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मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के 27 प्रतिशत आरक्षण को लेकर सरकार के रवैये पर फिर सवाल उठने लगे हैं। हाईकोर्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण से संबंधित याचिकाओं को खारिज किए जाने की प्रक्रिया शुरू होते ही राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अब तक 75 ट्रांसफर याचिकाएं दायर कर दी हैं। इनमें से 9 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान नोटिस जारी करते हुए अगली सुनवाई 14 फरवरी 2025 को सभी याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी। जिसके बाद हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण संबंधित मामलों पर सुनवाई के लिए रोक लगा दी गई है।
सरकार पर लगे दोहरा रवैया अपनाने के आरोप
मध्य प्रदेश में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण लागू किए जाने के मामले में सरकार की रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण के विरुद्ध लगी याचिकाओं को तर्कहीन मानते हुए खारिज करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी। जिसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में लगभग आधा सैकड़ा ट्रांसफर याचिकाएँ दायर कर दीं और सुनवाई में मेंशन कराकर हाईकोर्ट को मामलों पर सुनवाई से रोक दिलवा दी। इसके विपरीत, सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो चुकी पुरानी याचिकाओं की सुनवाई को लेकर सरकार ने कोई गंभीर पहल नहीं की है।
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सुप्रीम कोर्ट में सरकार की मंशा पर उठे सवाल
सरकार का यह कदम ओबीसी आरक्षण लागू न करने के इरादे को स्पष्ट करता है। जबकि कानून पर कोई रोक नहीं है, फिर भी सरकार के मंत्री सुप्रीम कोर्ट में खुद सरकार द्वारा दायर ट्रांसफर याचिकाओं का हवाला देकर आरक्षण लागू न कर पाने की मजबूरी जता रहे हैं।
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सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी कैविएट
अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी संगठनों और ओबीसी होल्ड अभ्यर्थियों की ओर से एक दर्जन से अधिक कैविएट (पूर्व सूचना याचिकाएँ) दायर की गई थीं लेकिन सरकार ने याचिकाओं की प्रति कैवियटरों को प्रदान नहीं की थी, जिसके कारण इन मामलों में सुनवाई नहीं हो सकी।
सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर याचिकाओं पर सुनवाई तय
मध्य प्रदेश शासन की तरफ से 75 ट्रांसफर याचिकाओं में से 9 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की डिवीजन बेंच में हुई जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह कोर्ट केवल कानून की संवैधानिक वैधता को ही तय करेगा साथ ही नोटिस जारी करते हुए सभी ट्रांसफर याचिकाओं सुनवाई 14 फरवरी 2025 को तय की गई।
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ओबीसी आरक्षण पर सरकार की चालाकी
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार जानबूझकर ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को कानूनी दांव-पेच में उलझा रही है ताकि इसे लंबा खींचकर टाल सके। जब हाईकोर्ट ने तर्कहीन याचिकाओं को खारिज करना शुरू किया, तो सरकार ने बिना किसी ठोस आधार के ट्रांसफर याचिकाएँ दायर कर हाईकोर्ट की सुनवाई को रोकने का प्रयास किया। इसके बावजूद ओबीसी वर्ग और आरक्षण के हकदार अभ्यर्थी लगातार संघर्ष कर रहे हैं। अब देखना होगा कि 14 फरवरी की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है।
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