इतिहास को जीवंत करेगा महानाट्य सम्राट विक्रमादित्य, हाथी, घोड़े सब असली होंगे

अभ्युदय मध्यप्रदेश समारोह में सम्राट विक्रमादित्य पर आधारित महानाट्य की प्रस्तुति होगी। इस नाटक में युद्ध दृश्य, हाथी, घोड़े और महाकाल की भस्म आरती जैसी दिव्य झलकियां शामिल हैं।

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Ravi Kant Dixit
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BHOPAL. मध्यप्रदेश अपने गौरवशाली 70वें स्थापना दिवस का जश्न इस बार कुछ अलग अंदाज में मनाने जा रहा है। भोपाल का ऐतिहासिक लाल परेड मैदान 1 से 3 नवम्बर तक अभ्युदय मध्यप्रदेश समारोह का केंद्र बनेगा। यह आयोजन विरासत से विकास तक के सफर को दिखाने वाला होगा। इस बार की थीम उद्योग और रोजगार वर्ष रखी गई है।

मध्यप्रदेश स्थापना दिवस समारोह का शुभारंभ 1 नवम्बर को होगा, जबकि 2 और 3 नवम्बर की शाम इतिहास के स्वर्ण युग को समर्पित रहेंगी। इस दौरान महानाट्य सम्राट विक्रमादित्य की भव्य प्रस्तुति, प्रसिद्ध गायकों के संगीत कार्यक्रम, शिल्प और व्यंजन मेले, प्रदर्शनियां और पारंपरिक कलाओं की झलकियां देखने को मिलेंगी।

भारत की आत्मा को झकझोर देने वाला महानाट्य

2 और 3 नवम्बर की शाम 6:30 बजे से मंचित होने वाला महानाट्य सम्राट विक्रमादित्य इस समारोह का सबसे बड़ा आकर्षण है। यह नाटक दर्शकों को दो हजार वर्ष पुराने उस युग में ले जाता है, जब विक्रमादित्य ने सैकड़ों मंदिरों का पुनर्निर्माण कर सनातन धर्म की रक्षा की थी।

इस महानाट्य की परिकल्पना मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने की है। इसे पद्मश्री डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित ने लिखा है और राजेश कुशवाह व संजीव मालवीय के निर्देशन में मंचित किया जा रहा है।

इस प्रस्तुति में 200 से ज्यादा कलाकार, हाथी, घोड़े, रथ, पालकियां, युद्ध दृश्य, लाइट एंड साउंड शो, आतिशबाजी और महाकाल की भस्म आरती जैसी दिव्य झलकियां होंगी।

यह नाटक सिर्फ एक मंचीय प्रस्तुति नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना को झकझोर देने वाला अनुभव है। इसकी थीम जो जीता वही विक्रमादित्य युगों से चली आ रही भारतीय विजयगाथा को सार्थक करती है।

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विरासत से सीखता आधुनिक मध्यप्रदेश

यह समारोह मध्यप्रदेश के गौरवशाली अतीत और आधुनिक उपलब्धियों का संगम है। सम्राट विक्रमादित्य जैसे महानायकों के योगदान से आज के विकसित राज्य की अवधारणा को प्रेरणा मिली है। उनका शासन जनकल्याण, सुशासन, शौर्य और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक रहा है।

इतिहास गवाह है कि जब विदेशी शक्तियों ने भारत पर आक्रमण कर अंधकार फैलाया, तब विक्रमादित्य ने शकों को हराकर देश की रक्षा की। उन्होंने 96 शक सामंतों को पराजित किया और उन्हें भारत छोड़ने पर मजबूत किया। इसी विजय के उपलक्ष्य में उन्होंने विक्रम संवत की शुरुआत की, जो आज भी दुनिया की सबसे श्रेष्ठ कालगणना मानी जाती है।

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विज्ञान, साहित्य और संस्कृति में भारत का स्वर्णकाल

सिंहासन बत्तीसी और बेताल पच्चीसी की कहानियों में वर्णित विक्रमादित्य के न्याय, शौर्य और पराक्रम की झलक आज भी लोककथाओं में जीवित है। उनके दरबार के नवरत्न कालिदास, वररुचि, वराहमिहिर, धन्वंतरि और अमर सिंह विद्या और कला के प्रतीक थे। यह भी प्रमाण है कि भारत विज्ञान, खगोल और साहित्य में उस समय भी विश्वगुरु था।

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भव्य मंच, जीवंत दृश्य और आधुनिक तकनीक

सम्राट विक्रमादित्य महानाट्य दिल्ली के लाल किले, आगरा, हैदराबाद सहित कई बड़े शहरों में मंचित हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसकी सराहना कर चुके हैं। अब यह नाट्य प्रस्तुति भोपाल के ऐतिहासिक लाल परेड मैदान में भव्य रूप में पेश की जाएगी।

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