जहर पी रहा था इंदौर का भागीरथपुरा, 4 मौत के बाद जागा नगर निगम

इंदौर का भागीरथपुरा दूषित पानी से परेशान था। 2 महीने की लगातार शिकायतें मिल रही थी। चार मौतों के बाद प्रशासन ने कार्रवाई की, पानी की गुणवत्ता पर सवाल उठे।

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Rahul Dave
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indore Bhagirathpura was drinking contaminated water, Municipal Corporation woke up after four deaths

Photograph: (the sootr)

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INDORE. देशभर में स्वच्छता के तमगे पहनने वाला इंदौर शहर एक बार फिर बुनियादी सुविधाओं के मोर्चे पर पूरी तरह फेल साबित हुआ है। भागीरथपुरा में दूषित पानी की सप्लाई ने ऐसा कहर बरपाया कि चार लोगों की जान चली गई।
चार सौ से ज्यादा रहवासी अस्पताल पहुंच गए। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इंदौर नगर निगम को दो महीने पहले से शिकायतें मिल रही थीं। लेकिन सिस्टम तब तक नहीं जागा जब तक लाशें नहीं गिरीं।

दो महीने की शिकायतें, दो दिन की कार्रवाई

भागीरथपुरा में पिछले करीब दो महीनों से पानी में बदबू, रंग बदलने और गंदगी की शिकायतें की जा रही थीं। रहवासियों ने हेल्पलाइन, जोन कार्यालय, पार्षद-हर स्तर पर गुहार लगाई, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिला। न पानी बदला गया, न लाइनें जांची गईं।
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25 दिसंबर को टूटा सब्र, सबसे पहले महिला बीमार

25 दिसंबर को सबसे पहले एक महिला की तबीयत अचानक बिगड़ी। उल्टी-दस्त और बुखार की शिकायत के बाद जैसे-जैसे दिन बढ़े, मरीजों की संख्या भी बढ़ती चली गई। इसके बाद हालात हर दिन और भयावह होते चले गए।

दूषित पानी से चार की मौत...

• उर्मिला यादव (65 वर्ष)
• सीमा  प्रजापत(50 वर्ष)
• नंदलाल पाल (रेलवे से सेवानिवृत्त)
• संतोष बिगोलिया ( गार्ड )
चारों भागीरथपुरा के ही निवासी थे और परिजनों का आरोप साफ है, मौत की वजह दूषित पानी ही है।

समय पर सुन लिया होता तो पिता ज़िंदा होते

नंदलाल पाल के बेटे सिद्धार्थ पाल का कहना है कि पानी पीने के बाद उनके पिता को उल्टी-दस्त शुरू हुए, हालत बिगड़ती चली गई और आखिरकार मौत हो गई।
परिवार का आरोप है कि यदि नगर निगम ने समय रहते शिकायतों पर ध्यान दिया होता, तो यह मौत टाली जा सकती थी। मैंने ही बहुत सी शिकायतें की पानी को लेकर, मैं ही नहीं न जाने कितनी शिकायत 181 पर की, लेकिन किसी की नहीं सुनवाई हुई। नतीजा सामने है।

अपर आयुक्त का बयान बना विवाद

नगर निगम के अपर आयुक्त रोहित सिसोनिया ने नंदलाल पाल की मौत को कार्डियक अरेस्ट बताया। इस बयान ने लोगों का गुस्सा और भड़का दिया। परिजनों का कहना है कि नंदलाल को पहले कोई गंभीर हृदय रोग नहीं था। बीमारी दूषित पानी से शुरू हुई, मौत सिस्टम की लापरवाही से हुई।

मां की मौत, 11 महीने का बच्चा ICU में

65 वर्षीय उर्मिला यादव की मौत ने सिस्टम की संवेदनहीनता को और उजागर कर दिया। उनके बेटे संजय यादव का कहना है कि वे एक महीने से पानी की शिकायत कर रहे थे। दुखद यह कि उर्मिला की मौत के बाद संजय का 11 माह का बेटा भी दूषित पानी से बीमार होकर चाचा नेहरू अस्पताल में भर्ती है।

अस्पताल पहुंचने से पहले ही तोड़ा दम

50 वर्षीय सीमा प्रजापत को पेट दर्द और उल्टी के बाद सुबह चार बजे अस्पताल ले जाया जा रहा था, लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गई। भाई जितेंद्र प्रजापत  का कहना है कि बीमारी की शुरुआत गंदा पानी पीने से हुई थी।
संतोष बिगोलिया को 22 दिसंबर को उल्टी-दस्त के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 25 दिसंबर को डॉक्टरों ने उनकी मौत की सूचना दी। बहू आरती का आरोप है कि उन्होंने भी कई बार गंदे पानी की शिकायत की थी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।

400 से ज्यादा बीमार, सबसे ज्यादा महिलाएं-बच्चे

तीन दिनों के भीतर हालात इतने बिगड़ गए कि 400 से ज्यादा लोग अस्पतालों में भर्ती हो गए। इनमें सबसे ज्यादा महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग शामिल हैं। पेट दर्द, उल्टी-दस्त, बुखार और कमजोरी आम शिकायत बन गई।

मौतों के बाद हरकत में आया सिस्टम-

चार मौतों के बाद नगर निगम, जिला प्रशासन और पुलिस हरकत में आए।

• चेंबरों की सफाई शुरू हुई
• पानी की लाइनों की जांच की गई
• डॉक्टरों की टीमें गली-गली तैनात हुईं
• घर-घर जांच और दवाइयां बांटी गईं
• पानी के सैंपल जांच के लिए भेजे गए

लोगों का सवाल- अब क्यों?

स्थानीय लोगों का कहना है कि ये कदम बहुत देर से उठाए गए। अगर दो महीने पहले शिकायतें सुनी जातीं, तो चार सौ लोग बीमार पड़ते और न ही चार परिवार उजड़ते।
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स्वच्छता में नंबर वन, पानी में फेल

भागीरथपुरा की यह घटना सिर्फ एक इलाके की नहीं, बल्कि पूरे इंदौर के सिस्टम पर सवाल है। स्वच्छता सर्वेक्षण में नंबर वन रहने वाला शहर अगर पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधा में फेल हो जाए, तो यह प्रशासनिक लापरवाही नहीं, सिस्टम की गंभीर विफलता है। अब सवाल यह है कि क्या इस बार जिम्मेदारी तय होगी, या अगली बस्ती अगला भागीरथपुरा बनेगी?
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