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Photograph: (THESOOTR)
INDORE. शहर में फर्जी दस्तावेजों के सहारे संचालित अस्पतालों पर बड़ा खुलासा सामने आया था। इसके बाद इस मामले में इंदौर हाईकोर्ट खंडपीठ ने सुनवाई के बाद आदेश दिया। बैंच ने लगभग 34 अस्पतालों की विस्तृत जांच रिपोर्ट छह सप्ताह में पेश करने के आदेश दिए हैं। मामले में सुनवाई जस्टिस विजय कुमार शुक्ला व जस्टिस आलोक अवस्थी की बेंच में हुई। शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता आनंद सोनी पहुंचे। साथ ही स्वास्थ्य विभाग से सीएमएचओ माधव हासानी मौजूद थे।
फर्जी दस्तावेजों पर चल रहे अस्पताल
याचिकाकर्ता अधिवक्ता चर्चित शास्त्री ने सुनवाई के दौरान बताया कि अस्पतालों को फर्जी कागजों के आधार पर रजिस्ट्रेशन दिए गए। इस संबंध में करीब आठ महीनों से शिकायतें की गई, पर कोई कार्रवाई नहीं।
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लाखों रुपए लेकर दस्तावेज बनवाने का आरोप
याचिकाकर्ता ने बताया विभाग में पदस्थ शिवेंद्र अवस्थी लाखों रुपए का लेन-देन करता है। अस्पतालों के लिए कूटरचित दस्तावेज तैयार करवाए जाते हैं। इसके चलते कई अस्पताल बिना रजिस्ट्रेशन चल रहे हैं। यहां तक कि अनेक अस्पतालों ने फर्जी फायर सेफ्टी अनुमति ली है और फर्जी दस्तावेजों से रजिस्ट्रेशन लिया जाकर लोगों की जान जोखिम में डाली जा रही है।
समय मांगने पर कोर्ट ने दिया सख्त निर्देश
सुनवाई के दौरान अतिरिक्त महाधिवक्ता आनंद सोनी ने जांच रिपोर्ट के लिए समय मांगा। इस पर कोर्ट ने कहा सीएचएमओ छह सप्ताह में जवाब दें। रिपोर्ट जनवरी के अंतिम सप्ताह तक पेश की जाए। साथ ही जांच में याचिकाकर्ता को भी शामिल करें।
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स्वास्थ्य विभाग पर सहयोग न करने का आरोप
याचिकाकर्ता ने कहा अधिकारी जानबूझकर दस्तावेज रोकते हैं। छह-छह महीने तक जानकारी नहीं देते। कोर्ट ने इस रवैये पर असंतोष जताया।
ऐसे हुआ था खुलासा
याचिकाकर्ता द्वारा जब संबंधित विभागों में तीन अस्पतालों में चल रहे फर्जीवाड़े की शिकायत की गई तो जिम्मेदार अधिकारियों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और मामले को दबाने की कोशिश की गई। शिकायतकर्ता ने हार नहीं मानी और हाईकोर्ट में तीन अस्पतालों के विरुद्ध याचिका दायर कर दी। हाईकोर्ट में मामले के तार छानने पर पता चला कि शहर के 34 और अस्पतालों का भी फर्जीवाड़ा उजागर हुआ था।
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सूचना के अधिकार से मिली जानकारी
याचिकाकर्ता द्वारा नगर निगम में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत उक्त दस्तावेजों की प्रमाणीकरण हेतु आवेदन किया गया तो नगर पालिका निगम ने बताया कि ये दस्तावेज जारी नहीं किए गए थे। इसके बाद याचिकाकर्ता द्वारा सभी संबंधित विभागों में शिकायत की गई, लेकिन कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं होने पर याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय का रुख किया।
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