/sootr/media/media_files/2025/09/15/fraud-1-2025-09-15-22-41-06.jpg)
BHOPAL. मध्य प्रदेश के राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज धर्म स्थलों की जमीनों पर भी संकट मंडरा रहा है। बीते पांच सालों में ऐसी दर्जनों बेशकीमती जमीनों को बेचकर खुदबुर्द किया जा चुका है। दस्तावेजों में हेराफेरी के जरिए ऐसी जमीनों को बेचने में कर्ताधर्ता ही शामिल रहे हैं।
ऐसे मामलों में पंजीयन और राजस्व कार्यालयों की मिलीभगत भी सामने आती रही है। राजधानी भोपाल के बागसेवनिया क्षेत्र में चर्च की 6 एकड़ जमीन को पूर्व आर्क बिशप और चर्च के जिम्मेदारों द्वारा बेचने पर ईओडब्ल्यू में केस दर्ज किया गया है।
मंदिर, चर्च, वक्फ और ट्रस्ट की जमीनों की अनाधिकृत खरीद- फरोख्त के मामलों की लंबी फेहरिस्त है, लेकिन प्रशासन ऐसी जमीनों को बचाने के लिए कोई कारगर व्यवस्था नहीं कर पाया है।
खरीद- फरोख्त के विवादों में उलझी करोड़ों की ये जमीनें अब कानूनी विवाद में उलझी पड़ी हैं और धर्मस्थल और ट्रस्ट इनका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे गड़बड़झालों की जांच या तो पुलिस- ईओडब्ल्यू या फिर प्रशासन की फाइलों में ही सालों- साल दबी रहती है। वहीं धार्मिक न्यास व धर्मस्व विभाग भी ऐसे मामलों को अनदेखा कर रहा है।
नियम- प्रक्रिया तय फिर भी हो रही धांधली
प्रदेश में धर्मस्थलों की जमीन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रशासन की निगरानी में रहती है। यानी धर्मस्थलों के पास कितनी कृषि या व्यावसायिक जमीन है ये राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज है। इस जमीन को बेचने से पहले समिति को प्रशासन को सूचना देनी होती है।
सीधे तौर पर इसे बेचा नहीं जा सकता। इसके बावजूद प्रदेश में हर साल धर्मस्थलों की जमीनों को खुर्द-बुर्द करने के दर्जनों मामले प्रशासन और पुलिस तक पहुंच रहे हैं। बीते पांच साल में राजधानी भोपाल सहित शहर और अंचलों में धर्मस्थलों की करोड़ों की जमीन को बेचा गया है।
इस धांधली पर सवाल ये है कि जब नियम और प्रक्रिया तय है फिर कैसे इन धर्मस्थलों की जमीन के विक्रय को पंजीयक कार्यालय स्वीकृति देकर रजिस्टर्ड कर देते हैं। इनकी रजिस्ट्री और नामांतरण के दौरान पंजीयन अधिकारी क्यों प्रशासन को जानकारी नहीं देते या विक्रय पर रोक क्यों नहीं लगाई जाती।
चर्च की जमीन बेचने ऐसे किया खेल
ताजा मामला राजधानी भोपाल के बागसेवनिया क्षेत्र स्थित चर्च की 6 एकड़ जमीन को बेचने का है। दरअसल वर्ष 1959 में रोमन कैथोलिक चर्च ने अनवरजहां बेगम से 44 एकड़ 15 डिसमिल भूमि खरीदी थी। साल 1966 में राजधानी परियोजना के तहत इस भूमि में से 3 एकड़ विद्युत सब स्टेशन के लिए आवंटित कर दिया गया था।
सोसायटी द्वारा अधिगृहण के तथ्य को छिपाकर साल 2004 से 2024 के बीच पूरी जमीन बेचकर से सरकार को 7.50 लाख की चपत लगाई गई। पूरी प्रक्रिया में राजस्व अधिकारियों की भूमिका संदेहास्पद रही। चर्च की इस जमीन की अनुमानित कीमत करोड़ों में थी। जिस पर लीलासंस इन्फ्रासस्ट्रक्चर प्राईवेट लिमिटेड की बहुमंजिला आवासीय और कमर्शियल इमारते खड़ी हो चुकी हैं।
