सिस्टम की सुस्ती से एमपी में नौनिहालों पर कुपोषण और बीमारियों की छाया

भारी भरकम हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर होने के बावजूद मध्य प्रदेश टीकाकरण जैसे मूलभूत कार्यक्रमों में राजस्थान और छत्तीसगढ़ से कहीं पीछे है। गर्भवती महिलाओं की देखभाल के सरकारी कार्यक्रम प्रभावी नहीं हैं इसमें भी मध्य प्रदेश निचले पायदान पर है। 

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Sanjay Sharma
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BHOPAL.मध्य प्रदेश और केंद्र के तमाम कार्यक्रमों के बावजूद बच्चों के स्वास्थ्य पर उनका असर नजर नहीं आ रहा है। प्रदेश के नौनिहाल निमोनिया, एनीमिया, हाईपर टेंशन और बौनापन जैसी बीमारियों की गिरफ्त में है। इस मामले में मध्य प्रदेश की हालत पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ और राजस्थान से भी गई गुजरी है।

राज्य और केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग सहित राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के हेल्थ प्रोजेक्ट का लाभ कमजोर और लड़खड़ाते सिस्टम के कारण बच्चों तक नहीं पहुंच रहा है। भारी भरकम हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर होने के बावजूद मध्य प्रदेश टीकाकरण जैसे मूलभूत कार्यक्रमों में राजस्थान और छत्तीसगढ़ से कहीं पीछे है। गर्भवती महिलाओं की देखभाल के सरकारी कार्यक्रम प्रभावी नहीं हैं इस मामले में भी राज्य दोनों पड़ोसी राज्यों से निचले पायदान पर है। 

मध्य प्रदेश की 8.90 करोड़ आबादी पर 18 सरकारी, 15 निजी मेडिकल कॉलेज और 18 आयुर्वेदिक कॉलेज हैं। वहीं राजस्थान की 8.31 करोड़ आबादी पर 24 सरकारी और 14 निजी मेडिकल कॉलेज हैं। जबकि छत्तीसगढ़ में 3 करोड़ 8 लाख आबादी पर 11 सरकारी और 3 निजी मेडिकल कॉलेज संचालित हैं।

वहीं मध्य प्रदेश में 55 जिला अस्पताल, 353 से ज्यादा सामुदायिक एवं सिविल अस्पताल के साथ ही 1768 से ज्यादा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी चल रहे हैं। राजस्थान में 10 जिला, 11 उपजिला अस्पतालों के अलावा 3 सेटेलाइट अस्पताल और 159 सामुदायिक एवं 294 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। जबकि छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य व्यवस्था 26 जिला अस्पताल, 148 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 741 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) हैं। 

एमपी में हेल्थ प्रोजेक्ट नहीं कारगर

इस लिहाज से मध्य प्रदेश हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में अपने दोनों पड़ोसी राज्यों से मजबूत है। इसके बावजूद सरकारी तंत्र की सुस्ती का खामियाजा प्रदेश के बच्चों को उठाना पड़ रहा है। मध्य प्रदेश में 15 वर्ष तक की आयु वर्ग के बच्चों की संख्या ढाई करोड़ से ज्यादा है।

प्रदेश और केंद्रीय स्वास्थ्य योजनाओं के अलावा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत संचालित कार्यक्रमों पर इन बच्चों के स्वास्थ्य और सेहत की जिम्मेदारी है। वहीं महिला एवं बाल विकास के जिला और ब्लॉक परियोजना कार्यालयों के तहत आंगनबाड़ी केंद्र भी शिशु एवं किशोर बच्चों के स्वास्थ्य कार्यक्रम चला रहे हैं। यानी प्रदेश में दोहरी और त्रिस्तरीय व्यवस्था भी सरकारी मशीनरी की लापरवाही के कारण कारगर नहीं हो रही है।  

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करोड़ों की आयरन टेबलेट बर्बाद

भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की सर्वे रिपोर्ट प्रदेश में बच्चों की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठा रही है। मध्य प्रदेश में अस्पताल, आंगनबाड़ी केंद्रों को हर साल करोड़ों रुपए की फोलिक एसिड टेबलेट महिलाओं और बच्चों के लिए भेजी जाती हैं।

