जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलगुरु अविनाश तिवारी को हटाया, EOW ने दर्ज किया था धोखाधड़ी का मामला

ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलगुरु अविनाश तिवारी और शिवशक्ति महाविद्यालय, झुंडपुरा, मुरैना के संचालक रघुराज सिंह जादौन पर आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) ने फर्जी दस्तावेजों और धोखाधड़ी के मामले में अपराध पंजीबद्ध किया था।

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Jitendra Shrivastava
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फर्जी दस्तावेजों और धोखाधड़ी के आरोप में जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलगुरु अविनाश तिवारी को हटा दिया गया है। राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने धारा-52 का उपयोग कर यह फैसला लिया है। बता दें कि आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) ने फर्जी दस्तावेजों और धोखाधड़ी के आरोप में इसी साल जनवरी में अपराध पंजीबद्ध किया था। इस मामले में कुल 20 से अधिक शिक्षाविदों पर गंभीर आरोप हैं, जिनमें भ्रष्टाचार, कूट रचना, और आर्थिक क्षति पहुंचाने के आरोप शामिल हैं।  

क्या है पूरा मामला ऐसे समझें

ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलगुरु अविनाश तिवारी और शिवशक्ति महाविद्यालय, झुंडपुरा, मुरैना के संचालक रघुराज सिंह जादौन पर आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) ने फर्जी दस्तावेजों और धोखाधड़ी के मामले में अपराध पंजीबद्ध किया था। इस घोटाले में 20 से अधिक शिक्षाविदों पर गंभीर आरोप लगे थे, जिनमें भ्रष्टाचार, कूट रचना और शासन को आर्थिक क्षति पहुंचाने के मामले शामिल थे। इन्हीं में से एक डॉ. केएस ठाकुर, राजस्थान के बांसवाड़ा स्थित गोविंद गुरु जनजातीय विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्यरत थे।

कैसे हुआ घोटाला?

जांच में यह सामने आया था कि फर्जी प्रवेश दिखाकर और कूट रचित दस्तावेजों के आधार पर छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और अन्य सरकारी लाभ लिए गए, जिससे सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ। शिक्षाविदों की मिलीभगत से फर्जी निरीक्षण रिपोर्ट तैयार की गई थी, जिसके चलते कॉलेज को मान्यता और संबद्धता मिल गई थी। इस पूरे घोटाले में निरीक्षण समिति के कई सदस्य भी शामिल थे, जिन्होंने हर साल इस फर्जीवाड़े को अंजाम दिया था।

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कैसे खुला था मामला?

ग्वालियर के शिकायतकर्ता अरुण कुमार शर्मा ने EOW में शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि शिवशक्ति महाविद्यालय, झुंडपुरा, मुरैना के संचालक रघुराज सिंह जादौन ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कॉलेज की मान्यता और संबद्धता हासिल की थी। उन्होंने फर्जी छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति और अन्य सरकारी लाभ भी लिए थे। जांच में यह भी सामने आया था कि यह पूरा खेल अकेले नहीं हुआ था, बल्कि इसमें कई शिक्षाविदों की मिलीभगत थी।

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जांच के बाद क्या हुआ?

जांच रिपोर्ट के आधार पर आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 409, 467, 468, 120बी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धाराओं में मामला दर्ज किया गया था। इस सूची में जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलगुरु अविनाश तिवारी, रघुराज सिंह जादौन और 20 अन्य शिक्षाविदों के नाम शामिल थे। इनमें कई वरिष्ठ प्रोफेसर और विश्वविद्यालय अधिकारी भी थे। जांच के दौरान यह भी सामने आया कि एक आरोपी डॉ. एपीएस चौहान की मृत्यु हो चुकी थी, इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई संभव नहीं थी।

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झुंडपुरा के 'भूतिया कॉलेज' की सच्चाई

जेयू ने जब शिक्षा मंत्रालय के पोर्टल पर एआईएसएचई डेटा अपलोड न करने वाले कॉलेजों की सूची जारी की थी, तो इसमें 158 कॉलेजों के नाम शामिल थे। 143वें स्थान पर शिवशक्ति कॉलेज, झुंडपुरा का नाम दर्ज था। हालांकि, कॉलेज संचालक पहले ही यह दावा कर चुके थे कि यह कॉलेज झुंडपुरा से सबलगढ़ स्थानांतरित हो गया था। बावजूद इसके, जेयू के रिकॉर्ड में इसे झुंडपुरा में ही दर्शाया गया था।

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फर्जी नियुक्ति से हुआ था पर्दाफाश

इस कॉलेज का नाम पहली बार 2011-12 में सुर्खियों में तब आया था, जब यह सामने आया कि कॉलेज के संचालक रघुराज सिंह जादौन ने फर्जी दस्तावेजों के जरिए डॉ. अरुण शर्मा को प्राचार्य नियुक्त करवा दिया था। डॉ. शर्मा ने कभी आवेदन नहीं किया था और वे पहले से ग्वालियर के आयांश कॉलेज में प्राचार्य के पद पर कार्यरत थे। जब उन्होंने जेयू द्वारा जारी सूची में अपना नाम शिवशक्ति कॉलेज के प्राचार्य के रूप में देखा, तो उन्होंने इस फर्जीवाड़े की शिकायत की थी।

