सिया विवाद मामले पर कमेटी के सामने अफसरों ने रखा अपना पक्ष, अब इन चार मुद्दों पर अटका मामला

सिया विवाद मामले पर फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने बुधवार को दिल्ली में बैठक आयोजित की। यह मीटिंग 3 घंटे से ज्यादा समय तक चली। इस दौरान डीम्ड ईसी पर हस्ताक्षर करने वाले आईएएस श्रीमन शुक्ला और सिया की पूर्व सदस्य सचिव आर उमा महेश्वरी मौजूद रहीं।

author-image
Dablu Kumar
New Update
sia vivad updates
Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

मध्यप्रदेश स्टेट एनवायरोमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (एमपी-सिया) से संबंधित विवाद पर केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने बुधवार को दिल्ली में बैठक बुलाई। इस बैठक की अध्यक्षता पर्यावरण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव अमनदीप गर्ग ने दिल्ली के पर्यावरण भवन में की। कमेटी ने तीन घंटे से अधिक समय तक सिया विवाद से जुड़े सभी अधिकारियों, सिया के चेयरमैन और सदस्यों से अलग-अलग बात की। 

मध्यप्रदेश पर्यावरण विभाग के पूर्व प्रमुख सचिव नवनीत मोहन कोठारी, प्रभारी सदस्य सचिव के रूप में डीम्ड ईसी पर हस्ताक्षर करने वाले आईएएस श्रीमन शुक्ला और सिया की पूर्व सदस्य सचिव आर उमा महेश्वरी कमेटी के सामने पेश हुए।

कमेटी ने सिया चेयरमैन से की बात

कमेटी ने सिया के चेयरमैन शिवनारायण सिंह चौहान और सदस्य सुनंदा सिंह रघुवंशी से भी बातचीत की। इसके अलावा मध्यप्रदेश पर्यावरण विभाग के एसीएस अशोक बर्णवाल की तरफ से डिप्टी सेक्रेटरी वर्षा भूरिया और एनवायरोमेंट प्लानिंग एंड कार्डिनेशन संगठन (एप्को) के कार्यकारी निदेशक और सिया के मौजूदा सदस्य सचिव दीपक आर्य से भी कमेटी ने अलग-अलग बात की।

इन चार मुद्दों पर अटका मामला

कमेटी ने सभी से एक जैसे सवाल पूछे और यह जानने की कोशिश की कि आखिर 237 डीम्ड पर्यावरणीय मंजूरी किसने, किसके आदेश पर और किस नियम के आधार पर जारी दी थी। इसके अलावा कमेटी ने यह भी पूछा कि सिया चेयरमैन का दफ्तर किसने और क्यों लॉक कराया था? सिया की बैठकें दो महीने तक क्यों नहीं हो पाईं? क्या इन ईसी को जारी करने में कोई वित्तीय लेन-देन हुआ था या नहीं? सभी ने अपने-अपने तर्कों के साथ इन सवालों का जवाब दिया।

अफसरों ने लगाए गंभीर आरोप

जानकारी के अनुसार अफसरों ने कमेटी को जानकारी दी कि जनवरी से मई तक 21 बैठकें हुईं, जिनमें 300 से ज्यादा मामलों पर चर्चा की गई। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अध्यक्ष ने अप्रैल में चार बैठकों का बहिष्कार कर दिया, क्योंकि उनसे अनुमोदन नहीं लिया गया था।

अफसरों ने यह भी आरोप लगाया कि अध्यक्ष ने 10 दिन से ज्यादा वक्त तक एजेंट की फाइलें रोक रखी थीं, जिससे बैठकों की तारीख ही तय नहीं हो पाई। उन्होंने अध्यक्ष पर कूटरचित दस्तावेज बनाने का भी आरोप लगाया।

सुप्रीम कोर्ट में 7 अक्टूबर को हो सकती है सुनवाई

कमेटी ने सभी से बातें सुनने के बाद तीन दिन में लिखित जवाब मांगे हैं, जो 4 अक्टूबर तक देना होगा। 7 अक्टूबर को इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो सकती है, और मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट भी पेश करनी होगी।

237 प्रकरणों में से 186 को मंजूरी

सिया चेयरमैन के अनुमोदन के बिना जिन 237 प्रकरणों का निपटारा किया गया, उनमें से 186 प्रकरणों में पर्यावरणीय मंजूरी जारी की गई थी। 37 मामलों में टर्म का रिफरेंस भेजा गया, जबकि 10 मामलों को रिजेक्ट कर दिया गया। दो मामलों में ईसी ट्रांसफर की गई और दो में एक्सटेंशन दी गई।

