श्रम कानून में बदलाव से बढ़ेगा काम का दबाव, घटेंगे रोजगार के अवसर, 1.87 करोड़ श्रमिकों पर होगा असर

मध्य प्रदेश में नए श्रम कानूनों पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। मजदूर संगठनों का मानना है कि इन कोड से काम का दबाव बढ़ेगा और रोजगार मौके घटेंगे। 1.87 करोड़ श्रमिक प्रभावित हो सकते हैं।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL. श्रम कानूनों के बदलाव ने मध्य प्रदेश में बड़ी बहस छेड़ दी है। केंद्र सरकार ने श्रम कानूनों में बदलाव कर चार नए कानून बनाए हैं। श्रमिक संगठन इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं।

मध्य प्रदेश में श्रम कानूनों में बदलाव के खिलाफ मजदूरों के सुर तेज हो चले हैं। प्रदेश में यह विरोध इसलिए खास है क्योंकि सरकार औद्योगिक विकास के सपने को इन्हीं की दम पर साकार करने की तैयारी में जुटी है। ऐसे में मजदूर वर्ग की नाराजगी सरकार की परेशानी बन सकती है।

मजदूर वर्ग लेबर कोड में जिन बदलावों को लेकर नाराज है, वे क्या हैं? साथ ही, सरकार ने जिन चार नई संहिताओं के रूप में इन्हें नया आकार दिया है, आखिर वे कैसी हैं?

द सूत्र ने इसकी पड़ताल की है। द सूत्र ने मजदूर संगठनों से भी बात की है। साथ ही, उनके विरोध की वजह जानना चाही है। मजदूर किन बातों को लेकर सरकार से नाराज हैं और क्यों नई श्रम संहिता का विरोध कर रहे हैं। इस पड़ताल के जरिए आपको बताते हैं।

नई श्रम संहिताओं से नाराज एमपी के श्रमिक

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि सरकार ने आखिर कौन से लेबर कोड में बदलाव किया है। आजादी से पहले ही मजदूरों के लिए लेबर कोड बनाए गए थे। बाद में इन्हें 44 केंद्रीय श्रम कानूनों का रूप दिया गया। इनमें न्यूनतम मजदूरी की व्यवस्था शामिल थी।

काम के दौरान सुरक्षा के नियम भी जोड़े गए थे। हादसे की स्थिति में राहत और मदद की व्यवस्था थी। मजदूरों को पीएफ और मैच्योरिटी भी मिलती थी। साप्ताहिक अवकाश का हक भी दिया गया था। महिला मजदूरों को मातृत्व अवकाश भी मिलता था।

सरकार ने इन्हीं 44 केंद्रीय श्रम कानूनों में बदलाव कर 29 को समाप्त कर दिया है। इनकी जगह चार नई श्रम संहिताएं लागू की गई हैं। पांच दिन पहले यानी 21 नवम्बर को इसका नोटिफिकेशन जारी किया गया है।

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बदल दिए मजदूरों का हित सुरक्षित करने वाले कानून

सरकार ने 29 लेबर कानूनों को मिलाकर नई संहिताएं बनाई हैं। मजदूरी संहिता 2019 में चार पुराने कानून जोड़े गए हैं। इनमें न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 और मजदूरी भुगतान अधिनियम 1936 शामिल हैं। बोनस भुगतान अधिनियम 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 भी इसी में जोड़ा गया है।

इसके अलावा औद्योगिक संबंध संहिता 2020 में तीन पुराने कानून बदले गए हैं। इनमें औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947, ट्रेड यूनियन अधिनियम 1926 और स्थाई आदेश अधिनियम 1946 शामिल है।

व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य संहिता में 13 पुराने कानून शामिल किए गए हैं। इनमें कारखाना अधिनियम और खान अधिनियम जैसे नियम थे। ठेका श्रम अधिनियम और डॉक श्रमिक सुरक्षा अधिनियम, निर्माण मजदूर अधिनियम, बागान श्रमिक अधिनियम और प्रवासी मजदूर कानून से जुड़े हैं। इन्हें भी खत्म किया गया है।

सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 चौथी और सबसे अहम मानी जा रही है। इसमें EPF और ESI जैसे नियम बदले गए हैं। ग्रेच्युटी और मातृत्व लाभ पर भी असर पड़ा है। पेंशन और बीमा योजनाओं को भी बदला गया है। असंगठित मजदूर योजनाएं भी कमजोर हो गई हैं।

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श्रम कानून संशोधन की खबर पर एक नजर...

  • श्रम कानूनों में बड़े बदलाव के बाद एमपी में मजदूर संगठनों का विरोध तेज, 1.87 करोड़ श्रमिक प्रभावित होंगे।

  • सरकार ने 44 पुराने केंद्रीय कानूनों में से 29 खत्म कर चार नई श्रम संहिताएं लागू कीं, जिनमें सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और मजदूरी से जुड़े कई नियम बदले गए।

  • मजदूर संगठनों का आरोप है कि नए कानूनों से नौकरी की स्थिरता कम होगी, मालिकों को मजदूरी और छंटनी पर अधिक नियंत्रण मिल जाएगा।

  • नई व्यवस्था में 12 घंटे तक दैनिक काम, 48 घंटे साप्ताहिक सीमा और 4 दिन के वर्क वीक से मजदूरों का तीन दिन का काम और कमाई घटने की आशंका।

  • यूनियनों की शक्ति कमजोर होने, सुरक्षा नियम ढीले होने और शोषण बढ़ने के डर से मजदूर सरकार से संशोधन की मांग कर रहे हैं।

