एमपी में छात्राओं के सैनिटरी पैड के नाम पर करोड़ों का खर्च, फिर भी लड़कियां इस्तेमाल करती रही गंदे कपड़े

मध्य प्रदेश सरकार ने सैनिटरी पैड के लिए छात्राओं के खातों में 57 करोड़ रुपए ट्रांसफर किए, लेकिन जानकारी की कमी के कारण छात्राएं इसे सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं। जानते हैं क्या है पूरा मामला...

author-image
Anjali Dwivedi
New Update
anjali  (1)
Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

जागरुकता के अभाव में मध्यप्रदेश में जरूरी योजनाएं भी परवान नहीं चढ़ पा रही हैं। लड़कियों में हाईजीन जागरुकता को लेकर चली स्वच्छता और स्वास्थ्य/सेनिटेशन-हाइजीन योजना का भी ऐसा ही हाल है। 57 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी पता चला है कि लड़कियां अब भी पैड की जगह कपड़ा ही यूज कर रही हैं। 

देश की पहली पहल

मध्यप्रदेश सरकार ने स्कूली छात्राओं के स्वास्थ्य और स्वच्छता को बेहतर बनाने के लिए स्वच्छता और स्वास्थ्य/सेनिटेशन-हाइजीन योजना लागू की है। यह योजना देश में अपनी तरह की पहली योजना है। हालांकि, यह योजना जमीनी स्तर पर सही तरीके से लागू नहीं हो रही है और छात्राओं को इसका पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है।

पांच प्वाइंट में समझें पूरा मामला

  • स्वच्छता योजना के तहत 19 लाख छात्राओं के खाते में सैनिटरी पैड के लिए 57 करोड़ रुपए की राशि भेजी गई।

  • छात्राओं को नहीं बताया गया कि यह राशि सैनिटरी पैड के लिए है।

  • बैंक ने राशि से कटौती कर दी, जिससे पैड खरीदना संभव नहीं हुआ।

  • अधिकारियों ने बताया कि अब छात्राओं को इस योजना के बारे में अवगत कराया जाएगा।

  • छात्राएं गंदे कपड़े और असुरक्षित विकल्पों का इस्तेमाल कर रही हैं।

स्वास्थ्य/सेनिटेशन-हाइजीन योजना क्या है?

सैनिटेशन-हाइजीन योजना (Sanitation and Hygiene Scheme) मुख्य रूप से 7वीं से 12वीं तक की सरकारी स्कूलों की छात्राओं के लिए है, जिसके तहत उन्हें मासिक धर्म स्वच्छता (Menstrual Hygiene) के लिए प्रत्येक छात्रा के बैंक खाते में सीधे 300 की राशि ट्रांसफर की जाती है, ताकि वे सैनिटरी पैड खरीद सकें। यह देश की पहली कैश-ट्रांसफर आधारित पहल है।  

छात्राओं के खाते में पैसा पहुंचा, लेकिन जानकारी का अभाव

मध्यप्रदेश सरकार ने पिछले साल स्कूली छात्राओं के खातों में सैनिटरी पैड के लिए 57 करोड़ रुपए ट्रांसफर किए थे। योजना (स्वास्थ्य सेनिटेशन-हाइजीन योजना) के तहत, प्रत्येक छात्रा को साल में 300 रुपए दिए गए हैं।

इन पैसों का उद्देश्य छात्राओं को सैनिटरी पैड खरीदने में मदद करना था, लेकिन अधिकांश छात्राओं को यह जानकारी ही नहीं थी कि यह राशि सैनिटरी पैड के लिए है। नतीजतन, वे इसे स्कॉलरशिप समझकर दूसरी जरूरतों में खर्च कर देती हैं।

ये भी पढ़ें...तस्वीरें, वीडियो, पुराने दावे और राजनीति- क्यों उलझता जा रहा है दीपक जोशी मामला?