आंगनबाड़ी केंद्र भी करोड़ों रुपए का पोषण आहार बांट रहे हैं इसके बावजूद मध्य प्रदेश में 68 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे एनीमिया के शिकार हैं। वहीं केवल आयरन की कमी से प्रभावित बच्चों की संख्या ही प्रदेश में 22 प्रतिशत से अधिक है। 

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23% बच्चे टीकाकरण से वंचित

मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग के जिला, सामुदायिक अस्पतालों के अलावा प्राथमिक केंद्र सहित संजीवनी केंद्रों तक मासिक टीकाकरण कार्यक्रम चलाए जाते हैं। आंगनबाड़ी केंद्र की कार्यकर्ताओं को भी बच्चों के नियमित टीकाकरण की जिम्मेदारी दी गई है। वहीं राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत आशा कार्यकर्ता, एएनएम और एमपीडब्ल्यू यानी मल्टीपर्पज वर्कर भी टीकाकरण कार्यक्रम के लिए तैनात हैं।

मध्य प्रदेश में 77 फीसदी बच्चों का ही टीकाकरण हो रहा है। इस मामले में राजस्थान और छत्तीसगढ़ की स्थिति मध्यप्रदेश से बेहतर है। राजस्थान में 80 प्रतिशत जबकि छत्तीसगढ़ में 79 प्रतिशत बच्चों को टीके लगाए जा रहे हैं। नियमित टीकाकरण से वंचित बच्चे कई बीमारियों के संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं। 

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बच्चों की देखभाल में पिछड़े

प्रसव पूर्व धात्री महिलाओं की देखरेख के मामले में भी तमाम कार्यक्रमों का संचालन फीका है। इस वजह से प्रसव के तुरंत बाद नवजात को संक्रमण जकड़ रहा है। प्रदेश सरकार के तमाम दावों के बावजूद अब भी सामुदायिक और सिविल अस्पताल में भी महिला एवं शिशु रोग विशेषज्ञों की कमी है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर तो इनकी तैनाती की कल्पना करना भी मुश्किल है।

इसी वजह से प्रदेश में सरकारी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व नियमित जांच की स्थिति अच्छी नहीं है। छत्तीसगढ़ से दोगुना संसाधन होने के बावजूद प्रसव पूर्व जांच कराने में मध्यप्रदेश पीछे है। यहां प्रसव पूर्व जांच की स्थिति 36 प्रतिशत है जबकि छत्तीसगढ़ में 41 फीसदी और राजस्थान में 62 फीसदी महिलाएं गर्भस्थ शिशु की जांच और देखरेख में आगे हैं। 

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बौनेपन की वजह कुपोषण

निर्धारित पोषण के मामले में भी मध्य प्रदेश के नौनिहालों की सेहत कमजोर है। इस वजह से प्रदेश के बच्चे कुपोषण के दंश से पीड़ित हैं। सही पोषण न मिलने की वजह से मध्य प्रदेश के 36 फीसदी बच्चों में बौनापन हावी हो रहा है। प्रदेश के बच्चों में बौनेपन की स्थिति राष्ट्रीय औसत 35.5 प्रतिशत से भी ज्यादा है।

हांलाकि, इस मामले में मेघालय, बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखंड, गुजरात जैसे राज्य एमपी से बुरी स्थिति में है। लेकिन मध्य प्रदेश के पड़ौसी राज्य छत्तीसगढ़ और राजस्थान इस स्थिति में भी बेहतर हैं। पर्याप्त पोषण न मिलने के कारण प्रदेश के 33 प्रतिशत बच्चों में उम्र और वजन का अनुपात गड़बड़ा गया है। जबकि राजस्थान में यह स्थिति 27 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 31 फीसदी बच्चों की ऐसी स्थिति है। 