श्रीमन शुक्ला जांच के दायरे

मध्यप्रदेश स्टेट एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी (MP-SEIAA) की ओर से 237 पर्यावरणीय मंजूरी गैर-कानूनी तरीके से जारी करने का मामला चर्चा में था। अब इस मामले में आईएएस अधिकारी श्रीमन शुक्ला भी जांच के दायरे में आ गए हैं। श्रीमन शुक्ला वर्तमान में जनजातीय कार्य विभाग में कमिश्नर के पद पर कार्यरत हैं, लेकिन जब ये विवादित मंजूरियां जारी की गई थीं।

उस वक्त आर. उमा महेश्वरी के छुट्टी पर जाने के कारण श्रीमन शुक्ला एमपी-एसआईए के प्रभारी मेंबर सेक्रेटरी थे। उनके हस्ताक्षर से ही ये मंजूरियां जारी हुई थीं। इस मामले की जांच के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने बुधवार को आईएएस श्रीमन शुक्ला को दिल्ली में उनसे पूछताछ हुई। 

जानें पूरा मामला

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने मध्य प्रदेश के एनवायरोमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (SEIAA) से जुड़े विवाद की जांच करने के लिए एक नई कमेटी बनाई है। ये कमेटी सिया के कामकाज में जो भी गलतियां या अनियमितताएं हैं, उनकी जांच करेगी। जब ये जांच पूरी हो जाएगी, तो कमेटी अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश करेगी।

SEIAA के कामकाज को लेकर कई शिकायतें आई

SEIAA का काम भारत में चल रही विकास परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभाव को जांचना होता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन परियोजनाओं से पर्यावरण को कोई नुकसान न हो। लेकिन पिछले कुछ महीनों में, मध्य प्रदेश के SEIAA के कामकाज को लेकर कई शिकायतें आई हैं। इनमें पर्यावरणीय मंजूरी में गड़बड़ियां, मंजूरी देने की प्रक्रिया में हेराफेरी और फैसले लेने में पारदर्शिता की कमी जैसी बातें सामने आई हैं।

फैक्ट फाइंडिंग कमेटी करेगी जांच

केंद्र सरकार ने इस विवाद की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया है। यह कमेटी मध्य प्रदेश में SEIAA के कामकाज में हुई संभावित अनियमितताओं और आरोपित गलत कार्यों की जांच करेगी। जांच पूरी होने के बाद, कमेटी अपनी तथ्यात्मक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश करेगी।

इस कमेटी की अध्यक्षता केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव अमनदीप गर्ग करेंगे। कमेटी में सतीश वाटे को सदस्य और मंत्रालय के संयुक्त सचिव रजत अग्रवाल को संयोजक के रूप में नियुक्त किया गया है।

फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की पहली बैठक

यह कमेटी अपनी पहली बैठक 1 अक्टूबर को नई दिल्ली में करने वाली है। मंत्रालय ने सिया से जुड़े कुछ अहम लोगों को इस बैठक में शामिल होने के लिए दिल्ली बुलाया है। इनमें सिया के अध्यक्ष शिवनारायण सिंह चौहान, सदस्य सुनंदा सिंह रघुवंशी, पूर्व प्रमुख सचिव आईएएस नवनीत मोहन कोठारी, और सदस्य सचिव आईएएस उमा महेश्वरी आर शामिल होंगे।

be indian-buy indian

क्यों बनाई कमेटी

कमेटी का मुख्य काम सिया में जो भी गड़बड़ियां और गलत काम हुए हैं, उनकी जांच करना है। इसके अलावा, यह कमेटी यह भी देखेगी कि जो पर्यावरणीय मंजूरी दी गई हैं, वो सही हैं या नहीं, और क्या वे भारत के पर्यावरण कानूनों और नीतियों के मुताबिक हैं। जब जांच पूरी हो जाएगी, तो कमेटी अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को देगी, जिससे आगे की कार्रवाई का रास्ता तय होगा।

SEIAA विवाद एमपी को लेकर SC ने कही थी ये बात

  • सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरणीय मंजूरी के मामलों में आईएएस अधिकारियों की मनमानी को लेकर सख्त टिप्पणी की थी।

  • कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार से एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया था।

  • सिया (SEIAA) के स्वतंत्र निकाय के अधिकारों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों पर आरोप लगाए गए हैं।

जानें क्या है सिया का मतलब...

