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Photograph: (The Sootr)
INDORE. IIT इंदौर के वैज्ञानिकों ने दवाओं में काम आने वाले नाइट्रोजन बेस्ड केमिकल कम्पाउंड तैयार करने का एक नया तरीका खोज निकाला है।
खास बात ये है कि इस प्रक्रिया में अब ना ही ज्यादा गर्मी की जरूरत है और ना ही जहरीले केमिकल की। बस कमरे के तापमान पर, नीली रोशनी की मदद से ये केमिकल बनाए जा सकते हैं। इससे न सिर्फ बिजली बचेगी, बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होगा।
कौन-से केमिकल की बात हो रही है?
वैज्ञानिकों ने जिन केमिकल कम्पाउंड को विकसित किया है, उन्हें पाइरिडो[1,2-a] पाइरीमिडिन-4-वन्स कहा जाता है। ये केमिकल दवाओं में बेहद अहम होते हैं।
एलर्जी, कैंसर, डिप्रेशन, मांसपेशियों से जुड़ी बीमारियों और सूजन जैसी दिक्कतों की दवाओं में इनका इस्तेमाल होता है। इनकी खास बनावट इन्हें शरीर के अंदर असरदार बना देती है।
पहले कैसे बनते थे ये केमिकल?
अब तक इन केमिकल को बनाने के लिए बहुत हाई टेम्परेचर, महंगे और कई बार जहरीले केमिकल्स की जरूरत होती थी। लेकिन अब IIT इंदौर की टीम ने यह प्रक्रिया विजिबल लाइट (खासतौर पर नीली रोशनी) और फोटोरेडॉक्स कैटलिस्ट नाम के एक स्पेशल केमिकल की मदद से आसान बना दी है।
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इस प्रक्रिया में क्या खास है?
- कमरे के तापमान पर यह केमिकल बनते हैं।
- सस्ती और सरल प्रक्रिया है।
- पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता।
- बिजली की भी कम खपत होती है।
- अलग-अलग तरह के केमिकल समूह (जैसे एसाइल, एरिल, एल्काइल आदि) आसानी से जोड़े जा सकते हैं।
- वैज्ञानिकों ने कुछ मामलों में ट्रांजिशन मेटल कैटलिस्ट के साथ भी इस तकनीक को अपनाया है ताकि रिजल्ट और बेहतर मिल सके।
प्रयोगशाला में बना खास सेटअप
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यह प्रयोग IIT इंदौर की लैब में बनाए गए खास "होममेड फोटोरेडॉक्स सेटअप" में हुआ। इस सेटअप में एक फैन लगाया गया है ताकि तापमान नियंत्रित रहे और एक फोटो स्पेक्ट्रोमीटर की मदद से यह सुनिश्चित किया गया कि इस्तेमाल की जा रही लाइट सही वेवलेंथ की हो।
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यह शोध है एक बेहतरीन उदाहरण
आईआईटी इंदौर के डायरेक्टर प्रोफेसर सुहास जोशी ने कहा, "यह शोध इस बात का एक बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे मौलिक विज्ञान सतत तकनीकी प्रगति के रूप में आगे विकसित हो सकता है। आईआईटी इंदौर में, हम ऐसे शोध को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो नवाचार को पर्यावरणीय उत्तरदायित्व के साथ जोड़ता है।"
कम कीमत में तैयार होंगी सस्ती दवाइयां
इस परियोजना के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. उमेश ए. क्षीरसागर ने कहा, "हमारा मकसद ऐसी तकनीक बनाना था जो न सिर्फ असरदार हो, बल्कि पर्यावरण को नुकसान भी न पहुंचाए। हमने आसान तरीकों से विजिबल लाइट का इस्तेमाल करके कम खर्च में और कम प्रदूषण के साथ जरूरी दवाओं में काम आने वाले केमिकल तैयार करने का रास्ता ढूंढा है।"
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