हाईकोर्ट ने NSA लगाने की प्रक्रिया पर उठाए गंभीर सवाल, कलेक्टर और एसपी से मांगी शपथपत्र सहित रिपोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दमोह जिले में ओबीसी युवक से पैर धुलवाने की घटना पर स्वतः संज्ञान लिया। 15 अक्टूबर को हुई सुनवाई में अदालत ने गंभीर सवाल उठाए और घटना के तथ्यों की जांच शुरू की।

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Neel Tiwari
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JABALPUR. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दमोह जिले में ओबीसी युवक से पैर धुलवाने की घटना पर स्वतः संज्ञान लिया। 15 अक्टूबर को हुई सुनवाई में गंभीर प्रश्न उठाए गए। जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनिन्द्र कुमार सिंह की बेंच ने घटना के तथ्यों की जांच शुरू की। अदालत एनएसए लगाने की जल्दबाजी और वैधानिक प्रक्रिया की भी जांच कर रही है।

हाईकोर्ट ने कहा NSA लगाने की प्रक्रिया संदेहास्पद

अधिवक्ता नमन नागरथ ने अदालत से कहा कि 14 अक्टूबर को हाईकोर्ट की समन्वय पीठ ने सोशल मीडिया रिपोर्ट्स पर संज्ञान लिया। यह संज्ञान अधूरी जानकारी पर आधारित था। उन्होंने कहा कि अदालत ने स्वीकार किया था कि एनएसए लगाना कार्यपालिका का विवेकाधिकार है। फिर भी पुलिस को इसे लागू करने का निर्देश दिया गया। यह न्याय का उपहास है।

अदालत ने गंभीर टिप्पणी करते हुए पूछा कि दमोह पुलिस ने किस आधार पर एनएसए लगाया। 14 अक्टूबर का आदेश न तो हाईकोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड हुआ था, न उसकी प्रमाणित प्रति जारी हुई थी।

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बिना रिट पंजीयन के NSA लागू

राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता जान्हवी पंडित ने बताया कि आदेश पारित करते समय दमोह के पुलिस अधीक्षक श्रुतकृति सोमवंशी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित थे, बाद में उन्होंने फोन पर आदेश की पुष्टि भी की। इसके बाद पुलिस ने उसी दिन शाम को ही पांच लोगों—अनुज उर्फ अंजू पांडे, कमलेश पांडे, बृजेश पांडे, राहुल पांडे और दीनदयाल पांडे पर एनएसए की धारा 3(2) के तहत कार्रवाई की सूचना भेज दी।

हाईकोर्ट ने पाया कि कार्रवाई मौखिक आदेशों पर की गई। यह रिट याचिका 15 अक्टूबर को सुबह 11:39 बजे पंजीकृत हुई थी। अदालत ने कहा कि यह देखना जरूरी है कि एसपी ने प्रमाणित आदेश प्राप्त किए बिना कार्रवाई की या नहीं। क्या यह प्रशासनिक अनुशासन के अनुरूप था?

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कलेक्टर और एसपी से शपथपत्र सहित जवाब मांगा गया

हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि दमोह के कलेक्टर और एसपी दोनों 16 अक्टूबर शाम 5:30 बजे तक हलफनामा दाखिल करें, जिसमें यह स्पष्ट किया जाये

1. ग्राम पंचायत के सरपंच और सचिव के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई, जिन्होंने कथित रूप से सभा बुलाई थी।

2. पुलिस अधीक्षक को कौन-सा साक्ष्य प्रस्तुत किया गया था जिसके आधार पर एनएसए लागू किया गया।

3. क्या आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त किए बिना कार्रवाई करना सद्भावनापूर्ण (bonafide) था।

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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भेजे नोटिस

न्यायालय ने उन YouTube चैनलों—‘सत्य हिंदी-MP’, ‘पंजाब केसरी’ और ‘लल्लनटॉप’ को भी नोटिस जारी किए हैं, जिनके वीडियो और रिपोर्ट्स के आधार पर यह स्वतः संज्ञान लिया गया था। अदालत ने इन प्लेटफॉर्म्स से पूछा है कि उन्होंने जो सामग्री प्रकाशित की, वह सत्य तथ्यों पर आधारित थी या नहीं। इनसे कहा गया है कि वे 16 अक्टूबर तक अपना जवाब ईमेल के माध्यम से दाखिल करें, और यदि चाहें तो 17 अक्टूबर को अदालत में उपस्थित होकर अपना पक्ष रखें।

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स्टे की मांग खारिज, अगली सुनवाई 17 अक्टूबर को

वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ ने 14 अक्टूबर के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया। अदालत ने यह अनुरोध अस्वीकार कर दिया। अदालत ने कहा कि आदेश पहले ही निष्पादित हो चुके हैं। अदालत रीव्यू के रूप में सुनवाई नहीं कर सकती।

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला अब जातीय भेदभाव तक सीमित नहीं है। यह न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और कार्यपालिका की जिम्मेदारी का भी परीक्षण है। मामला 17 अक्टूबर को दोपहर 2:30 बजे फिर से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

एमपी में ओबीसी युवक से पैर धुलवाए ओबीसी मध्यप्रदेश दमोह nsa
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