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BHOPAL. नियम-कायदों की परवाह न करने वाले मध्य प्रदेश के अफसरों पर अब भारत सरकार की पाबंदियों को दरकिनार करने का मामला चर्चा में है। प्रदेश के अधिकारियों ने कुछ कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए सीमावर्ती देशों से सामान खरीदी के लिए केंद्र सरकार के लैंड बॉर्डर शेयरिंग नियमों को भी तोड़ा है।
अधिकारी पाबंदियों को तोड़कर कंपनियों से करोड़ों के उपकरण और दवाएं खरीदते रहे। यही नहीं कंपनियों को मुनाफा और अपने फायदे के लिए जीएसटी के प्रावधानों को भी अनदेखा किया गया। डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यु इंटेलीजेंस की पड़ताल में इसका खुलासा होने के बाद अब अधिकारी प्रदेश के भंडार क्रय नियमों के सहारे बचाव की कोशिश में जुट गए हैं।
मध्य प्रदेश में दवाइयों और चिकित्सा उपकरणों की खरीदारी में कसावट के लिए सरकार ने मध्य प्रदेश पब्लिक हेल्थ सर्विसेस कॉर्पोरेशन का गठन किया था। यह कंपनी स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के तहत संचालित अस्पताल और मेडिकल कॉलेजों के लिए दवा और उपकरणों की खरीद करती है।
कॉर्पोरेशन दवाओं की खरीद के लिए देश भर की कंपनियों को इंपैनल करती है और फिर टेंडर के माध्यम से इनसे दवाओं की उपलब्धता तय की जाती है। यानी दवा और उपकरण खरीदी के लिए मात्रा, दर से लेकर कंपनी के चयन का पूरा जिम्मा कॉर्पोरेशन का ही होता है। यानी मध्य प्रदेश सरकार दवा और चिकित्सा उपकरण खरीदी के लिए पूरी तरह कॉर्पोरेशन पर निर्भर है।
न खरीद पर आपत्ति की न भुगतान रोका
मध्य प्रदेश पब्लिक हेल्थ सर्विसेस कॉर्पोरेशन लिमिटेड यानी एमपीपीएचएससीएल द्वारा ऐसी कंपनियों से दवाई और उपकरण खरीदे गए जो लैंड बॉर्डर शेयरिंग नियमों की अनदेखी करती रहीं। दरअसल कोविड काल के बाद साल 2020 में भारत सरकार ने सीमावर्ती देशों से खरीदारी के लिए लैंड बॉर्डर शेयरिंग नियम बनाए थे।
इस नियम के तहत सीमा से सटे देशों से 200 करोड़ रुपए से कम की खरीदारी नहीं की जा सकती है। यानी ऐसी किसी खरीदारी के लिए केंद्र से अनुमति लेना जरूरी है। वहीं अस्पताल और मेडिकल कॉलेजों के लिए एमपीपीएचएससीएल को टेंडर पर कंपनियां एक- दो करोड़ से लेकर बीस या तीस याा उससे भी ज्यादा कीमत की दवाइयां और चिकित्सकीय सामग्री उपलब्ध कराती रहीं। इसमें सीधे तौर पर भारत सरकार के लैंड बॉर्डर शेयरिंग नियम का उल्लंघन किया गया।
पाबंदी पर भारी भंडार क्रय नियम
कंपनियों के माध्यम से की गई दवा और उपकरण की खरीद पर डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यु इंटेलीजेंस की आपत्ति के बाद अब एमपीपीएचएससीएल के अधिकारी खुद को बचाने के प्रयास में जुट गए हैं। हालांकि अधिकारी अब तक ये स्पष्ट नहीं कर पाए हैं कंपनियों को लैंड बॉर्डर शेयरिंग नियमों के तहत चीन जैसे पड़ोसी देश से खरीदारी की अनुमति दी गई थी या नहीं।
ज्यादातर अधिकारी मामला तीन से पांच साल पुराना होने की दलील दे रहे हैं। वहीं कॉर्पोरेशन के अधिकारी कंपनियों के जरिए की गई खरीदारी को मध्य प्रदेश के भंडार क्रय नियमों के अनुरूप बता रहे हैं। उनका कहना है स्वास्थ्य विभाग या कॉर्पोरेशन सीधे तौर पर खरीद नहीं करता, भंडार क्रय नियम के तहत खरीदारी की जाती है। लेकिन केंद्र सरकार के नियम पर प्रदेश के भंडार क्रय नियमों की उपयोगिता के सवाल का जवाब कॉर्पोरेशन के पास नहीं है।
आयकर की जांच के घेरे में कंपनी
चीन से कंपनियों के माध्यम से दवा और चिकित्सा उपकरणों की खरीदी के मामले में जहां लैंड बॉर्डर शेयरिंग नियमों का उल्लंघन हुआ है। वहीं सप्लायर कंपनियों को बिलों के भुगतान में जीएसटी के प्रावधान और टैक्स चोरी की स्थिति भी उजागर हुई है।
पांच साल में यह टैक्स चोरी करोड़ों रुपए की हो सकती है जिसका आंकलन आयकर विभाग कर रहा है। उपकरण और दवा सप्लायर कंपनियों से खरीद से पहले एनएबीएल यानी राष्ट्रीय परीक्षण और अंशशोधन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड में रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता को भी अनदेखा किया गया।