सिया चेयरमैन एसएस चौहान ने बताया कि सिया का मतलब स्टेट एनवायरनमेंट इंपैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी है। यह संस्था पर्यावरण के लिए जरूरी अनुमतियां देती है। भारत सरकार के तय नियमों के अनुसार, राज्य स्तर पर सिया को शक्तियां दी गई हैं। बड़ी परियोजनाओं के लिए मंजूरी भारत सरकार देती है (कैटेगरी ए), जबकि छोटे राज्यों के मामलों में सिया को अनुमति देने का अधिकार होता है (कैटेगरी बी)। इस प्रक्रिया में परीक्षण जरूरी है, बिना जांच के किसी भी परियोजना की अनुमति नहीं दी जा सकती।

कोठारी और उमा महेश्वरी की एप्को से छुट्टी

SEIAA के पर्यावरणीय प्रकरणों में अनुमति देने के विवाद को लेकर पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था। इसके बाद, राज्य सरकार ने एप्को के आयुक्त नवनीत कोठारी और कार्यकारी संचालक उमा महेश्वरी को उनके पदों से हटा दिया था।

चलिए विस्तार से समझते हैं कैसे हुआ भ्रष्टाचार?

दरअसल पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 के तहत 8 प्रकार के प्रोजेक्ट में पर्यावरणीय मंजूरी लेना अनिवार्य है। इनमें खनन, सिंचाई, सड़क-हाईवे आदि हैं। बता दें कि 250 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल के प्रोजेक्ट में ईसी जारी करने के अधिकार केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और 250 हेक्टेयर से कम के प्रोजेक्ट में सिया के पास है। ऑफ द रिकार्ड सभी मानते हैं कि खनन, सिंचाई, सड़क-हाईवे आदि प्रोजेक्ट अरबों की लागत वाले होते हैं। इसलिए 25-50 लाख की दान- दक्षिणा के बिना कोई भी अनुमति इन प्रोजेक्ट को मिलती ही नहीं है। thesootr किसी भी तरह का आरोप नहीं लगा रहा है, मगर नीचे ग्राफ से समझेंगे तो संदेह अपने आप नजर आ ही जाएगा…

seiaa-environmental-clearance-scam-graphics
Photograph: (the sootr)

सिया चेयरमैन शिवनारायण चौहान का कहना है कि अथॉरिटी के अलावा किसी और को ईसी जारी करने का अधिकार नहीं है। फिर अस्थायी प्रभार संभालने के सिर्फ एक दिन बाद ही श्रीमन शुक्ला को अनुमतियां जारी करने की ऐसी कौन सी जल्दी थी? 

सारा खेल 45 दिनों के नियम से किया…

दरअसल इस मामले में भारत सरकार के EIA Notification 2006 के तहत, हर परियोजना की मंजूरी SEIAA की सामूहिक बैठक में होनी चाहिए थी। लेकिन जानबूझकर बैठकें ही नहीं बुलाई गईं, जिससे फाइलें लंबित रहीं। फाइलें लंबित रखने के पीछे “45 दिनों का नियम”  था। दरअसल नियम के मुताबिक, अगर 45 दिनों में किसी फाइल पर फैसला नहीं होता, तो EC (पर्यावरण मंजूरी) अपने आप मान ली जाती है। इसी का फायदा उठाकर, सचिव स्तर से अकेले ही सैकड़ों मंजूरियां जारी कर दी गईं।

फर्जी अनुमोदन कराया

आरोप है कि बिना तकनीकी मूल्यांकन, बिना चर्चा, बिना जरूरी दस्तावेजों के, परियोजनाओं को हरी झंडी मिल गई। कई मामलों में खनिज के नाम और मात्रा तक बदल दी गई।

बड़ा सवाल : आखिर गड़बड़ियां कैसे हुईं?

नियमों की अनदेखी और प्रक्रिया का दुरुपयोग

  • EIA Notification 2006 के मुताबिक, हर परियोजना की मंजूरी SEIAA की सामूहिक बैठक में होनी चाहिए थी।
  • अधिकारियों ने जानबूझकर बैठकें नहीं बुलाईं, जिससे फाइलें लंबित रहीं।
  • 45 दिन की समयसीमा पूरी होते ही, सदस्य सचिव ने अकेले ही सैकड़ों परियोजनाओं को मंजूरी दे दी, जो पूरी तरह अवैध है।
  • तकनीकी मूल्यांकन, जनसुनवाई और सामूहिक निर्णय जैसी अनिवार्य प्रक्रियाओं को दरकिनार किया गया।