ग्वालियर में सिर्फ 15 लाख रुपए ट्रांसफर

ग्वालियर जिले के 3 हजार 478 स्कूलों की 93 हजार 466 छात्राओं के खातों में 15 लाख रुपए ट्रांसफर किए गए। जब मीडिया ने इस योजना की जमीनी हकीकत जानने के लिए पड़ताल की, तो सामने आया कि न तो स्कूलों में सैनिटरी पैड उपलब्ध कराए गए थे और न ही छात्राओं को इस योजना के बारे में सही जानकारी दी गई थी।

ये भी पढ़ें...दीपक जोशी की नई पत्नी पल्लवी राज सक्सेना का खुलासा- चोरी से नहीं खुल्लम-खुल्ला की है शादी

स्कूल शिक्षा विभाग ने मानी अपनी भूल 

एमपी स्कूल शिक्षा विभाग के डीईओ हरिओम चतुर्वेदी ने इस गलती को स्वीकार करते हुए कहा कि छात्राओं को पर्याप्त जानकारी नहीं दी गई। अब संकुल प्राचार्यों और शिक्षकों के माध्यम से छात्राओं को सैनिटरी पैड के लिए सरकार द्वारा भेजी जाने वाली राशि के बारे में बताया जाएगा। इसके साथ ही सरकारी स्कूलों में जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे।

बैंक कटौती और कम रकम से छात्राओं का बोझ बढ़ा

जब इस योजना की पड़ताल की गई तो यह भी सामने आया कि छात्राओं के खाते में आने वाली रकम से पहले बैंक चार्ज काट लेते हैं। इसके बाद जो रकम बचती है, वह इतनी कम होती है कि सैनिटरी पैड खरीदने के लिए पर्याप्त नहीं होती।

मजबूरी में कई छात्राएं अब भी कपड़े जैसे पारंपरिक और असुरक्षित विकल्प का इस्तेमाल कर रही हैं, जिससे उन्हें गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है।

ये भी पढ़ें...मध्य प्रदेश विधानसभा 70 साल बाद पूरी तरह डिजिटल, भोपाल में आज होगी विधायकों की पेपरलेस वर्किंग की ट्रेनिंग

स्वास्थ्य सेनिटेशन-हाइजीन योजना का छात्राओं ने किया खुलासा

सरकारी स्कूलों की छात्राओं ने बताया कि उन्हें यह रकम छात्रवृत्ति के रूप में मिलती थी, उन्हें कभी नहीं बताया गया कि यह पैसा सैनिटरी पैड के लिए है।

मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूल में न तो कभी मुफ्त सैनिटरी पैड मिले और न ही किसी शिक्षक या स्कूल प्रबंधन ने इस योजना के बारे में उन्हें जानकारी दी। इसलिए उन्होंने इसे स्कॉलरशिप समझकर खर्च कर दिया।

ये भी पढ़ें...अब रात में भी नौकरी कर सकेंगी महिलाएं, MP Women Night Shift को लेकर नोटिफिकेशन जारी

तीन केस जो सिस्टम पर सवाल खड़े कर रहे हैं

केस-1: गंदे कपड़े के इस्तेमाल से कैंसर की शुरुआत

17 वर्षीय फातिमा (परिवर्तित नाम) को लंबे समय तक गंदे कपड़े के इस्तेमाल के कारण गंभीर संक्रमण हुआ, जिसके बाद जांच में वजाइनल कैंसर की शुरुआती स्टेज सामने आई।

फातिमा के खाते में 1250 रुपए (लाड़ली लक्ष्मी योजना) और 300 रुपए (सैनिटरी पैड के लिए मिले 300 रुपए) आए थे, लेकिन बैंक ने 200 रुपए काट लिए। बची रकम से पढ़ाई और इलाज दोनों मुश्किल हो गए।

केस-2: कपड़े से फंगल इंफेक्शन

15 वर्षीय सरोज (परिवर्तित नाम) को कपड़े का इस्तेमाल करने के कारण हेवी फंगल इंफेक्शन हो गया, और दर्द बढ़ने के कारण उसे स्कूल जाना बंद करना पड़ा। सरला के खाते में मेधावी छात्रा स्कॉलरशिप के 550 रुपए और सैनिटरी पैड के 300 रुपए आए थे, लेकिन बैंक ने 200 रुपए काट लिए। बची रकम से सैनिटरी पैड खरीदना संभव नहीं हो पाया।

मध्यप्रदेश सरकार एमपी स्कूल शिक्षा विभाग सैनिटरी पैड के लिए मिले 300 रुपए मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूल स्वास्थ्य सेनिटेशन-हाइजीन योजना
Advertisment