इंदौर रीजनल पार्क ई टेंडर पर द सूत्र के खुलासे के बाद टेंडर निरस्ती प्रक्रिया शुरू, MIC में लगेगी मुहर

इंदौर नगर निगम ने अटल बिहारी रीजनल पार्क को ठेके पर देने के लिए हुए ई-टेंडर प्रक्रिया संदिग्ध पाई है। द सूत्र के खुलासे के बाद विवाद बढ़ा। कांग्रेस ने टेंडर को लेकर लोकायुक्त में शिकायत की चेतावनी दी। अब निगमायुक्त ने टेंडर रद्द करने पत्र लिखा है।

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Sanjay Gupta
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इंदौर नगर निगम द्वारा अटल बिहारी रीजनल पार्क को ठेके पर देने के लिए हुए ई टेंडर के संदिग्ध होने के द सूत्र के खुलासे के बाद अब इसके निरस्त करने की औपचारिक प्रक्रिया शुरू हो गई है ।

एमआईसी में लगेगी मुहर, लिख दिया पत्र

इस टेंडर में प्रक्रिया संदिग्थ थी। द सूत्र की खबर के बाद बवाल मच गया था और इंदौर के दो बड़े कॉर्पोरेट व्यक्तियों की कंपनी को झटका लग गया। इसके बाद कांग्रेस ने मोर्चा खोला और इसमें टेंडर रद्द नहीं होने पर लोकायुक्त में शिकायत करने की चेतावनी दे दी। अब निगमायुक्त शिवम वर्मा ने इस टेंडर को रद्द करने के लिए एमआईसी एजेंडे में रखने के लिए पत्र लिख दिया है। निगमायुक्त शिवम वर्मा ने इस मामले में सख्त रूख अपनाया और टेंडर रद्द करने के लिए फाइल चला दी है। 

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इस आधार पर होगा टेंडर रद्द

सूत्रों के अनुसार टेंडर रद्द करने के लिए आधार लिखा है कि- रीजनल पार्क के बीच में एक बड़ा तालाब है और वर्तमान में स्पोर्ट एक्टिविटी काफी बढ़ चुकी है, इसका भी व्यावसायिक उपयोग होगा। टेंडर की शर्तों में इसका कोई जिक्र नहीं है, ऐसे में टेंडर की शर्तों का फिर से निर्धारण करना जरूरी है। ऐसे में चौथी बार में हुए टेंडर और तय की कंपनी को रद्द किया जाना उचित होगा। 

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द सूत्र ने ऐसे किया था खुलासा

द सूत्र ने इस पर विस्तृत न्यूज 31 जुलाई को पब्लिश की थी। द सूत्र के पास मिली चौंकाने वाली जानकारी के अनुसार टेंडर पाने वाली कंपनी और अन्य प्रतियोगी कंपनी के डायरेक्टर के बीच भी लिंक रही है।

इससे साफ हो रहा है कि नगर निगम में टेंडर मैनेज हो रहे हैं और टेंडर भरने वाली कंपनियों की गोपनीय जानकारी अन्य को मिल रही है। इस पूरे मामले में इंदौर से लेकर भोपाल तक टेंडर प्रक्रिया के पोर्टल से जुड़े लोगों और इस पर निगरानी वाले अधिकारियों पर गंभीर सवाल उठे हैं। 

यह है मामला

इंदौर नगर निगम लंबे समय से अटल बिहारी वाजपेयी पिपल्यापाला रीजनल पार्क को ठेके पर देने के लिए टेंडर कर रहा है। तीन बार इसके लिए टेंडर हो चुके थे लेकिन किसी ना किसी वजह से यह रद्द कर दिए गए। इस बार पांच मार्च 2025 को निगम से चौथी बार टेंडर बुलाए गए और इसके लिए अंतिम तारीख 3 अप्रैल थी। 

टेंडर में तीन कंपनियों के आवेदन आए इसमें एक कंपनी इंदौर की  Orange Megsstructure LLP and Reclusive Real Estate and Entertainment pvt ltd JV है जिसमें डायरेक्टर राजेश मेहता व गुरजीत (पिंटू) सिंह छाबड़ा है

दूसरी कंपनी चेन्नई तमिलनाड़ु की Arihant Foundation and Housing Pvt Ltd है जिसमें डायरेक्टर कमल लुनावत, विमल लुनावत, भरत जैन, करण भसीन, व अन्य है।

