अभिवादन और सैल्यूट में उलझ गया पीएचक्यू, MP पुलिस की हर तरफ किरकिरी

एक आदेश आया जिसमें लिखा था कि सांसदों और विधायकों को अब सभी सरकारी आयोजनों व मुलाकातों के दौरान वर्दीधारी अफसर सैल्यूट करेंगे। 'द सूत्र' ने जब इस आदेश की फाइल मूवमेंट को ट्रेस किया तो हैरान करने वाली बातें सामने आईं... 

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Jitendra Shrivastava
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Greetings and Salute PHQ Photograph: (THE SOOTR)

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BHOPAL. मध्यप्रदेश पुलिस एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मुद्दा अपराध और कानून व्यवस्था नहीं, बल्कि सलामी (सैल्यूट) को लेकर है। पुलिस मुख्यालय की एक चिट्ठी से मामला गरमा गया। इस चिट्ठी में पुलिस वालों को सांसदों और विधायकों को सैल्यूट करने का फरमान दिया जा रहा था। 

यह पूरी गफलत अभिवादन और सैल्यूट शब्द को लेकर हुई। पीएचक्यू के जिम्मेदार अफसर इसी में उलझ गए। इस मुद्दे पर विपक्ष ने हमला बोल दिया है। वहीं, मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने सख्त नाराजगी जताई है। इन सबके बीच अंदरखाने से जो इनसाइड स्टोरी सामने आई है, वह चौंकाने वाली है।

मंत्री की नाराजगी के बाद चली फाइल 

'द सूत्र' की पड़ताल में सामने आया कि इस विवाद की जड़ में एक मंत्री की नाराजगी है। जून 2024 में दो बड़े आयोजनों के दौरान मंत्री और सांसद को पुलिस अफसरों ने सलामी नहीं दी थी। पहली घटना 18 जून 2024 को स्कूल चले हम अभियान का कार्यक्रम और दूसरी 24 जून को जबलपुर में रानी दुर्गावती बलिदान दिवस पर हुआ कार्यक्रम है। बताया जा रहा है कि इन आयोजनों में एएसपी रैंक के अफसरों ने न मंत्री को सलामी दी, न सांसद को। इससे मंत्री इतने नाराज हुए कि उन्होंने डीजीपी को इसकी शिकायत कर दी। 

वर्दीधारी अफसरों को फरमान 

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मंत्री की नाराजगी पर 22 अप्रैल 2025 को पुलिस मुख्यालय से एक आदेश बाहर आया, जिसमें साफ लिखा था कि सांसदों और विधायकों को अब सभी सरकारी आयोजनों व मुलाकातों के दौरान वर्दीधारी अफसर सैल्यूट करेंगे। 'द सूत्र' ने जब इस आदेश की फाइल मूवमेंट को ट्रेस किया तो हैरान करने वाली बातें सामने आईं। 

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सिलसिलेवार ढंग से समझें पूरा मामला 

  1. सूत्रों के अनुसार, पुलिस मुख्यालय की शिकायत ​शाखा के एडीजी डीसी सागर ने सैल्यूट को लेकर पुराने सर्कुलर खोजने शुरू किए। एक पुराने आदेश में लिखा था कि पुलिस वालों को अभिवादन (Greet) करना चाहिए। बस यहीं से गफलत शुरू हो गई। 

  2. शिकायत शाखा ने अभिवादन को सैल्यूट किया और प्रस्ताव बनाकर आगे बढ़ा दिया। नियम यह है कि जब कोई आदेश जारी होता है तो संबंधित शाखाओं से अभिमत लिया जाता है। इसी प्रोसेस को फॉलो करते हुए प्रस्ताव इंटेलिजेंस शाखा में पहुंचा। इस पर इंटेलिजेंस एडीजी साईं मनोहर ने अपनी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा भी कि सैल्यूट लिखना ठीक नहीं है। 

  3. यहां से प्रस्ताव डीजीपी कैलाश मकवाना के सामने रखा गया। उन्हें भरोसे में लिया। साथ ही इंटेलिजेंस एडीजी की आपत्ति को दरकिनार किया गया और डीजीपी के उस प्रस्ताव पर साइन करा लिए गए। डीजीपी के साइन होने के बाद कम्प्यूटर से किसी ने इस आदेश की फोटो खींच ली और यही फोटो वायरल हो गई। इसी पर बवाल मच गया। 

मामले को ठंडा करने पर बनी सहमति 

सूत्र बताते हैं कि जब बात मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव तक पहुंची तो उन्होंने नाराजगी जाहिर की। बात दिल्ली तक भी गई। इसके बाद गृह विभाग से जवाब-तलब किया गया। वहां से जेएन कंसोटिया ने बताया कि उनकी तरफ से कोई आदेश जारी नहीं किया गया। फिर पता चला कि यह आदेश पीएचक्यू की शिकायत शाखा से जनरेट हुआ था। मामले को संभालने के लिए आदेश रोक लिए गए। उन्हें जारी नहीं किया। अब पूरे प्रदेश में कम्प्यूटर से लिया गया आदेश का एक ही फोटो वायरल हो रहा है। सूत्रों के अनुसार, अब इस बात पर सहमति बन गई है कि मामले को यहीं ठंडा कर दिया जाए। 