फर्जी अनुमोदन और दस्तावेजों में हेराफेरी

  • कई मामलों में खनिज के नाम और मात्रा तक बदल दी गई।
  • फाइलों में जरूरी जानकारी छुपाई गई या बदल दी गई, जिससे अवैध खनन को कानूनी जामा पहनाया गया।

SEIAA के सचिवालय का दुरुपयोग

राज्य सरकार के अधिकारियों ने केंद्र सरकार के आदेशों का पालन करने के बजाय SEIAA को कमजोर करने, उस पर दबाव बनाने और ब्लैकमेल करने का प्रयास किया। 

SEIAA से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें...

SEIAA विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख, दो IAS अधिकारियों की भूमिका पर उठाए सवाल, कहा- स्वतंत्र निकाय के हक हड़पे

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा SEIAA विवाद : कोठारी और उमा महेश्वरी की एप्को से छुट्टी

लौट आए सीएम मोहन यादव Action में, SEIAA में चल रहे द्वंद्व पर कर सकते हैं कार्रवाई

SEIAA के घमासान में thesootr के सवालों पर सिया चेयरमैन एसएस चौहान ने दिए बेबाक जवाब

अब सिया के अध्यक्ष और एक सदस्य ने दी 14 प्रोजेक्ट को हरी झंडी, SEIAA की सदस्य सचिव आर उमा महेश्वरी ने जताई असहमति

किन अफसरों ने लापरवाही या मिलीभगत बरती?

सदस्य सचिव, SEIAA:

  • बिना बैठक और सामूहिक निर्णय के, अकेले ही सैकड़ों पर्यावरणीय मंजूरियां जारी कीं।
  • अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर फैसले लिए।

प्रमुख सचिव, पर्यावरण विभाग, म.प्र. शासन:

  • सदस्य सचिव के अवैध फैसलों को स्वीकृति दी।
  • केंद्र सरकार के स्पष्ट आदेशों की अनदेखी की।

SEIAA के अन्य अधिकारी:

  • बार-बार बैठक बुलाने के अनुरोध को नजरअंदाज किया।
  • उच्च अधिकारियों के दबाव में काम किया या चुप्पी साधे रखी।

राज्य सरकार के अफसर:

SEIAA को स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करने दिया, बल्कि उस पर दबाव बनाया।

किसको फायदा दिलाने की कोशिश हुई?

खनन माफिया और दलाल:

  • अवैध खनन परियोजनाओं को बिना वैध प्रक्रिया के मंजूरी दिलाई गई।
  • जिन कंपनियों को नियमों के तहत मंजूरी नहीं मिल सकती थी, उन्हें भी फायदा पहुंचाया गया।
  • करोड़ों रुपये की रिश्वत और दलाली के आरोप।

अधिकारियों को भी लाभ:

मंजूरी देने के बदले कथित तौर पर आर्थिक लाभ लिए गए।

पर्यावरण को होगा भारी नुकसान

आपको बता दें कि Thesootr के पास इस भ्रष्टाचार से जुड़े मामले के सभी दस्तावेज मौजूद हैं। जिन प्रोजेक्ट को आंख बंद करके अनुमति दी गई हैं, उनमें से कई ऐसे हैं जो पर्यावरण के लिए गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल मुख्य सचिव के सामने भी है कि इस मामले की जानकारी के बाद क्या वे कोई ठोस कार्यवाही करेंगे? क्या ये अनुमतियां रद्द की जाएंगी या फिर इस मामले में चांज बैठाई जाएगी?

खुद चेयरमैन का बनना पड़ा व्हिसल ब्लोअर

इधर सिया चेयरमैन शिवनारायण चौहान ने 26 मई को केंद्र को इस मामले की रिपोर्ट भेज दी है। उसके मुताबिक, 17 मार्च से 15 मई के बीच उन्होंने 10 बार मेंबर सेक्रेटरी को नोटशीट लिखी। इसके अलावा, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव को भी 22 पत्र भेजे। इन पत्रों में मेंबर सेक्रेटरी की मनमानी और बैठक न बुलाने की शिकायत की गई थी। इसके बावजूद कोई कार्यवाही नहीं हुई। चौहान का कहना है कि बिना बैठक के ईसी जारी करना नियमों के खिलाफ है। 

किसको फायदा दिलाने की कोशिश हुई?