गांव में कॉलेज का कोई अस्तित्व नहीं

जब डॉ. शर्मा खुद झुंडपुरा गांव पहुंचे, तो पाया कि वहां शिवशक्ति नाम का कोई कॉलेज था ही नहीं। इसके बावजूद, जेयू की निरीक्षण टीमें हर साल वहां 'निरीक्षण' करती रहीं और कॉलेज को संबद्धता देती रहीं।

फर्जी निरीक्षण रिपोर्ट पर सवाल

सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि जब कॉलेज था ही नहीं, तो निरीक्षण टीमें किस भवन का निरीक्षण कर रही थीं? इससे यह साबित हुआ कि निरीक्षण समिति के सदस्यों की मिलीभगत से बिना जांच के संबद्धता दी जाती रही थी।

शिकायतकर्ता ने EOW से क्या अपील की?

EOW की कार्रवाई पर डॉ. अरुण शर्मा ने कहा था कि, "जेयू ग्वालियर के इस बड़े घोटाले को उजागर करने के कारण मुझे बेरोजगार कर दिया गया। मैं अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध अंतिम सांस तक संघर्ष करूंगा। यह व्यापमं पार्ट-2 है। EOW से मेरी प्रार्थना है कि इन घोटालेबाजों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए और इनकी अवैध संपत्ति को जब्त किया जाए।"

क्या है धारा 52, जिसमें है विश्वविद्यालय के कुलपति को हटाने का प्रावधान

भारत में विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक ढांचे को नियंत्रित करने के लिए राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम में कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। धारा 52 (Section 52) किसी विश्वविद्यालय के कुलपति (Vice-Chancellor) को हटाने से संबंधित प्रावधान है। यह धारा तब लागू होती है जब किसी कुलपति के कार्यों, आचरण, या नीतियों को लेकर सरकार को गंभीर आपत्तियां होती हैं और विश्वविद्यालय का प्रशासन बाधित होता है।

1. धारा 52 क्या है?

धारा 52 आमतौर पर राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम (State University Act) का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो किसी कुलपति को हटाने के लिए कानूनी प्रक्रिया का निर्धारण करता है। यह धारा सरकार को यह अधिकार देती है कि यदि कोई कुलपति विश्वविद्यालय के प्रशासन में गंभीर अनियमितताएँ करता है, भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है, विश्वविद्यालय के शैक्षणिक माहौल को खराब करता है या सरकार की नीति का पालन नहीं करता है, तो उसे उसके पद से हटाया जा सकता है।
यह धारा कई राज्य विश्वविद्यालय अधिनियमों में भिन्न-भिन्न हो सकती है, लेकिन इसकी मूल भावना यही रहती है कि सरकार या राज्यपाल (जो अधिकतर मामलों में कुलाधिपति होते हैं) को कुलपति को हटाने का विशेषाधिकार होता है।

2. किन परिस्थितियों में धारा 52 लागू होती है?

  • धारा 52 का उपयोग आमतौर पर निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है:
  • गंभीर वित्तीय अनियमितताएँ (Financial Irregularities)
  • यदि कुलपति पर वित्तीय भ्रष्टाचार, धन के दुरुपयोग या आर्थिक घोटालों में संलिप्त होने का आरोप हो।
  • प्रशासनिक विफलता (Administrative Failure)
  • यदि विश्वविद्यालय का प्रशासनिक कार्यकाज सही ढंग से नहीं हो रहा हो और कुलपति के कार्यों से शैक्षणिक और प्रशासनिक गतिविधियाँ बाधित हो रही हों।
  • सरकारी आदेशों की अवहेलना (Defying Government Orders)
  • यदि कुलपति सरकार या विश्वविद्यालय के कुलाधिपति (Governor) द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन नहीं करता है।
  • शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट (Academic Decline)
  • यदि विश्वविद्यालय में पढ़ाई-लिखाई की गुणवत्ता बुरी तरह गिर गई हो और कुलपति इस स्थिति में सुधार करने में विफल रहा हो।
  • अनुशासनहीनता और दुराचार (Indiscipline and Misconduct)
  • यदि कुलपति पर नैतिक या व्यक्तिगत कदाचार के गंभीर आरोप लगते हैं।

जीवाजी विश्वविद्यालय के नए कुलपति का नियुक्ति आदेश जारी

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राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने एक नया प्रशासनिक आदेश जारी किया है, जिसमें डॉ. महात्मा गांधी पीजी कॉलेज, कटनी के प्राचार्य डॉ. राजकुमार आचार्य को जीवाजी विश्वविद्यालय का कुलगुरु नियुक्त किया है। यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू होगा। आदेश में यह भी उल्लेख किया गया है कि उनकी सेवा शर्तें विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार निर्धारित होंगी। इससे पहले डॉ. राजकुमार आचार्य अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा के कुलगुरू रह चुके हैं।

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