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INDORE. इंदौर में दवाओं के नाम पर लोगों की सेहत से खुला खेल चल रहा था। वह भी किसी जंगल में नहीं, बल्कि रिहायशी इलाके में। कलेक्टर के निर्देश पर सांवेर एसडीएम घनश्याम धनगर की टीम ने रभियांस हर्बल प्राइवेट लिमिटेड पर छापा मारा। छापे में आयुर्वेदिक दवाओं का ऐसा सच सामने आया, जिसने पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए।
यहां 30 से ज्यादा आयुर्वेदिक सिरप और दवाएं तैयार की जा रही थीं। न तो कोई लैब थी, न टेस्टिंग सिस्टम, और न ही कोई दस्तावेज था जो यह बताता कि इन दवाओं में क्या डाला जा रहा था। यानी मरीज भरोसा कर रहा था, लेकिन दवा पूरी तरह अंधेरे में बनाई जा रही थी।
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उपभोक्ताओं को किया गुमराह
जांच में सामने आया कि दवाओं के लेबल पर पंजाब और देहरादून की नामी कंपनियों के नाम छापे गए थे। लेकिन हकीकत यह थी कि इन कंपनियों से फर्म का कोई टाई-अप ही नहीं था। साफ है कि ब्रांड का नाम लगाकर उपभोक्ताओं को गुमराह किया जा रहा था।
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फार्मा कंपनी में देखकर सिरप बनाना सीख
सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह था कि दवाएं बनाने वाला संजय डेविड गुजराती कॉलेज इंदौर से ग्रेजुएट है। वह न केमिस्ट है, न फार्मासिस्ट और न ही आयुष से जुड़ा प्रशिक्षित व्यक्ति। वह बीएससी मैथ्स पास है और सिरप बनाना किसी फार्मा कंपनी में काम देखकर सीखा था। सवाल यह है कि क्या किसी की जान प्रयोगशाला बन सकती है?
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नियमों की उड़ रही थी धज्जियां
छापे में यह सामने आया कि पूरी गतिविधि आवासीय परिसर में चल रही थी। वहां न फायर सेफ्टी थी, न स्वच्छता के मानक और न ही स्वास्थ्य सुरक्षा की व्यवस्था थी। नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही थीं, लेकिन निगरानी कहीं नहीं दिखी।
तत्काल सील की फर्म
मामला सामने आते ही आयुष विभाग और प्रशासन ने फर्म को तत्काल सील कर दिया। दस्तावेज जब्त कर जांच शुरू कर दी गई है। अब यह तय होगा कि सिर्फ सीलिंग होगी या फिर दवाओं के नाम पर जहर बेचने वालों पर आपराधिक केस भी दर्ज होंगे। कार्रवाई के दौरान एसडीएम घनश्याम धनगर, तहसीलदार पूनम तोमर, राजस्व अमला और आयुष विभाग के अधिकारी मौजूद रहे।
सवाल यह है
जब नकली दवाएं घरों में बनें, नामी कंपनियों के नाम चिपकें और सिस्टम को भनक तक न लगे तो जिम्मेदारी किसकी है?
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