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क्यों वापस खींचने पड़े कदम 

सैल्यूट वाला यह आदेश यदि जारी हो जाता तो सरकार के लिए नई मुसीबत खड़ी हो जाती, क्योंकि विपक्ष के विधायक बवाल मचा देते। हर दिन शिकायतें होतीं कि फलां कार्यक्रम में पुलिस वालों ने उन्हें सैल्यूट नहीं किया। रील के इस जहां में विपक्षी विधायक वीडियो बनवाकर प्रूफ भी दे सकते थे। इससे स्थिति और बिगड़ती। लिहाजा, पीएचक्यू ने अपने कदम वापस खींच लिए हैं। 

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पहले अभिवादन शब्द का इस्तेमाल 

विभागीय सूत्रों का कहना है कि पूर्व में इस तरह के आदेशों में केवल अभिवादन शब्द का प्रयोग किया गया था, यानी नमस्कार, प्रणाम जैसी औपचारिकता। इस बार सैल्यूट शब्द का इस्तेमाल करके पूरे प्रस्ताव को अनुशासन की दिशा में मोड़ दिया गया, जिससे भ्रम और विवाद पैदा हो गया। इस विवाद के सामने आते ही विपक्ष ने मोर्चा खोल दिया। 

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जीतू पटवारी ने साधा निशाना 

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा, मध्यप्रदेश में सरकार कमजोर है, कानून व्यवस्था डगमगा रही है और अब पुलिसकर्मियों से दागी जनप्रतिनिधियों को सैल्यूट करवाकर उनके आत्मविश्वास को और गिराया जा रहा है। सिर्फ विपक्ष ही नहीं, कई पुलिस अफसरों ने भी निजी तौर पर इस आदेश पर ऐतराज जताया है। 

मीडिया में लीक हुए आदेश की पंक्तियां...

  1. माननीय संसद सदस्यों एवं विधायकों के शासकीय कार्यक्रम/सामान्य भेंट के दौरान उनका अभिवादन वर्दीधारी अधिकारी/कर्मचारी सेल्यूट के माध्यम से करें।
  2. माननीय संसद सदस्यों एवं विधायकों द्वारा प्रेषित पत्रों का उत्तर अपने हस्ताक्षर से समय सीमा में प्रेषित करें।
  3. जब कभी कोई माननीय संसद सदस्य या विधायक किसी अधिकारी से उनके कायर्यालय में मिलन आएं तो उनसे सर्वोच्च प्राथमिकता से मिलें और मिलने के प्रयोजन का विधिसम्मत निराकरण करें।

पुलिस किन नेताओं को सैल्यूट करेगी और किन्हें नहीं?

हमारे देश में पुलिस की अनुशासनात्मक और व्यवहारिक नीतियों के अंतर्गत यह तय किया गया है कि पुलिस वाले किसे सैल्यूट (सम्मान के रूप में सलामी) देंगे और किसे नहीं। इसका निर्धारण मुख्य रूप से सरकारी नियमों, परंपराओं और उनके कर्तव्यों के आधार पर किया जाता है।  

सैल्यूट देने के नियम...

मुख्यमंत्री (Chief Minister): राज्य के मुख्यमंत्री को हर पुलिसकर्मी सैल्यूट देगा। यह उनका संवैधानिक अधिकार है और उनका पद सर्वोच्च होता है।

केंद्र सरकार के मंत्री: केंद्रीय मंत्री (जो केंद्रीय पुलिस बलों का हिस्सा होते हैं, जैसे CRPF, BSF) को भी सैल्यूट दिया जाता है।

राज्यपाल (Governor): राज्यपाल के रूप में कार्यरत व्यक्ति को भी पुलिस सैल्यूट देती है, क्योंकि वह राज्य के संवैधानिक प्रमुख होते हैं।

आईएएस, आईपीएस अधिकारी: उच्च स्तर के प्रशासनिक अधिकारियों, जैसे आईएएस और आईपीएस अधिकारी, जिनकी भूमिका शासन और कानून-व्यवस्था में महत्वपूर्ण होती है, को भी सैल्यूट दिया जाता है।

पुलिस प्रमुख (Police Commissioner, DGP): पुलिस बल के वरिष्ठ अधिकारी को भी सैल्यूट दिया जाता है। यह सम्मान उनके पद और जिम्मेदारी के अनुसार होता है।

न्यायिक अधिकारी: न्यायिक अधिकारी (जज, कोर्ट के अधिकारी) और कुछ अन्य महत्वपूर्ण सरकारी अफसरों को भी सैल्यूट दिया जा सकता है, खासकर जब वे अदालत के आदेशों को लागू करने के लिए पुलिस से जुड़े होते हैं।

किसे नहीं सैल्यूट दिया जाएगा?

आमतौर पर सांसदों और विधायकों को पुलिस सैल्यूट नहीं देती, क्योंकि उनके पास संवैधानिक और प्रशासनिक अधिकार नहीं होते। राजनीतिक दलों के नेता यदि सरकार में नहीं हैं या उनके पास कोई सरकारी पद नहीं है तो उन्हें सैल्यूट देने का प्रावधान नहीं होता। जो व्यक्ति किसी संवैधानिक या सरकारी पद पर नहीं हैं, जैसे कि स्थानीय संगठन या पार्टी से जुड़े व्यक्ति, उन्हें पुलिस सैल्यूट नहीं देती।

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