/sootr/media/media_files/2025/05/20/TUAnI0kA07tajkRUDgF8.jpg)
Photograph: (THESOOTR)
भोपाल के समाजसेवी सतीश नायक की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने अंतरिम आदेश जारी कर निर्देश दिया कि इंदौर नगर निगम में संयुक्त संचालक नगर ग्राम निवेश विभाग के पद पर पदस्थ नीरज आनंद लिखार को तत्काल प्रभाव से उस पद के कार्यों से पृथक कर दिया जाए।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर मुख्यपीठ ने सोमवार को एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए एक अत्यंत महत्वपूर्ण आदेश पारित किया। कोर्ट ने यह निर्देश दिया कि इंदौर नगर निगम में संयुक्त संचालक नगर ग्राम निवेश विभाग के पद पर पदस्थ नीरज आनंद को तत्काल प्रभाव से उस पद के कार्यों से पृथक कर दिया जाए। यह फैसला इस तथ्य पर आधारित है कि नीरज आनंद के बड़े भाई अजय लिखार का जाति प्रमाण पत्र पूर्व में जाली घोषित किया जा चुका है, और उन्हें इसी आधार पर सेवा से बर्खास्त भी किया गया है। याचिका भोपाल निवासी समाजसेवी सतीश नायक द्वारा लगाई गई थी, जिन्होंने इस मामले में अनुसूचित जनजाति आरक्षण के दुरुपयोग का गंभीर आरोप लगाया है।
हालांकि, हाई कोर्ट के द्वारा दिए गए आदेश में प्रतिवादी क्रमांक 5 लिखा गया है लेकिन यह एक टाइपिंग मिस्टेक है क्योंकि हाई कोर्ट ने ही हर जगह अपने आदेश में अजय लिखार को प्रतिवादी क्रमांक 5 का भाई बताया है, जिससे यह साफ हो रहा है कि हाई कोर्ट केस आदेश में टाइपिंग मिस्टेक हुई है जिसे बाद में प्रतिवादी क्रमांक 6 यानी नीरज आनंद निखार किया जाएगा।
नीरज आनंद का प्रमाण पत्र भी संदेह के घेरे में
याचिकाकर्ता के अनुसार नीरज आनंद लिखार ने अपनी सरकारी सेवा में प्रवेश के समय अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था, जो कि उसी जाति का था जिससे उनके बड़े भाई अजय लिखार संबंधित हैं। लेकिन यह तथ्य अब सामने आया है कि अजय लिखार का प्रमाण पत्र राज्य सरकार द्वारा फर्जी घोषित किया जा चुका है और उन्हें इस आधार पर सेवा से भी हटा दिया गया है।
यही नहीं, याचिकाकर्ता ने इस बिंदु को भी रेखांकित किया कि यदि एक ही परिवार के दो सदस्यों ने एक ही जाति के आधार पर प्रमाण पत्र बनवाए हैं और एक का प्रमाण पत्र फर्जी पाया गया है, तो दूसरे की वैधता पर भी संदेह होना स्वाभाविक है।
ये खबर भी पढ़ें...
जांच लंबित होने का तर्क कोर्ट ने ठुकराया
राज्य सरकार की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि इस मामले को दिनांक 9 अप्रैल 2025 को उच्च स्तरीय छानबीन समिति के पास भेजा गया है और समिति द्वारा इस पूरे विवाद की जांच की जा रही है। उन्होंने तर्क दिया कि जब तक समिति की रिपोर्ट प्राप्त नहीं हो जाती, तब तक किसी भी कर्मचारी के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई करना उचित नहीं होगा। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को अपर्याप्त माना और स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति की सेवा में प्रवेश की मूल शर्त ही संदिग्ध है, तो जांच के लंबित होने का बहाना देकर उस व्यक्ति को जिम्मेदार पद पर बनाए रखना तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता।
ये खबर भी पढ़ें...
जज पर रेप की FIR रद्द , HC ने पीड़िता के दावों पर उठाए सवाल
प्रशासनिक अधिकारी की कानूनी वैधता पारदर्शी हो: HC
कोर्ट ने यह भी कहा कि इंदौर नगर निगम में संयुक्त संचालक नगर ग्राम निवेश विभाग का पद एक अत्यंत तकनीकी और नीति-निर्धारण से जुड़ा हुआ पद है, जो सीधे तौर पर शहरी विकास और नगर नियोजन से संबंधित होता है। ऐसे पद पर कार्यरत अधिकारी की योग्यता और कानूनी वैधता पूरी तरह से पारदर्शी होनी चाहिए। जब यह स्पष्ट हो चुका है कि नीरज आनंद का जाति प्रमाण पत्र उनके भाई के जाली प्रमाण पत्र से जुड़े तथ्यों के कारण संदेह के घेरे में है, तो उन्हें सेवा में बनाए रखना न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि संविधान की समानता और ईमानदारी की भावना के भी विरुद्ध है।
ये खबर भी पढ़ें...
पत्नी बेवफा, उसके आशिक दे रहे धमकी, पति ने खोली बीवी की करतूतों की पोल
विभाग का कार्य किसी और को सौंपा जाए
जस्टिस विशाल मिश्रा की बेंच ने अंतरिम आदेश देते हुए स्पष्ट किया कि जब तक उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट सामने नहीं आ जाती और पूरे मामले पर अंतिम निर्णय नहीं लिया जाता, तब तक नीरज आनंद निखार से नगर नियोजन से संबंधित कोई कार्य नहीं लिया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि इंदौर नगर निगम के दैनिक कार्य प्रभावित न हों, इसके लिए नगर नियोजन का कार्य किसी अन्य अधिकारी को अस्थायी रूप से सौंपा जा सकता है, लेकिन नीरज आनंद को यह जिम्मेदारी देना अनुचित होगा। इस आदेश से साफ हो गया है कि न्यायालय जातीय प्रमाण पत्र जैसे संवेदनशील मुद्दों पर गंभीर दृष्टिकोण रखता है।
ये खबर भी पढ़ें...
सौतेला बाप ही निकला हत्यारा! सेप्टिक टैंक से मिले कंकाल का खुला राज
आगे की सुनवाई 30 जून के सप्ताह में
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों के वकीलों की सहमति के आधार पर मामले की अगली सुनवाई 30 जून 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है। तब तक राज्य सरकार और उसकी छानबीन समिति को इस मामले में पूरी रिपोर्ट तैयार कर कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करनी होगी। यह अगली सुनवाई इस पूरे प्रकरण की दिशा तय करेगी और यह भी स्पष्ट करेगी कि क्या नीरज आनंद का जातीय प्रमाण पत्र वैध है या नहीं।
याचिकाकर्ता ने उठाया प्रशासनिक पारदर्शिता और सामाजिक न्याय का मुद्दा
भोपाल के समाजसेवी सतीश नायक द्वारा दायर यह याचिका न केवल एक व्यक्ति विशेष के खिलाफ है, बल्कि यह व्यापक रूप से प्रशासनिक पारदर्शिता, सामाजिक न्याय और जातीय आरक्षण के दुरुपयोग को लेकर चेतावनी देने वाली याचिका है। सतीश नायक का तर्क है कि अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित पदों पर यदि इस प्रकार जाली प्रमाण पत्रों के आधार पर लोग नियुक्त हो जाएंगे, तो इसका सीधा नुकसान उन पात्र उम्मीदवारों को होगा जो वास्तव में वंचित वर्ग से आते हैं और जिन्हें इस आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।