तीसरी कंपनी रायपुर छत्तीसगढ़ की Sona Infrapark Pvt Ltd है। 

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इस कंपनी की मिली सबसे बड़ी बोली

इन कंपनियों के भरे गए टेंडर के आधार पर इंदौर की ऑरेंज कंपनी को सबसे बड़ी बिड मिली थी जो प्रति साल 2.20 करोड़ रुपए थी। इस टेंडर के अनुसार यह रीजनल पार्क एक तय समय के लिए इस कंपनी को दिया जाएगा और फिर वह कंपनी इसके बदले में बिड में तय राशि हर साल नगर निगम को देगी। बदले में कंपनी ही इस पार्क का मेंटनेंस भी करेगी। 

अब कैसे इस टेंडर में घोटाले की छाया पड़ी

1- इस टेंडर के लिए लिंक 5 मार्च को ओपन हुई और 3 अप्रैल अंतिम तारीख थी। लेकिन इस दौरान केवल दो कंपनी के टेंडर आए। इसमें सोना इन्फ्रा पार्क की बिड सबमिट नहीं होने से उसने आवेदन दिया और इसके आधार पर इसमें अंतिम तारीख बढ़ाई गई। हालांकि सोना इन्फ्रा ने फिर उसी दिन बिड सबमिट कर दी। 

2- लेकिन इसी दौरान एक और कंपनी थी जिसने अपने टेंडर बिड में सुधार किया और इस कंपनी ने बिड भरने की समय सीमा खत्म होने के केवल एक मिनट पहले चार अप्रैल की शाम को बोली में करेक्शन करके फिर सबमिट की। जबकि टेंडर भरने में समस्या केवल सोना कंपनी को आ रही थी लेकिन सुधार दूसरी कंपनी ने भी किया।

तो क्या इस कंपनी को पता चल गया था कि एक और कंपनी ने बोली लगाई है और उसकी बोली उससे हल्की निकल सकती है, इसलिए सुधार जरूरी है। जबकि टेंडर किसने भरा यह किसी को पता नहीं चलता है और यह जानकारी गोपनीय होती है। सबसे बड़ा सवाल यही कि दूसरी कंपनी ने यह सुधार क्यों किया

3- इससे सवाल उठता है कि गोपनीय और संवेदनशील जानकारी का लीक होना है, संभवतः किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसे टेंडर प्रक्रिया को लेकर विशेष पहुंच प्राप्त थी। लीक की संभावना उस संस्था से जुड़ी है जो निविदा प्रक्रिया की निगरानी कर रही थी, जैसे कि परियोजना की परामर्शदाता फर्म या पोर्टल का प्रशासनिक दल।

4- जिस कंपनी को टेंडर मिला ऑरेंज को, इसे लेकर एक और जानकारी मिली है कि इसने टेंडर में  5,12,15 मार्च और तीन व चार अप्रैल को भी संशोधन किया है।  

5- एक बात और इस ऑरेंज कंपनी ने करीब 2.20 करोड़ प्रति साल की बोली लगाई जो सबसे ज्यादा थी, दूसरी कंपनी की बोली 1.80 करोड़ के करीब की थी और तीसरी कंपनी की सवा करोड़ के करीब की। वहीं इसके पहले भी यह कंपनी पूर्व में टेंडर प्रक्रिया में शामिल हो चुकी है और तब इसकी बिड 1 से सवा करोड़ के बीच ही थी। यानी इस कंपनी ने इस बार एक करोड़ का इजाफा किया है अपनी टेंडर बिड में। 

6- वहीं एक और इसमें आशंका तेज हुई, आपस में कंपनियों के लिंक होने की। क्योंकि टेंडर भरने वाली चेन्नई की अरिहंत कंपनी के डायरेक्टर कमल लुनावत, कुछ साल पहले ऑरेंज इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रालि कंपनी में डायरेक्टर रह चुके हैं। इस तरह बोली लगाने वाली अरिहंत फाउंडेशंस एंड हाउसिंग और ऑरेंज मेगास्ट्रक्चर एलएलपी कंपनी के आपस में लिंक जुड़ रहे हैं। इससे संकेत है कि यह कंपनियां आपस में मिलकर बोली लगा रही हैं, जो एक गंभीर मामला है। 

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भोपाल निगमायुक्त शिवम वर्मा अटल बिहारी वाजपेयी लोकायुक्त कांग्रेस इंदौर रीजनल पार्क ई टेंडर इंदौर नगर निगम