  • अंडरवेट बच्चों की स्थिति के आंकड़े          
    राजस्थान           27.6%             
    छत्तीसगढ़          31.3%             
    मध्य प्रदेश         33.0%    
  • कुपोषण बढ़ा रहा एमपी में बौनापन      
    राजस्थान           31.8%             
    छत्तीसगढ़          34.6%             
    मध्य प्रदेश         35.7%             
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  • टीकाकरण की यह है स्थिति
    राजस्थान          80.4%    
    छत्तीसगढ़         79.7%             
    मध्य प्रदेश        77.1%
  • प्रसव पूर्व डॉक्टरों से जांच की स्थिति
    राजस्थान          61.7%    
    छत्तीसगढ़         40.7%             
    मध्य प्रदेश        36.3%

बच्चों के लिए प्रदेश में हेल्थ प्रोजेक्ट की भरमार

  • मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग बच्चों के स्वास्थ्य के लिए कई कार्यक्रम चला रहा है। मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों में नवजात गहन चिकित्सा इकाई (Neonatal Intensive Care Unit) स्थापित की गई हैं। इसमें समय पूर्व जन्मे, कम वजन या दूसरी समस्याओं से ग्रस्त नवजात का उपचार किया जाता है। लेकिन ये सुविधा जिलास्तर तक सीमित है। इसका लाभ विकासखंड, तहसील और ग्रामीण स्तर पर नहीं मिल रहा। 
  • स्वास्थ्य विभाग मिशन इंद्रधनुष के तहत सघन टीकाकरण अभियान चला रहा है फिर भी 23 फीसदी बच्चे अब तक टीकाकरण से वंचित हैं। यानी विभाग के कमजोर नेटवर्क, कर्मचारियों की कमी के कारण मिशन इंद्रधनुष ग्रामीण ग्रामीण अंचल में फीका पड़ रहा है। 
  • राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK) जन्म से 18 वर्ष की आयु तक के बच्चों में जन्मजात विकृतियों, बीमारियों, कमियों और विकासात्मक देरी का शीघ्र पता लगाने और उपचार करने का एक कार्यक्रम है. यह कार्यक्रम मुफ्त स्वास्थ्य जांच, निदान और उपचार प्रदान करता है, जिसमें जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्रों (DEIC) के माध्यम से आवश्यक सर्जरी भी शामिल है. आरबीएसके टीमें आंगनबाड़ियों, स्कूलों और सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में जाकर बच्चों की जांच करती हैं,
  • मिशन वात्सल्य मध्य प्रदेश (मप्र) एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसका उद्देश्य सभी बच्चों के लिए एक स्वस्थ, सुरक्षित और खुशहाल बचपन सुनिश्चित करना और उनकी पूर्ण क्षमता तक पहुँचने में सहायता करना है.
  • आशा कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की कार्यकर्ताएं उपस्वास्थ्य केंद्र और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए तैनात हैं। उन पर गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों को अस्पताल ले जाने, उनको पोषण आहार उपलब्ध कराने के साथ ही बच्चों के टीकाकरण की भी जिम्मेदारी है। 
  • आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से पोषण आहार वितरण, जननी- शिशु सुरक्षा जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसके अलावा कुपोषण मुक्ति अभियान के तहत इससे होने वाले बौनेपन, कम वजन और दुर्बल शारीरिक स्थिति में सुधार का दायित्व आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर है। 

ये हैं जिम्मेदार 

लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग
- संदीप यादव, IAS प्रमुख सचिव 
- तरुण राठी, IAS आयुक्त स्वास्थ्य 

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन मप्र
- डॉ. सलोनी सिडाना, IAS डायरेक्टर एनएचएम
- डॉ. अरुणा कुमार, डायरेक्टर टीकाकरण
- डॉ. हिमानी यादव, डिप्टी डायरेक्टर शिशु स्वास्थ्य-पोषण शाखा

महिला एवं बाल विकास विभाग
- जी.व्ही. रश्मि, सचिव IAS
- सूफिया फारुकी वली, IAS आयुक्त

मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ राजस्थान कुपोषण बच्चे स्वास्थ्य विभाग महिला एवं बाल विकास विभाग राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन एनएचएम मंत्रालय आंगनबाड़ी जिला अस्पताल
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