मालिकों के पास मजदूरी तय करने का अधिकार

पुराने श्रम कानून बदलने से मजदूर संगठन नाराज हैं। उनका कहना है कि पुराने कानून मजदूरों को सुरक्षा देते थे। नियोक्ता पर मजदूरी तय करने की जिम्मेदारी भी थी। हादसे के समय परिवार को मदद मिलती थी। इलाज की सुविधा भी मिलती थी। अब मालिक इन जिम्मेदारियों से बच सकते हैं।

संगठनों का कहना है कि अब नियमित काम की गारंटी नहीं रही। तय मजदूरी की सुरक्षा भी कम हो गई है। वे मानते हैं कि नई श्रम संहिताएं मजदूरों के लिए खतरा बन गई हैं। उनका कहना है कि इससे कारखाना मजदूर मुश्किल में आ गए हैं।

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रोजगार की सुनिश्चितता पर भी होगा असर

पहले 100 कर्मचारियों की संख्या होने पर कारखाना मालिक मनमर्जी से छंटनी नहीं कर सकते थे। अब उन्हें मजदूरों को कभी भी निकालने का अधिकार मिल गया है। कंपनियां मजदूर और कर्मचारियों से शॉर्ट टर्म अनुबंध पर काम कराने के लिए आजाद हो गई हैं।
ट्रेड यूनियनों के अधिकार छीन लिए गए हैं। उन पर कसावट के लिए नए प्रावधान जोड़े गए हैं। इनसे कारखाना मालिकों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का अधिकार कमजोर हो गया है।

अब हड़ताल के लिए 60 दिन पहले नोटिस देना होगा। यह तभी मान्य होगा जब यूनियन को 51 फीसदी मजदूरों का समर्थन मिलेगा। मजदूरों का कहना है कि यह शर्त बहुत कठिन है। कई मजदूर डर के कारण खुलकर बोल नहीं पाते। ऐसे में यूनियन अपनी बात कैसे रखेगी। इस पाबंदी से मजदूरों की आवाज कमजोर हो जाएगी।

तो सप्ताह में छिन जाएगी तीन दिन की मजदूरी

अब तक मजदूरों और कर्मचारियों को साप्ताहिक काम मिलना तय था। काम के 8 घंटे निर्धारित थे। इससे अधिक काम करवाने के लिए ओवरटाइम देने का प्रावधान था। वहीं, नई संहिता ने इसे भी बदल दिया है।

अब कंपनियां मजदूरों से दिन में अधिकतम 12 घंटे काम ले सकेंगी। वहीं, सप्ताह में अधिकतम 48 घंटे तय कर दिए गए हैं। कंपनियां मजदूरों से चार दिन काम कराएंगी और सप्ताह में दो दिन का काम उनसे छिन जाएगा। अभी भी मजदूरों को सप्ताह में छुट्टी के दिन की मजदूरी नहीं मिलती और अब उन्हें तीन दिन बेकार रहना होगा।

जिन कारखानों में मजदूर 40 से कम होंगे, वहां सुरक्षा कानून लागू नहीं होंगे। मतलब जोखिम भरा काम होने पर भी मालिक जिम्मेदार नहीं होंगे। उन्हें सुरक्षा साधन देने की बाध्यता नहीं रहेगी। इससे मालिक सुरक्षा पर होने वाले खर्च से बच जाएंगे। मजदूरों का यही सबसे बड़ा डर है।

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औद्योगिक विकास पर जोर, मजदूरों की नहीं फिक्र

श्रमिक संगठनों की चिंता है कि नई श्रम संहिताएं औद्योगिक इकाइयों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से तैयार की गई हैं। मजदूरों के हितों की चिंता इन कानूनों में नजर नहीं आ रही है।

सतना के श्रमिक नेता अमित सिंह का कहना है कि नए श्रम कानूनों की आड़ में औद्योगिक इकाइयां मजदूरों का शोषण करेंगी। सरकार और श्रम विभाग का उन पर नियंत्रण ही नहीं रह जाएगा। सरकार को इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।

मध्यप्रदेश में 1.87 करोड़ लोग मजदूरी या असंगठित क्षेत्र में नौकरी कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में औद्योगिक इकाइयों के विकास पर सरकार का फोकस है।

सीएम देश और विदेश जाकर नए कारखाने प्रदेश में लाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में मजदूरों की चिंता औद्योगिक विकास की रेस में कहीं खो गई है। मजदूर-कर्मचारी संगठनों के लिए सक्रिय कर्मचारी नेता वासुदेव शर्मा के अनुसार नए लेबर कोड से कुशल, अर्द्धकुशल और अकुशल मजदूरों में नाराजगी है।

मजदूर संगठन सरकार से इन कानूनों में बदलाव की मांग कर रहे हैं। यदि सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो मजदूरों का असहयोग प्रदेश में औद्योगिक विकास की नींव कमजोर कर सकता है। इसका नुकसान प्रदेश की प्रगति की रफ्तार को रोक देगा।

फैक्ट फाइल

मध्य प्रदेश में निर्माण इकाइयां: 4.26 लाख
राज्य में एमएसएमई इकाइयां: 20 लाख
स्टार्टअप यूनिट्स की संख्या: 6000
मध्य प्रदेश में मजदूर-कामगार: 1.87 करोड़
संगठित क्षेत्र कारखाना मजदूर: 21 लाख
असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारी: 66 लाख

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