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BHOPAL. मध्य प्रदेश के निजी विश्वविद्यालयों का नियंत्रण करने वाला आयोग बीते एक साल से एक्सटेंशन पर चल रहा है। आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल सितम्बर 2024 में पूरा हो चुका है। वहीं उच्च शिक्षा विभाग अध्यक्ष, सचिव और सदस्यों के आवेदनों की स्क्रूटनी और चयन प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाया है।
इस वजह से नए अध्यक्ष, सचिव और सदस्यों की नियुक्ति में अभी और समय लग सकता है। इसका असर निजी विश्वविद्यालयों की निगरानी पर नजर आ रहा है क्योंकि कार्यकाल पूरा होने के बाद से आयोग के पदाधिकारियों की कसावट ढीली पड़ चुकी है।
जिम्मेदारी में पीछे उच्च शिक्षा विभाग
प्रदेश में संचालित निजी विश्वविद्यालयों की निगरानी और मार्गदर्शन के लिए मप्र निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग का गठन किया गया था। यह आयोग उच्च शिक्षा विभाग के तहत काम करता है। पूर्व में आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती रही है लेकिन सरकार द्वारा अब इसकी जिम्मेदारी उच्च शिक्षा विभाग को सौंपी जा चुकी है। यानी अब आयोग के पदाधिकारियों की नियुक्ति का दायित्व भी उच्च शिक्षा विभाग के पास है।
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विभाग की मेहरबानी से दो एक्सटेंशन
आयोग के अध्यक्ष प्रो.भारत शरण सिंह की नियुक्ति सितम्बर 2020 में की गई थी। उनके चार साल का कार्यकाल सितम्बर 2024 में पूरा हो चुका है। इसके बाद उन्हें छह- छह माह के लिए दो बार उच्च शिक्षा विभाग द्वारा एक्सटेंशन दिया जा चुका है। अब तीसरी बार उनके कार्यकाल को नहीं बढ़ाया जा सकता।
उच्च शिक्षा विभाग को आयोग अध्यक्ष के कार्यकाल और एक्सटेंशन पूरा होने की जानकारी होने के बावजूद अध्यक्ष, सचिव और दूसरे सदस्यों की चयन प्रक्रिया में उदासीनता बरती गई। इसका नतीजा है कि एक्सटेंशन अब पूरा हो गया है लेकिन अभी भी पदाधिकारियों की चयन प्रक्रिया अधूरी है।
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स्क्रूटनी में ही 50 आवेदन हुए निरस्त
उच्च शिक्षा विभाग द्वारा पिछले माह ही आयोग अध्यक्ष, सचिव और सदस्यों के पदों पर नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों से आवेदन आमंत्रित किए गए थे। इनकी स्क्रूटनी के लिए उच्च शिक्षा आयुक्त प्रबल सिपाहा द्वारा ग्वालियर और भोपाल के प्रोफेसरों की कमेटी बनाई गई थी।
आयोग के पदाधिकारी बनने के लिए कमेटी के पास 250 से ज्यादा आवेदन पहुंचे हैं। स्क्रूटनी के पहले चरण में इनमें से कई उम्मीदवार बाहर हो चुके हैं। जबकि अन्य आवेदनों का परीक्षण अभी भी चल रहा है।
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निजी विवि से लाभ लेने वाले हुए बाहर
स्क्रूटनी कमेटी द्वारा जिनके आवेदन निरस्त किए गए हैं वे सेवानिवृत्ति के बाद निजी विश्वविद्यालयों की गवर्निंग बॉडी के सदस्य या अन्य पदों पर रहे हैं। उन्हें इन निजी विश्वविद्यालयों से वेतन के रूप में लाभ भी मिला है। इसी वजह से उन्हें उम्मीदवारी से बाहर किया गया है।
आयोग की दावेदारी से बाहर होने के बाद अब कई उम्मीदवार सरकार के स्तर पर जोर लगा रहे हैं। विधि विभाग ने मप्र निजी विवि स्थापना एवं संचालन अधिनियम की धारा 36 खण्ड ( 7 ) तथा नियम 2008 की कंडिका 14 खण्ड (ग) के आधार पर स्क्रूटनी कमेटी के निर्णय को सही मानते हुए ऐसे सभी आवेदकों को आगे के लिए भी अयोग्य मानने का अभिमत दिया है।
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ये है जिनकी दावेदारी पर लगा ग्रहण
उच्च शिक्षा विभाग की स्क्रूटनी कमेटी द्वारा जिनके आवेदन निरस्त किए हैं उनमें अटल बिहारी हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलगुरु डॉ. खेमसिंह डेहरिया, एक्सीलेंस कॉलेज के डॉयरेक्टर डॉ. प्रज्ञेश अग्रवाल, डॉ. आरके विजय, असिस्टेंट रजिस्ट्रार डॉ. अभय गुप्ता, डॉ. राकेश श्रीवास्तव, डॉ.आरसी यादव, पूर्व रजिस्ट्रार हरिहरशरण त्रिपाठी, डॉ.महेन्द्र मेहरा, डॉ.महिपाल सिंह यादव, पूर्व रजिस्ट्रार अल्केश चतुर्वेदी, डॉ.डीपी सिंह, डॉ.दीपक पालीवाल, मैपकास्ट के महानिदेशक अनिल कोठारी, पूर्व निदेशक उमेश सिंह, डॉ.मुकेश जैन, डॉ.राजेश श्रीवास्तव, डॉ.आशीष जोशी, डॉ. संजय दीक्षित सहित कई प्रमुख शिक्षाविद और प्रशासनिक अनुभव रखने वाले दिग्गज शामिल हैं।
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