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गांवों में लोगों के पास अपनी संपत्ति का सटीक दस्तावेज और मालिकाना हक नहीं होता है, जैसा कि शहरों में होता है। उनका संपत्ति रिकॉर्ड राजस्व विभाग में दर्ज नहीं है। इसी समस्या को हल करने के लिए 24 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना शुरू की गई थी।
इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भी उनकी संपत्ति का आधिकारिक अधिकार देना था। हालांकि, मध्यप्रदेश सरकार के दो विभागों - पंचायत और राजस्व - की लापरवाही के कारण यह योजना अपने लक्ष्य से भटक गई है। अब मध्यप्रदेश राजस्व विभाग और एमपी ग्रामीण विकास विभाग को लेकर लोगों के बीच चर्चा जारी है।
राजस्व रिकॉर्ड में कुल 43,014 गांव दर्ज
इस योजना का मुख्य लक्ष्य ड्रोन तकनीक का उपयोग करके भूखंडों के नक्शे तैयार करना और फिर संपत्ति के मालिक को अधिकार-पत्र (संपत्ति कार्ड) देना था। हालांकि, एक अखबार में छपी खबर के मुताबिक, मध्य प्रदेश में अभी भी लगभग 20,000 गांवों के 10 लाख से अधिक निवासियों को उनके संपत्ति कार्ड नहीं मिल पाए हैं। इस संबंध में कलेक्टरों के पास लगातार शिकायतें आ रही हैं। मध्य प्रदेश के राजस्व रिकॉर्ड में कुल 43,014 गांव दर्ज हैं। इनमें से 25 लाख से ज्यादा लोगों को अधिकार-पत्र दिए जाने हैं।
MP में स्वामित्व योजना में लापरवाही वाली खबर पर एक नजर
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ड्रोन फोटोग्राफी से बनने थे मकानों के नक्शे
योजना के अनुसार, ड्रोन फोटोग्राफी के माध्यम से मकानों के नक्शे बनाए जाने थे और फिर अधिकार-पत्र दिए जाने थे। हालांकि, मध्य प्रदेश में यह योजना दो सरकारी विभागों के बीच तालमेल की कमी के कारण उलझकर रह गई है। गांवों में मकानों की सीमा को चूने से चिह्नित किया जाना था।
इसके बाद ड्रोन से नक्शे तैयार करके ग्रामीणों को डिजिटल अधिकार-पत्र दिए जाने थे। इस प्रक्रिया में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को चूने की खरीद करनी थी और पटवारी को उस चूने से जमीन पर निशान लगाने थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
10 लाख लोगों को नहीं मिल पाए हैं संपत्ति कार्ड
इसके बाद योजना के तहत ड्रोन से फोटोग्राफी करवाई जानी थी। इसके लिए प्रति गांव 5 हजार रुपये की राशि निर्धारित की गई थी। इस बजट को जिला पंचायत सीईओ को सौंपा गया था, जिन्हें पंचायत सचिवों के माध्यम से आवश्यक खरीदी करानी थी। लेकिन सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, अधिकांश स्थानों पर पंचायत सचिवों ने चूने की खरीदी ही नहीं की। और अगर कहीं चूना खरीदी भी गया, तो ड्रोन से फोटोग्राफी नहीं हो पाई। इसके परिणामस्वरूप लगभग 10 लाख लोगों को संपत्ति कार्ड नहीं मिल पाए हैं।
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दो लाख से अधिक मामलों में नाम गलत दर्ज
अब तक तैयार किए गए 15 लाख अधिकार-पत्रों में से दो लाख से अधिक मामलों में नाम गलत दर्ज किए गए हैं। इन गलतियों को सुधारने के लिए अब कलेक्टर की अनुमति आवश्यक है। ऐसे लोग अपने नाम में सुधार करवाने के लिए तहसील और जिला कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं। यह समस्या खासतौर पर रायसेन, छिंदवाड़ा, टीकमगढ़ और छतरपुर जिलों में अधिक देखने को मिल रही है।
अधिकार-पत्र मिलने से यह है फायदा
अधिकार-पत्र मिलने से कई फायदे होते हैं। सबसे बड़ा फायदा यह है कि लोग अपनी संपत्ति को बैंक में गिरवी रखकर कर्ज ले सकते हैं। इसके अलावा संपत्ति का मालिकाना हक दस्तावेजी रूप से मिल जाता है, जिससे वह राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज हो जाती है और कानूनी रूप से संपत्ति का बंटवारा करना आसान हो जाता है।
साथ ही, गांवों के विकास की योजनाएं भी बेहतर तरीके से बनाई जा सकती हैं, जिससे विकास कार्य व्यवस्थित रूप से हो पाते हैं। हालांकि, संपत्ति कार्ड न होने के कारण ग्रामीणों को इन सभी फायदों से वंचित रहना पड़ रहा है, और इसकी वजह पटवारी और राजस्व निरीक्षक (आरआई) द्वारा सही सर्वे न करना बताया जा रहा है।
प्रमुख सचिव राजस्व विवेक पोरवाल ने कहा कि जो शिकायतें प्राप्त हो रही हैं, उनका निराकरण किया जा रहा है। इसकी जानकारी भी ली जा रही है कि ग्रामीणों को उनके मकानों के अधिकार-पत्र क्यों नहीं मिले।