कटनी की खदानों पर फिर सामने आया बड़ा अपडेट, अब राज्य सरकार ने रद्द किए अपने पुराने आदेश

कटनी जिले के झिन्ना और हरैया गांव की खदानों को लेकर बड़ा अपडेट आया है। सरकार ने पहले जारी एसएलपी आदेशों को निरस्त कर दिया। झिन्ना गांव की 120 एकड़ जमीन 1994 में आनंद गोयनका को पट्टे पर दी गई थी।

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Sandeep Kumar
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मध्यप्रदेश: कटनी जिले के झिन्ना और हरैया गांव की खदानों को लेकर फिर बड़ा अपडेट सामने आया है। इस मामले में सरकार के स्तर पर जो आदेश एसएलपी वापस होने के लिए जारी हुए थे, अब सरकार ने ही उन्हें निरस्त कर दिया है। दरअसल, कटनी के झिन्ना गांव की करीब 120 एकड़ जमीन को आनंद गोयनका को पट्टे पर दिया गया था।

यह पट्टा सबसे पहले 1994 में मिला और 2014 तक के लिए मान्य था। बाद में यह पट्टा ट्रांसफर कर दिया गया, लेकिन यह जमीन वास्तव में जंगल की जमीन थी। वन विभाग का कहना है कि यह जमीन 1955 में ही उनके पास आ चुकी थी और 1958 में इसे संरक्षित वन घोषित कर दिया गया था।

वर्षों तक विवाद चलता रहा। वन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की थी। इसके बाद 16 अप्रैल 2024 को राज्य सरकार ने दो पत्र जारी कर एसएलपी वापस लेने का आदेश कर दिया, लेकिन ये निर्देश नियमों के खिलाफ पाए गए, क्योंकि अगर वन अफसर का आदेश अंतिम मानना था तो शासन को पहले अधिसूचना जारी करनी चाहिए थी। वह अधिसूचना कभी निकली ही नहीं। यानी सरकार के 16 अप्रैल 2024 वाले पत्र गैरकानूनी साबित हुए। अब 16​ सितंबर 2025 को राज्य सरकार ने उन आदेशों को पूरी तरह रद्द कर दिया है।

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सुप्रीम कोर्ट में मामला

इसी जमीन को लेकर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में केस भी किया था, लेकिन बाद में वह केस वापस लेने का आदेश जारी कर दिया गया। इसे लेकर जमकर बवाल मचा था। वरिष्ठ पत्रकार संतोष उपाध्याय ने मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और वन विभाग के अफसरों से शिकायत भी की थी। उनका आरोप था कि करोड़ों की संपदा से जुड़ा यह मामला दबाया जा रहा है।

शिकायत के बाद सरकार ने जांच कराई। इसके कुछ समय बाद तत्कालीन वन मंत्री नागर सिंह चौहान से विभाग ले लिया गया। साथ ही तब के एसीएस जेएन कंसोटिया को भी हटा दिया गया। इसे लेकर कायस लगाए गए थे कि यह एक्शन खदान विवाद से जुड़े थे। 

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हरैया गांव में धड़ल्ले से खनन

विवाद सिर्फ झिन्ना तक सीमित नहीं है। पास के हरैया गांव की जमीन पर भी बड़े पैमाने पर खनन हो रहा है। यहां 231 हेक्टेयर जमीन में से 222 हेक्टेयर को जंगल की श्रेणी में माना गया है, लेकिन हकीकत यह है कि आज वहां पेड़-पौधे नहीं हैं, बल्कि चारों तरफ खदानें, गड्ढे और धूल का गुबार उठता है। बड़े-बड़े पहाड़ों को मशीनों से काटा जा रहा है और डंपरों में भरकर पत्थर भेजा जा रहा है। 

पत्रकार उपाध्याय का आरोप है कि यह सब कुछ प्रशासन की मिलीभगत से हो रहा है। हरैया की जमीन का केस अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आता, तब तक यहां से एक पत्थर भी नहीं हटना चाहिए, लेकिन यहां तो पहाड़ तक खोद दिए गए हैं।

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