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मध्यप्रदेश में करीब पांच लाख कर्मचारियों की पदोन्नति का मामला लंबे समय से अटका हुआ है। अब इस पर जल्दी काम होने की उम्मीद है। राज्य सरकार ने इसे हल करने के लिए आज (17 अक्टूबर) एक अहम बैठक बुलाई है।
बैठक का मकसद सभी लंबित मामलों को जल्दी सुलझाना है। साथ ही, हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करना भी है।
ऑडिट रिपोर्ट पर अटका मामला
पदोन्नति नियम 2025 से जुड़ी यह बैठक Madhya Pradesh के मुख्य सचिव अनुराग जैन ने मंत्रालय में बुलाई है। इसमें राज्य के कई विभागों के अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, सचिव और विभागाध्यक्षों को बुलाया गया है। बता दें कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ये बैठक ली जाएगी।
बैठक का आयोजन जबलपुर हाईकोर्ट के उस आदेश के बाद हुआ है, जिसमें अदालत ने पदोन्नति प्रक्रिया को रोक दिया था।
MP High Court ने कहा था कि पदोन्नति ( promotion) पर निर्णय तब तक नहीं लिया जाएगा जब तक सभी विभागों से आडिट रिपोर्ट नहीं मिल जाती। इन रिपोर्टों के बिना विभागीय पदोन्नति समिति (DPC) की अनुमति नहीं दी जाएगी।
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कर्मचारियों की संख्यात्मक स्थिति स्पष्ट होगी
बैठक में मुख्य सचिव और मध्य प्रदेश सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) के अधिकारी विभागों को निर्देश देंगे। जानकारी के मुताबिक, वे विभागों से कर्मचारियों की संख्यात्मक स्थिति स्पष्ट करने को कहेंगे।
यानी यह बताया जाएगा कि हर विभाग में कितने कर्मचारी हैं और उन कर्मचारियों में से एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के कर्मचारियों की संख्या कितनी है। यह जानकारी हर विभाग को सरकार को देनी होगी ताकि पदोन्नति की प्रक्रिया सही तरीके से चल सके।
इसके अलावा, 17 जून 2025 को जारी नई पदोन्नति नीति और उसके नियमों की जानकारी भी दी जाएगी।
55 विभागों में से 30 की आडिट रिपोर्ट तैयार
राज्य के 55 विभागों में से 30 विभागों की आडिट रिपोर्ट पहले ही तैयार हो चुकी है। बाकी विभागों की रिपोर्ट अभी बन रही है। इन अधूरी रिपोर्टों को जल्द पूरा करने का निर्देश दिया जाएगा। इन रिपोर्टों को मिलने के बाद ही पदोन्नति प्रक्रिया में कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे।
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नई प्रमोशन नीति और पदोन्नति पर रोक
नई प्रमोशन नीति लागू करने के बाद, GAD ने सभी विभागों को पदोन्नति प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहा था। उन्होंने सूचियां तैयार करने के भी निर्देश दिए थे। लेकिन इसी दौरान मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पदोन्नति पर रोक लगा दी।
कोर्ट ने साफ कहा था कि जब तक अदालत की अनुमति नहीं मिलती, तब तक पदोन्नति आदेश नहीं जारी हो सकते।
इस बीच, सरकार ने सीलबंद लिफाफे में प्रमोशन सूची तैयार करने का सुझाव दिया। ताकि कोर्ट का अंतिम आदेश आते ही सूची जारी की जा सके।
2016 से पदोन्नति पर लगी थी रोक
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को 'मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002' के तहत प्रमोशन में आरक्षण देने का प्रावधान खत्म कर दिया था।
इसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जहां से यथास्थिति बनाए रखने का आदेश मिला। इसके बाद सरकार ने नई प्रमोशन नीति बनाई, लेकिन उस पर भी याचिकाएं दायर हो गईं।
इसके बाद हाईकोर्ट ने फिर से पदोन्नति पर रोक लगा दी। इस दौरान सरकार ने अदालत में यह कहा था कि नई नीति के तहत फिलहाल कोई प्रमोशन नहीं किया जाएगा।
क्यों जरूरी है यह बैठक
यह बैठक राज्य सरकार के लिए अहम कदम है, क्योंकि इससे सरकार को उच्च न्यायालय के निर्देशों के मुताबिक काम करने का मौका मिलेगा।
अगर रिपोर्टों का जल्दी आकलन हो जाता है और विभागीय पदोन्नति समिति की अनुमति मिल जाती है, तो पदोन्नति प्रक्रिया तेज हो सकती है। यह राज्य के लाखों कर्मचारियों के लिए एक अच्छा संकेत हो सकता है।