एमजीएम मेडिकल कॉलेज में रैगिंग का रीपीट गेम, सीनियर वही, शिकार नए

एमजीएम मेडिकल कॉलेज में रैगिंग की घटनाएं लगातार जारी हैं। हाल ही में सीनियर छात्रों के जरिए जूनियर को फिर से शिकार बनाया गया है। कॉलेज प्रशासन ने कार्रवाई की, लेकिन रैगिंग की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आया है।

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Rahul Dave
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INDORE. मध्यप्रदेश के प्रतिष्ठित एमजीएम मेडिकल कॉलेज में रैगिंग अब महज अनुशासनहीनता नहीं, बल्कि एक सिस्टम फेलियर बनती जा रही है। ताजा मामले में उन्हीं छात्रों ने दोबारा जूनियर्स को अपना शिकार बनाया है। इन्हें हाल ही में रैगिंग के आरोपों में निलंबित किया गया था। इस घटना से सवाल यह उठ रहा है कि कार्रवाई के बाद भी रैगिंग क्यों नहीं रुकी?

जबरन शराब पीने के लिए मजबूर किया

एक महीने के भीतर दूसरी गंभीर घटना सामने आई है। इसमें 2025 बैच के जूनियर छात्रों को 2024 बैच के सीनियरों ने निजी फ्लैट पर बुलाया था। वहां उन्हें मारपीट, डराने-धमकाने और शराब पीने के लिए मजबूर किया गया। साथ ही उन्हें जबरन नाचने के लिए भी कहा गया।

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गुमनाम पत्र के जरिए शिकायत

चौंकाने वाली बात यह है कि इस बार शिकायत यूजीसी को नहीं मिली। यह शिकायत कॉलेज प्रशासन को गुमनाम पत्र के जरिए मिली है। पीड़ित छात्र इतने डरे हुए थे कि वे खुलकर सामने नहीं आ सके। उन्हें डर था कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न हो जाए।

इंदौर एमजीएम मेडिकल कॉलेज रैगिंग केस

  • रैगिंग की पुनरावृत्ति: एमजीएम मेडिकल कॉलेज में सीनियर छात्रों ने जूनियर छात्रों को फिर से रैगिंग का शिकार बनाया, जबकि पहले इन्हें निलंबित किया गया था।

  • जबरन शराब पीने और उत्पीड़न के आरोप: 2025 बैच के जूनियर छात्रों को सीनियरों ने निजी फ्लैट पर बुलाकर शराब पीने, मारपीट और नाचने के लिए मजबूर किया।

  • गुमनाम शिकायत: पीड़ित छात्रों ने डर के कारण गुमनाम पत्र के जरिए कॉलेज प्रशासन को शिकायत दी, न कि यूजीसी को।

  • सजा का असर नहीं पड़ा: एक महीने पहले निलंबित किए गए सीनियर छात्रों द्वारा रैगिंग की घटनाओं की पुनरावृत्ति से यह सवाल उठता है कि क्या कॉलेज की अनुशासनात्मक कार्रवाई प्रभावी है?

  • जांच और डर का माहौल: कॉलेज प्रशासन ने गंभीरता से जांच शुरू की, लेकिन छात्रों ने डर के कारण खुलकर बयान नहीं दिए, जिससे रैगिंग का माहौल जस का तस बना हुआ है।

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जांच में यह हुआ खुलासा

जांच में यह भी साफ हुआ कि ताजा मामले में नामजद दो सीनियर वही हैं। इन्हें 18 नवंबर की रैगिंग घटना के बाद एक माह के लिए सस्पेंड किया गया था। यानी निलंबन की कार्रवाई न तो नजीर बन सकी, न ही डर पैदा कर पाई।

आरोपों की हुई पुष्टि

इससे यह सवाल और गहरा हो गया है कि क्या कॉलेज की अनुशासनात्मक प्रक्रिया सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गई है? एंटी-रैगिंग कमेटी की जांच में आरोपों की पुष्टि हुई।

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सहमे हुए थे छात्र

छात्रों के बयान दर्ज किए गए, लेकिन वे डर के मारे चुप रहे। जांच अधिकारियों के मुताबिक, पीड़ित छात्र पूछताछ में भी पूरी बात नहीं कह पाए। उनका डर इस बात को दिखाता है कि रैगिंग सिर्फ एक घटना नहीं है। यह एक लंबी चलने वाली प्रताड़ना की श्रृंखला बन चुकी है।

खेल को सजा में बदल दिया

इतना ही नहीं, हालिया शिकायतों में खेल गतिविधियों को भी उत्पीड़न का जरिया बनाया गया है। जूनियर छात्रों ने आरोप लगाया कि सीनियर क्रिकेट खेलते रहे और उनसे घंटों तक बिना ब्रेक फील्डिंग करवाई गई थी। बल्लेबाजी का मौका नहीं दिया गया और लंबे समय तक मैदान में खड़े रहने को मजबूर किया गया था। एक तरह से खेल को सजा में बदल दिया गया।

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पिछला पैटर्न और भी डरावना

यदि हम पीछे देखें, तो पैटर्न और भी डरावना है। दिसंबर 2024 में हॉस्टल रैगिंग का मामला सोशल मीडिया पर आया था। 54 छात्रों से बयान लिए गए, लेकिन सबने इनकार कर दिया था। अक्टूबर में एक पीजी छात्रा ने मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया था। उसने वजन 22 किलो कम होने और घर लौटने की बात कही थी। हालांकि बाद में उसने शिकायत वापस ले ली थी।

डर का माहौल जस का तस

जमीनी हकीकत यह है कि डर का माहौल जस का तस बना हुआ है। सीनियर्स बार-बार वही हरकतें दोहरा रहे हैं। वहीं, जूनियर्स हर बार चुप रहने को मजबूर हैं। पिछले दो वर्षों में आठ से अधिक शिकायतें, और लगभग हर बार या तो शिकायत वापस, या मामला ठंडे बस्ते में।

छात्रों के लिए अलग-अलग बयान

कॉलेज प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और विस्तृत जांच की जा रही है। शिकायत मिलने के तुरंत बाद एंटी-रैगिंग कमेटी ने जांच शुरू की है। जूनियर व सीनियर छात्रों के बयान अलग-अलग दर्ज किए हैं।

-डीन डॉ. अरविंद घनघोरिया

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