियम" के माध्यम से ही किया जा सकता है।

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विस्थापित परिवारों में सबसे ज्यादा चिंता

सरदार सरोवर बांध के निर्माण से बड़वानी जिले से बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के लोगों को पलायन करना पड़ा था। डूब में आने की वजह से गांव छोड़ने मजबूर ऐसे ही कई आदिवासी परिवार सीमावर्ती आलीराजपुर जिले में बस गए थे। ऐसे परिवार वन क्षेत्र में 13 दिसम्बर 2005 से पहले से जंगल में बसने की गाइडलाइन से बाहर हैं। ज्यादातर वन क्षेत्रों की सेटेलाइट इमेजनरी भी उपलब्ध नहीं है। वनभूमि पर 2005 के बाद बसने वाले परिवार अतिक्रमणकारी की श्रेणी में आने से कार्रवाई का शिकार बन सकते हैं। 

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पेसा और वन अधिकार एक्ट:

  •  पेसा कानून, 1996, और वन अधिकार (मान्यता) कानून, 2006, आदिवासी समुदायों के पारंपरिक अधिकारों को मान्यता देते हैं। 
  •  भारत के राष्ट्रपति को देश के जनजातीय समाज का संरक्षक बनाया गया है। वहीं पांचवीं अनुसूची राज्यपाल को आदिवासी आबादी के संरक्षण की विशेष शक्तियां देती है।
  • वन विभाग सीधे तौर पर नियम लागू नहीं कर सकता है क्योंकि इससे आदिवासियों के पारंपरिक रीति-रिवाजों और आजीविका के स्रोत प्रभावित हो सकते हैं।  
  • वन विभाग के कानूनों की सख्ती आदिवासियों को जंगल से लड़की बीनने, मवेशी चराने जैसे पारंपरिक कामों से रोकती है। पेसा एक्ट वनवासियों को मौलिक अधिकार देता है।
  • आदिवासी समुदाय को किसी भी सरकारी नियम या कानून के दायरे में लाने से पहले उन्हें पेसा समिति की अनुमति लेना जरूरी है। ये समिति राज्य से स्थानीय स्तर तक गठित हैं।
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