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आखिर कौन है जिम्मेदार कौन
उपकरण-दवा की खरीदारी, टेंडर प्रक्रिया के दौरान दस्तावेजों में एनएबीएल पंजीयन की बाध्यता और भुगतान के दौरान जीएसटी के प्रावधानों को नजरअंदाज किया जाना कॉर्पोरेशन की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है। केंद्रीय एजेंसी, आयकर और जीएसटी साइंस हाउस इंदौर, कंथाली और डीसेंट मेडिकल जैसी कंपनियों से चीन निर्मित उपकरण और दवा खरीद की जांच कर रही हैं।
इस अवधि में आईएएस डॉ. प्रवीण गर्ग 2019 में, डॉ.विजय कुमार साल 2020 में कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक थे। उनके बाद आईएएस डॉ.सुदाम खाड़े, डॉ. सलोनी सिडाना, पंकज जैन भी प्रबंधक निदेशक के पद पर कार्यरत रह चुके हैं।
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कॉर्पोरेशन पर पहले भी उठते रहे सवाल
दवाई और उपकरणों की खरीद को लेकर एमपीपीएचएससीएल की भूमिका पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। साल 2023-24 में कैग की रिपोर्ट में भी प्रदेश में करोड़ों रुपए कीमत की जीवनरक्षक दवाओं के स्टोर में ही खराब होने पर घटिया प्रबंधन और आवश्यकता के बावजूद अस्पतालों को उपलब्ध में अक्षम रहने पर सवाल उठाए गए थे।
साल 2019, 2020, 2021 और 2022 में प्रदेश के उपस्वास्थ्य से लेकर जिला अस्पतालों में जरूरी चिकित्सा उपकरणों का अभाव रहा जबकि कॉर्पोरेशन कंपनियों से खरीदारी करता रहा। अस्पताल से लेकर मेडिकल कॉलेजों में बीपी मॉनिटर, ग्लूकोमीटर और थर्मामीटर जैसे आवश्यकत उपकरणों की कमी रही।
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मरीजों को नहीं मिली, दवा स्टोर में खराब
कॉर्पोरेशन की बेरुखी के चलते 2022 तक भोपाल में 330 प्रकार की दवाएं स्टोर में ही खराब हो गईं। जिनकी कीमत 26 लाख से अधिक थी। इसी तरह रीवा में 4 लाख कीमत की 29 प्रकार की दवाएं, ग्वालियर में डेढ़ लाख की दवाएं, छतरपुर में सवा लाख, बड़वानी में सवा दो लाख, उज्जैन में छह लाख, हरदा में साढ़े तीन लाख और मंडला में 9 लाख रुपए सहित प्रदेश के 19 सिविल सर्जन स्टोर में 55 लाख से ज्यादा की दवाएं अस्पतालों को उपलब्ध न कराने से खराब हो गईं थीं। जबकि भोपाल के हमीदिया अस्पताल, ग्वालियर में जयारोग्य अस्पताल और जीआरएमसी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल तथा छिंदवाड़ा के सीआईएमएस में एक करोड़ की दवाएं बर्बाद हो गईं।
वहीं कैग की रिपोर्ट में 2017 से 2022 के बीच भंडार क्रय नियमों की अनदेखी से टेंडर अनुबंध के बावजूद कंपनियों ने 19 करोड़ से अधिक कीमत के 738 उपकरणों की सप्लाई ही नहीं की। इनमें 43 लाख कीमत की सी-आर्म मशीन, 34 लाख कीमत का ऑटोमेटेड केमेस्ट्री एनालाइजर, 75 लाख की कोलोराडो टेलीथैरेपी सर्विसेज सीटीएस मशीन, 45 लाख की लागत वाली दो यूरोलॉजी सर्जिकल सैट और सवा दो करोड़ की कीमत के सर्जरी सैट भी अस्पताल और मेडिकल कॉलेज को उपलब्ध नहीं कराए गए। इसमें सीधे तौर पर कॉर्पोरेशन की उदासीनता जिम्मेदार रहीं जबकि करोड़ों के बजट की बर्बादी पर स्वास्थ्य और वित्त विभाग की चुप्पी पर भी सवाल उठते रहे हैं।
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मप्र के नियमों के आगे फीकी केंद्र की पाबंदी
भारत चीन सीमा पर लैंड बॉर्डर शेयरिंग नियमों की अनदेखी पर एमपीपीएचएससीएल के एमडी मयंक अग्रवाल का कहना है कॉर्पोरेशन मध्य प्रदेश के भंडार क्रय नियमों के तहत खरीद करता है। जिस खरीदी पर सवाल उठाए जा रहे हैं वह उनके समय का मामला नहीं है। कॉर्पोरेशन ने किसी भी देश से सीधे तौर पर खरीद नहीं की इसलिए नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है। जिस समय का यह मामला है तब वित्त विभाग से अनुमति ली गई होगी। कंपनियों की जीएसटी चोरी के मामले में भी कॉर्पोरेशन की कोई भूमिका नहीं है।