अब ईओडब्ल्यू ने आर्कडायसिस ऑफ भोपाल सोसायटी के तत्कालीन आर्क बिशप डॉ.पास्कल टोपनो, फादर जार्ज स्टीफन, फादर जार्ज वज़ाकला, फादर सुमन कुमारतिक, फादर टोमी जोसेफ, फादर जैवियर टी. एसबीडी, फादर फ्रेंक्लिन रोड्रिक्स, फादर लुईस मैलिकल, फादर जार्ज जैकब के अलावा जमीन के खरीदार अरूण लीला और धर्मेन्द्र लीला पर 22 अगस्त को केस दर्ज कर लिया है। लेकिन अब हजारों घर, बहुमंजिला इमारतों से भरी इस जमीन को वापस ले पाना संभव नजर नहीं आता।
ऐतिहासिक मंदिर की जमीन का सौदा
आबादी के विस्तार के साथ धर्मस्थलों की जमीन अब बसाहटों के बीच में आ गई हैं। इन पर जमीन के सौदागरों की नजरें जमी हुई हैं। टीकमगढ़ में 300 साल से भी पुराने बिहारीजी मंदिर की एक हैक्टेयर जमीन को बेचने के मामले में पुजारी परिवार और जमीन खरीदने वाले कॉलोनाइजर पर अपराध दर्ज किया गया है।
इस जमीन को करीब साढ़े सात करोड़ में बेचा गया है। हांलाकि अब इस जमीन के बड़े हिस्से पर प्लॉटिंग हो चुकी है। कॉलोनाइजर के इशारे पर पहले जमीन को हड़पने कई साल तक साजिश की गई। जमीन को पहले पुजारी वृंदावन, परमेश्वर और हरिवल्लभ ने नाम पर दर्ज कराया गया।
कुछ समय बाद यही जमीन पुजारी परिवार के पुत्र राजेन्द्र और रविन्द्र के नाम पर राजस्व रिकॉर्ड पर इंद्राज कर कॉलोनाइजर को बेच दी गई। सालों तक ये धांधली चलती रही लेकिन राजस्व अधिकारियों ने आपत्ति की न ही पंजीयन अधिकारी ने रजिस्ट्री की कार्रवाई पर रोक लगाई।
नतीजा कॉलोनाइजर ने जमीन को अपने आधिपत्य में लेकर उसे पर कॉलोनी काट दी। दर्जनों भूखंड बेंच दिए गए जिसके बाद लोगों ने विरोध किया तब प्रशासन हरकत में आया।
ये खबर भी पढ़िए :
नवविवाहितों के लिए खुशखबरी: अब बिना मैरिज सर्टिफिकेट के मिलेगा पासपोर्ट, जानें क्या है नियम
हजारों बीघा जमीन रिकॉर्ड से गायब
ग्वालियर अंचल में 865 मंदिरों की हजारों बीघा कृषि भूमि राजस्व रिकॉर्ड से ही गायब हो गई है। ग्वालियर स्टेट के समय मंदिरों की व्यवस्था के लिए ये जमीन दी गई थी। प्रशासन की निगरानी में इस जमीन को सालाना किराए पर देकर मंदिरों को धन उपलब्ध कराया जाता था।
बीते एक दशक में जमीन को धीरे-धीरे बेचा गया और अब इनमें से ज्यादातर जमीन रिकॉर्ड पर दूसरे लोगों के नाम पर दर्ज हो चुकी है। वहीं कुछ जमीनों पर सालों से रसूखदार काबिज हैं और मंदिरों को इसका कोई लाभ नहीं मिल रहा है। मामला राजधानी तक पहुंचने के बाद ग्वालियर- चंबल संभाग के 865 मंदिरों को दी गई 4290 हैक्टेयर कृषि उनके पास नहीं है।
मंदिरों की जमीन राजस्व रिकॉर्ड में कब दूसरे के नाम पर दर्ज हुई अब इसकी पड़ताल की जा रही है। मामले में दोनों संभाग के राजस्व अधिकारी और मैदानी अमले की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। अब मंदिरों की जमीनों पर कहीं कॉलोनी काटी जा चुकी हैं तो कहीं व्यावसायिक इमारते खड़ी हो चुकी हैं।
ये खबर भी पढ़िए :
