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BHOPAL. मध्य प्रदेश में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के मामलों के लिए 67 फास्ट ट्रैक अदालतें हैं। इनमें से 56 अदालतें विशेष पॉक्सो (e-POCSO) मामलों के लिए हैं। इसके बावजूद, इन अदालतों से लंबित मामलों का बोझ कम नहीं हो रहा है।
अपराधों से संबंधित मामलों की सुनवाई में ये अदालतें असफल साबित हो रही हैं। मध्य प्रदेश में इन मामलों से जुड़े 10 हजार से अधिक केस आज भी पेंडिंग में हैं।
देश में चल रहे 773 फास्ट ट्रैक कोर्ट
केंद्र सरकार के मुताबिक, 30 सितंबर 2025 तक देश में कुल 773 फास्ट ट्रैक अदालतें सुचारू रूप से काम कर रही हैं। इसमें मध्य प्रदेश का हिस्सा भी अहम है। मध्य प्रदेश उन राज्यों में शामिल है जहां फास्ट ट्रैक अदालतों की संख्या सबसे अधिक है।
राज्य में 67 फास्ट ट्रैक विशेष अदालतें संचालित हैं। इनमें से 56 अदालतें विशेष POCSO कोर्ट हैं। वहीं, उत्तर प्रदेश में 218, बिहार में 54 और राजस्थान में 45 फास्ट ट्रैक अदालतें कार्यरत हैं। इन आंकड़ों के बावजूद, मध्य प्रदेश में लंबित मामलों की संख्या में कमी नहीं आई है।
बढ़ रही अदालतें फिर भी मामलों में नहीं हो रही कमी
केंद्र सरकार का कहना है कि फास्ट ट्रैक अदालतों की स्थापना 2018 में की गई थी। यह कदम न्यायिक संशोधन अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत था।
इन अदालतों का उद्देश्य महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के मामलों का जल्दी निपटारा करना था। सरकार ने इसे 31 मार्च 2026 तक बढ़ा दिया है। वहीं, सवाल है, क्या अदालतों की संख्या बढ़ने से मामलों में सुधार हो रहा है?
पिछले तीन वर्षों में कहां सबसे ज्यादा मामले? | ||||
| राज्य | दर्ज मामले | निपटाए गए मामले | लंबित मामले | विशेष टिप्पणी |
| उत्तर प्रदेश | 89 हजार 953 | 54 हजार 652 | 94 हजार 826 | देश में सबसे ज्यादा मामले और सबसे ज्यादा पेेंसी |
| महाराष्ट्र | 43 हजार 924 | 10 हजार 999 | 33 हजार 630 | - |
| बिहार | 18 हजार 682 | 13 हजार 462 | 22 हजार 934 | - |
| मध्य प्रदेश | 16 हजार 597 | 18 हजार 138 | 10 हजार 879 | (सितंबर 2025 तक) |
| ओडिशा | 12 हजार 381 | 14 हजार 839 | 9 हजार 129 | - |
जजों और अभियोजकों की कमी बनी चुनौती
मध्य प्रदेश में फास्ट ट्रैक अदालतों के बावजूद लंबित मामलों की संख्या स्थिर बनी हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार, जजों और अभियोजकों की संख्या में कमी, साथ ही पुलिस जांच में देरी, मामलों के समय पर निपटारे में बाधा डाल रही है।
अपराधों के मामलों की बढ़ती पेंडेंसी
67 फास्ट ट्रैक अदालतें (Fast Track Courts) महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के मामलों का निपटारा करने के लिए काम कर रही हैं, लेकिन 10 हजार 879 मामले लंबित हैं।
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा लंबित मामले हैं। इनकी संख्या 94 हजार 826 तक पहुंच चुकी है।
मध्य प्रदेश में 16 हजार 597 मामले दर्ज हुए हैं, लेकिन 10 हजार 879 मामले अभी भी लंबित हैं।
जजों और अभियोजकों की कमी और पुलिस जांच में देरी पेंडेंसी की बड़ी वजहें हैं।
केंद्र सरकार ने इस योजना को 31 मार्च 2026 तक बढ़ा दिया है।
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