भागीरथपुरा कांड:स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही, CMHO ने नहीं लिया संज्ञान

भागीरथपुरा में दूषित पानी से मची तबाही ने स्वास्थ्य विभाग की पोल खोल दी है। मरीजों की बढ़ती संख्या के बावजूद सीएमएचओ की चुप्पी ने हालात बिगाड़ दिए।

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Rahul Dave
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Bhagirathpura incident Negligence of health department

Photograph: (the sootr)

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Indore. इंदौर के भागीरथपुरा में दूषित पानी से फैली बीमारी और मौतों का मामला अब केवल नगर निगम की लापरवाही तक सीमित नहीं रहा। इस पूरे कांड में स्वास्थ्य विभाग की गंभीर चूक और लापरवाही भी उजागर हो गई। जानकारी होने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग ने समय पर कार्रवाई नहीं की। अब लापरवाही के आरोप मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी CMHO डॉ. माधव हंसानी और अमले पर लग रहा है। 

जब अस्पतालों में डायरिया के मरीज लगातार पहुंच रहे थे, तब भी विभाग आखिर किस इंतजार में बैठा रहा? कल मौत होने के बाद स्वास्थ्य विभाग का अमला जागा और आज घर घर जा कर स्वास्थ्य परीक्षण किया। यहीं नहीं हर गली में स्वास्थ की टीम बैठी है। प्रशासन के आंकड़े कुछ भी कहे लेकिन हकीकत यह है की हर दूसरे घर में एक मरीज उल्टी दस्त,पेट दर्द डायरिया से पीड़ित हैं।

इधर रहवासियों का आरोप है कि 25 तारीख से तबियत बिगड़ने लगी थी। सभी अपने अपने स्तर पर संजीवनी केंद्र तो कोई सरकारी हॉस्पिटल तो कुछ निजी हॉस्पिटल पहुंचे। वहीं इतने बड़े मामले में स्वास्थय विभाग सोया रहा। उसे इतनी भी भनक नहीं लगी कि सभी मरीजों को एक जैसी ही समस्या आ रही है। कुछ एक्शन लिया जाए।

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यह था मामला

भागीरथपुरा में दूषित पानी की सप्लाई के कारण चार सौ से अधिक लोगों की तबीयत बिगड़ गई। एक के बाद एक कई लोगों की मौत हो गई। रहवासी दो माह से गंदे पानी की शिकायत कर रहे थे। लेकिन इंदौर नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारियों ने इस गंभीर समस्या की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। जिसका नतीजा यह रहा कि कई लोगों को अपनी जान गंवाना पड़ी तो सैकड़ों लोगों को अस्पतालों में भर्ती होना पड़ा। 

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जानकारी मिलने के बाद भी नहीं लिया एक्शन

दूषित जल के सेवन के बाद लोग उल्टी-दस्त और बुखार की शिकायत लेकर सरकारी और निजी अस्पतालों में पहुंचे। डायरिया और गैस्ट्रो की शिकायतों में अचानक बढ़ोतरी दर्ज होने लगी थी। यह साफ संकेत था कि किसी इलाके में जलजनित बीमारी फैल रही है। इसके बावजूद विभाग ने कोई एक्शन नहीं लिया। 

नहीं की ठोस कार्रवाई

न तो तत्काल मेडिकल कैंप लगाए गए, न ही प्रभावित क्षेत्र को चिन्हित कर सघन सर्वे कराया गया। सीएमएचओ कार्यालय स्तर पर केवल औपचारिक सूचनाओं का आदान-प्रदान होता रहा। लेकिन फील्ड पर कोई ठोस कार्रवाई नजर नहीं आई।

...तो इतने भयावह नहीं होते हालात

यदि स्वास्थ्य विभाग समय रहते अलर्ट मोड में आ जाता, तो हालात इतने भयावह नहीं होते। विशेषज्ञों का मानना है कि जलजनित बीमारियों में शुरूआती 48 से 72 घंटे बेहद अहम होते हैं। इसी दौरान दवा वितरण, क्लोरीनेशन, जन-जागरूकता और मेडिकल निगरानी से बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है। लेकिन भागीरथपुरा में यह  गोल्डन पीरियड विभागीय लापरवाही की भेंट चढ़ गया।

मामले ने तूल पकड़ा तब हरकत में आया विभाग

मौतों के बाद जब मामला तूल पकड़ने लगा, तब जाकर नगर निगम के साथ-साथ इंदौर स्वास्थ्य विभाग हरकत में आया। गली-गली डॉक्टरों की तैनाती की गई, घर-घर जाकर सर्वे शुरू हुआ और दवाइयों का वितरण किया गया। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। दर्जनों परिवार अस्पतालों के चक्कर काट रहे थे और कुछ परिवार अपनों को खो चुके थे।

लोगों ने भी नजरअंदाज किया

लोगों का कहना है कि यदि पहले ही स्वास्थ्य विभाग ने इलाके में मेडिकल कैंप लगा दिए होते, पानी से बचाव को लेकर चेतावनी जारी कर दी जाती, तो लोग गंदा पानी पीने से बच जाते। कई मरीजों ने यह भी बताया कि शुरूआत में उन्होंने बीमारी को सामान्य समझकर नजरअंदाज किया। क्योंकि किसी तरह की आधिकारिक चेतावनी या सूचना जारी नहीं की गई थी।

कौन लेगा जिम्मेदारी

भागीरथपुरा कांड में सवाल यह उठ रहा है कि इस पूरी लापरवाही की जिम्मेदारी कौन लेगा? नगर निगम पहले ही सवालों के घेरे में है और अब स्वास्थ्य विभाग की भूमिका पर भी उंगलियां उठने लगी हैं। 

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इसलिए बड़ा हो गया संकट

भागीरथपुरा कांड ने यह साफ कर दिया है कि सिर्फ एक विभाग की चूक नहीं, बल्कि समन्वय की कमी और जवाबदेही के अभाव ने इस संकट को बड़ा बना दिया।

हमें जानकारी नहीं लगी

Cmho माधव हंसानी ने कहा कि हमें इसकी जानकारी नहीं लगी। कल जानकारी मिली तो हमारी टीम मौके पर पहुंची और अपना काम किया ।

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