MPESB शिक्षक वर्ग 2 भर्ती का परिणाम इसी सप्ताह हो सकता है जारी
केस दर्ज कर भरपाई की कोशिश
धर्मस्थलों की जमीनों की हेराफेरी को सालों तक प्रशासन द्वारा नजरअंदाज किया जाता है। जब विरोध बढ़ता है तक चंद लोगों पर केस दर्ज कर अधिकारी पल्ला झाड़ लेते हैं। ऐसा ही मामला शाजापुर में सामने आया है। शाजापुर में कोतवाली थाना क्षेत्र में श्रीराम मंदिर को तत्कालीन जमींदार ने सर्वे नंबर 321 में से .84 हैक्टेयर यानी करीब सवा तीन बीघा जमीन दी थी।
इसके लिए जो मुख्तयारनामा लिखा गया था उसमें साफ तौर पर जमीन के विक्रय पर पाबंदी है। इसके बावजूद औकाफ रिकॉर्ड में दर्ज जमीन को राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से बेच दिया गया। पुजारी ने पहले अपने नाम पर दर्ज कराया और फिर उसे बेच दिया गया। इस बीच जमीन कई हिस्सों के बट चुकी है। कई लोगों ने रजिस्ट्री भी करा ली है।
ये खबर भी पढ़िए :
उज्जैन सिंहस्थः लैंड पूलिंग मामले में बीच का रास्ता निकालने में जुटी सरकार
जिसके पास निगरानी उसी ने बेची जमीन
मंडला में चर्च की व्यवस्था संभालने वाले ट्रस्ट ने जिसे 5418 वर्गफीट जमीन की निगरानी सौंपी थी उसी ने उसे बेच दिया। इसके लिए न तो ट्रस्ट समिति से मशविरा किया गया और न चैरिटी कमिश्नर से अनुमति हासिल की गई। शहरी क्षेत्र में करोड़ों की कीमत की इस जमीन को छोटे- छोटे भूखंड में बांटकर बेचा गया है। साल 2022 तक हुई इस धांधली में अब प्रशासन कार्रवाई की तैयारी कर रहा है लेकिन उनके सामने जमीन को वापस हासिल करने का संकट है।
दरअसल मंडला में नागपुर डायोसिस ट्रस्ट एसोसिएशन द्वारा नजूल रिकॉर्ड में दर्ज 5418 वर्गफीट जमीन साल 1954 में ली गई थी। चर्च ट्रस्ट की जिम्मेदारी संभालने वालों ने ही फर्जी दस्तावेज तैयार कराए और पुराना रिकॉर्ड नष्ट कर जमीन बेच दी। 1993 में जोनाथन की मृत्यु के बाद मामला उजागर हुआ है। फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जमीन खरीदने वाले आठ लोगों पर अपराध दर्ज कराया गया है। वहीं प्रशासन अब जमीन को वापस हासिल करने का रास्ता तलाश रहा है।
ये खबर भी पढ़िए :
इंदौर से इंडिगो फ्लाइट को 90 मिनट में पहुंचना था पुणे, 12 घंटे से ज्यादा लग गए
जमीन की हेराफेरी में तरीका एक जैसा
धर्मस्थलों की जमीन का फर्जीवाड़ा हर मामले में एक जैसा ही है। मंदिर, चर्च और ट्रस्ट की सालों पुरानी जमीनों को उन्हें संभालने वाले पदाधिकारियों की मिलीभगत से हड़पा गया है। पहले इन संस्थाओं के नाम दर्ज जमीन को पुजारी, प्रीस्ट या ट्रस्ट के पदाधिकारी के नाम पर निजी तौर पर दर्ज कराई गई और फिर उसे छोटे -छोटे हिस्सों में कई बार बेचा गया।
इनमें से ज्यादातर जमीनें शहरी क्षेत्र में हैं क्योंकि जमीन की कीमत हजारों से करोड़ों तक उछल चुकी है। इस खेल में राजस्व विभाग के पटवारी, राजस्व निरीक्षक, तहसीलदार- एसडीएम और पंजीयक कार्यालय के अधिकारी -कर्मचारी शामिल होते हैं। इनमें कभी अधिकारी प्रत्यक्ष भूमिका में होते हैं तो कुछ मामलों में पर्दे के पीछे से उनके इशारे पर यह खेल होता है।