इंदौर नगर निगम को संपत्तिकर में झटका, चमेलीदेवी स्कूल के मामले में हाईकोर्ट के ये आदेश

इंदौर नगर निगम के  चमेलीदेवी स्कूल से वसूले जाने वाले संपत्तिकर व उपकरों पर हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने शिक्षा‑उपकर व शहरी‑विकास उपकर को निरस्त कर दिया है।

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Sanjay Gupta
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इंदौर नगर निगम आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहा है। अपनी आय बढ़ाने की कोशिश में है, लेकिन इसी कोशिश को लेकर राजनीतिक विवाद हो चुका है। अब हाईकोर्ट से एक बड़ा झटका लगा है।

चमेलीदेवी स्कूल से नहीं वसूल सकेंगे टैक्स

नगर निगम ने चमेलीदेवी स्कूल पर लाखों रुपए का संपत्तिकर व अन्य टैक्स की वसूली निकाली थी। यह स्कूल मध्यप्रदेश के सबसे अमीर व्यक्ति विनोद अग्रवाल के भाई पुरूषोत्तम अग्रवाल का है।

इस वसूली के खिलाफ अग्रवाल हाईकोर्ट गए और उन्होंने स्कूल प्रबंधन के पक्ष में फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने शहरी विकास उपकर और शिक्षा उपकर की मांग को निरस्त कर दिया है। साथ ही, जमा टैक्स को समायोजन के आदेश दिए हैं। अब नगर निगम स्कूल से टैक्स वसूली नहीं कर सकता है।

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क्या था स्कूल प्रबंधन और शासन का तर्क

इस मामले में स्कूल प्रबंधन ने दया देवी शिक्षा समिति (सुप्रा) और पायनियर सोसाइटी फॉर प्रोफेशनल स्टडीज के मामले में पारित आदेश का हवाला दिया। इसमें कहा गया था कि शैक्षणिक संस्थानों से निगम संपत्तिकर नहीं वसूल सकता।

वहीं शासन की ओर से तर्क था कि उपरोक्त दोनों मामलों में निर्णय अनुचित हैं। क्योंकि, अधिनियम, 1956 के तहत राज्य सरकार को किसी भी शैक्षणिक संस्थान को करों के भुगतान से छूट देने की कोई शक्ति नहीं दी गई है। इसलिए ये दोनों फैसले न्यायालय के लिए बाध्यकारी नहीं हैं। इस मामले पर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है।

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आखिरकार हाईकोर्ट ने यह दिए आदेश

इस मामले में जस्टिस प्रणय वर्मा की बेंच ने स्कूल प्रबंधन की याचिका मान्य कर ली। उन्होंने कहा कि पूर्व में पारित निर्णयों का अध्ययन करने के बाद, मानना है कि वे इस न्यायालय द्वारा पुनर्विचार के योग्य नहीं हैं।

ये निर्णय सुविचारित निर्णय हैं और अधिनियम, 1956 के विभिन्न प्रावधानों और राज्य सरकार की अधिसूचना को ध्यान में रखते हुए, संबंधित मुद्दे का निर्णय किया गया है। यह याचिका स्वीकार की जाती है।

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यह टैक्स स्कूल से नहीं वसूले जाएंगे

आदेश में कहा गया है कि याचिकाकर्ता (स्कूल प्रबंधन) से शहरी विकास उपकर और शिक्षा उपकर की मांग को एतद्द्वारा निरस्त किया जाता है। प्रतिवादी यानी नगर निगम, याचिकाकर्ता द्वारा भुगतान की गई राशि को मांगों के विरुद्ध समायोजित करें।

साथ ही, उसे संशोधित बिल/चालान दे। वह याचिकाकर्ता के जरिए शिक्षा उपकर और शहरी विकास उपकर के रूप में भुगतान की गई अतिरिक्त राशि आज से दो माह की अवधि के भीतर याचिकाकर्ता को वापस कर देंगे।

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