अनिरुद्धाचार्य के वेश्या वाले बयान पर भड़के जगद्गुरु रामानंदाचार्य, दिया यह बड़ा बयान

जगद्गुरु रामानंदाचार्य श्री राम दिनेशाचार्य जी स्वामी ने अनिरुद्धाचार्य महाराज के लिव इन रिलेशनशिप पर दिए गए विवादास्पद बयान पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि जब कम पढ़ा लिखा व्यक्ति व्यास पीठ पर बैठता है, तो उसकी वाणी समाज को आहत कर सकती है।

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Sanjay Dhiman
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Photograph: (the sootr)

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जब कम पढ़ा लिखा व्यक्ति व्यास पीठ पर बैठकर प्रवचन करता है, तो उसकी वाणी समाज में विवाद उत्पन्न करने का कारण बन सकती है।

यह बात जगद्गुरु रामानंदाचार्य श्री राम दिनेशाचार्य स्वामी ने अनिरुद्धाचार्य महाराज के उस बयान पर दिया, जिसमें उन्होंने लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को वेश्या करार दिया था।

मध्यप्रदेश के ग्वालियर में श्रीमद्भागवत गीता का संगीतमय कथावाचन करने पहुंचे जगद्गुरु रामानंदाचार्य से जब इस विषय पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपनी भाषा पर संयम रखना चाहिए। अनिरुद्धाचार्य महाराज का बयान विचारणीय है, लेकिन रामभद्राचार्य की बात बिलकुल सही प्रतीत होती है। उनका कहना था कि जब कोई बिना शिक्षा प्राप्त व्यक्ति व्यास पीठ पर बैठता है और प्रवचन करता है, तो उसकी वाणी से ऐसे शब्द निकलते है जिससे समाज के लोग आहत हो सकते हैं।

अनिरुद्धाचार्य ने यह दिया था बयान

अनिरुद्धाचार्य महाराज ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को वेश्या कहा था, जिस पर जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। उनका कहना था कि जब एक व्यक्ति, जो बिना शास्त्र ज्ञान के है, व्यास पीठ पर बैठकर प्रवचन देता है, तो उसकी वाणी समाज में विद्रोह का कारण बन सकती है।

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लिव-इन रिलेशनशिप परंपरा का हिस्सा नहीं

लिव-इन रिलेशनशिप पर जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने कहा कि यह भारतीय परंपरा का हिस्सा नहीं है। उन्होंने बताया कि एक स्वस्थ समाज की स्थापना के लिए इस प्रकार के रिश्ते अनुकूल नहीं हो सकते। उनका कहना था कि पारंपरिक भारतीय समाज ने विवाह और परिवार के सिद्धांतों को महत्व दिया है, और लिव-इन रिलेशनशिप इस संरचना के खिलाफ जाता है। 

संस्कृत केवल भाषा नहीं,भारत की आत्मा है

जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने संस्कृत के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि संस्कृत केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि यह भारत की आत्मा है। भारतीय दर्शन और संस्कृति को समझने के लिए संस्कृत का ज्ञान आवश्यक है। इसके बावजूद उन्होंने यह भी कहा कि भक्ति के पथ पर जाने के लिए संस्कृत का ज्ञान अनिवार्य नहीं है, जैसे कबीर दास जी ने स्वयं कहा था कि उन्होंने कभी संस्कृत नहीं पढ़ी।

भारतीय सभ्यता और संस्कृति की जड़ है संस्कृत

संस्कृत भारतीय सभ्यता और संस्कृति की जड़ है, और इसके बिना भारतीयता को सही तरीके से समझना संभव नहीं है। जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने रामचरितमानस का उदाहरण दिया, जिसमें संस्कृत का अत्यधिक प्रयोग हुआ है। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि भक्ति के मार्ग पर संस्कृत का ज्ञान होना आवश्यक नहीं है, लेकिन एक व्यक्ति को भारतीय संस्कृति को समझने के लिए संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए। 

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शराब से होता है समाज में नैतिकता का पतन

प्रदेश में शराबबंदी और नैतिकता के पतन पर अपने विचार व्यक्त करते हुए जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने कहा कि शराबबंदी बहुत जरूरी है। उनका मानना था कि शराब जैसे पदार्थ समाज में नैतिकता का पतन करते हैं और इससे लोगों को दूर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि चाहे वह महिला हो या पुरुष, जो भी इस प्रकार के पदार्थ का सेवन करेगा, उसे इसके दुष्परिणामों का सामना करना पड़ेगा।

जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने यह भी कहा कि समाज में जो भी नैतिकता को नुकसान पहुंचाता है, उसे समाप्त कर देना चाहिए। उनका मानना था कि समाज को इस तरह के नकारात्मक प्रभावों से बचाना जरूरी है ताकि भारतीय संस्कृति और परंपरा बनी रहे। 

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