खनन माफिया और दलाल

 इस खेल में अवैध खनन परियोजनाओं को मंजूरी दिलाई गई। जिन कंपनियों को नियमों के तहत मंजूरी नहीं मिल सकती थी, उन्हें भी फायदा पहुंचाया गया।

इन योजनाओं को श्रीमन शुक्ला द्वारा दे दी गई डीम्ड परमिशन (PDF देखें...) 

जिम्मेदार कौन हैं?

1. सदस्य सचिव, SEIAA: बिना सामूहिक निर्णय के, अकेले ही सैकड़ों मंजूरियां जारी कीं।
2. प्रमुख सचिव, पर्यावरण विभाग, म.प्र. शासन: अवैध फैसलों को स्वीकृति दी, केंद्र सरकार के आदेशों की अनदेखी की।
3. SEIAA के अन्य अधिकारी: बैठक बुलाने के अनुरोध को नजरअंदाज किया, उच्च अधिकारियों के दबाव में काम किया।
4. खनन माफिया और दलाल: अधिकारियों से सांठगांठ कर अवैध मंजूरी दिलाई।

उड़ा दी नियमों की धज्जियां

SEIAA में बिना बैठक, बिना सामूहिक निर्णय, अकेले ही सैकड़ों परियोजनाओं को मंजूरी देकर करोड़ों का घोटाला किया गया। इसमें सदस्य सचिव, प्रमुख सचिव, अन्य अधिकारी और खनन माफिया की मिलीभगत स्पष्ट है। पर्यावरणीय सुरक्षा और कानून की धज्जियां उड़ाई गईं। अब इस मामले में तत्काल जांच, दोषियों पर कार्रवाई और सभी अवैध मंजूरियों को निरस्त करने की मांग उठ रही है।

स्टेट एनवायरोमेंट इम्पेक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (SEIAA) क्या है?

स्टेट एनवायरोमेंट  इम्पेक्ट असेसमेंट अथॉरिटी (SEIAA) भारत सरकार द्वारा स्थापित एक राज्य स्तरीय निकाय है, जिसका मुख्य कार्य राज्यों में विभिन्न विकास परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी (Environmental Clearance - EC) देना है। इसका गठन पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और EIA (Environmental Impact Assessment) अधिसूचना, 2006 के तहत किया गया है। 

SEIAA की संरचना

  • अध्यक्ष: राज्य सरकार द्वारा नामित वरिष्ठ अधिकारी।
  • सदस्य: पर्यावरण, वन, जलवायु, खनन, भूगोल, रसायन, सामाजिक विज्ञान आदि क्षेत्रों के विशेषज्ञ।
  • सदस्य सचिव: आमतौर पर राज्य सरकार का कोई वरिष्ठ अधिकारी, जो प्रशासनिक कार्य देखता है।

SEIAA के गठन में विशेषज्ञता और अनुभव को प्राथमिकता दी जाती है। विशेषज्ञ सदस्य बनने के लिए संबंधित क्षेत्र में 10-15 वर्षों का अनुभव या उन्नत डिग्री जरूरी है।

सिया के मुख्य कार्य और जिम्मेदारियां

पर्यावरणीय मंजूरी देना:

SEIAA का मुख्य कार्य राज्य के भीतर आने वाली 'Category B' परियोजनाओं (जैसे छोटे-बड़े उद्योग, खनन, निर्माण, सड़क, पावर प्लांट आदि) को पर्यावरणीय मंजूरी देना है।

SEAC से सलाह लेना:

 SEIAA के निर्णय लेने से पहले, राज्य पर्यावरण मूल्यांकन समिति (SEAC) तकनीकी मूल्यांकन करती है और अपनी सिफारिश देती है। SEIAA अंतिम मंजूरी देती है या अस्वीकार करती है।

जन सुनवाई और पारदर्शिता:

 परियोजना क्षेत्र में जन सुनवाई आयोजित कराई जाती है, जिसमें स्थानीय लोगों की आपत्तियों और सुझावों को शामिल किया जाता है।

पर्यावरणीय शर्तों की निगरानी:

 मंजूरी मिलने के बाद, परियोजना प्राधिकरण को हर छह महीने में अनुपालन रिपोर्ट देनी होती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पर्यावरणीय शर्तों का पालन हो रहा है।

आईएएस श्रीमन शुक्ला आईएएस नवनीत मोहन कोठारी आईएएस उमा महेश्वरी आर शिवनारायण सिंह चौहान मध्यप्रदेश सिया केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय सिया चेयरमैन एसएस चौहान SEIAA seiaa SEIAA विवाद एमपी
Advertisment